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इटावा में क्या बीजेपी हैट्रिक लगाने में कामयाब होगी ?

by Tejas Khabar
इटावा में क्या बीजेपी हैट्रिक लगाने में कामयाब होगी ?

लोकसभा चुनाव से पहले इटावा में खासी राजनीतिक हलचल देखी जा रही है. आजादी के बाद 1952 में पहले आम चुनाव सम्पन्न हुए थे. तब कानपुर पश्चिम सीट का इलाका इटावा तक लगता था. इस सीट पर कांग्रेस के बालकृष्ण शर्मा चुनाव जीते थे. बाद में 1957 के लोकसभा चुनाव में परिसीमन के चलते इटावा लोकसभा सीट बनी, तब सोशलिस्ट पार्टी से कमांडर अर्जुन सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे. मौजूदा समय में यह लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.

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इटावा जिला का आजादी की जंग में अहम योगदान रहा है. 1857 में ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह के दौरान कई स्वतंत्रता सेनानी यहीं पर रहे थे. उस वक्त एओ ह्यूम यहां के जिला कलेक्टर थे. ये वही एओ ह्यूम थे जिन्होंने आगे चलकर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी.
उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे बसा इटावा जिला भी अपनी अलग राजनीतिक पहचान रखता है. यह सपा संस्थापक मुलायम सिंह की जन्म स्थली है . 1991 में इसी लोकसभा सीट से पहली बार दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को भी जीत मिली थी. तब मुलायम ने अपने ही पार्टी के प्रत्याशी राम सिंह शाक्य को हरवाकर कांशीराम को जितवाया था. फिलहाल यह सीट बीजेपी के कब्जे में हैं और उसकी नजर यहां पर भी चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने पर है.

इटावा संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें (इटावा, औरैया, भरथना, दिबियापुर और सिकंदरा) आती हैं जिसमें 3 जिलों के क्षेत्र जुड़े हुए हैं. यहां पर इटावा के अलावा औरेया और कानपुर देहात जिले की 3 विधानसभा सीटें शामिल हैं. औरैया और भरथना की सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 2022 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान 5 में से 3 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, जबकि 2 सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी. इटावा, औरेया और सिकंदरा सीट पर बीजेपी तो भरथना और दिबियापुर सीट पर सपा को जीत मिली थी.
भारतीय जनता पार्टी देश में 370 से ज्यादा सीटें जीतने की योजना पर काम कर रही है, ऐसे में इटावा सीट भी उसकी नजर में हैं. तो वहीं समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे दल भी यहां पर जीत की राह पर लौटने की फिराक में हैं.

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2019 के लोकसभा चुनाव में इटावा संसदीय सीट के परिणाम की बात करें तो यहां पर बीजेपी को जीत मिली थी. बीजेपी ने सांसद अशोक कुमार दोहरे का टिकट काट कर आगरा से सांसद रहे राम शंकर कठेरिया को मैदान में उतारा था. उनके सामने समाजवादी पार्टी की ओर से कमलेश कुमार मैदान में उतरे. चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन था और ऐसे में यह सीट सपा के खाते में आई थी.चुनाव में राम शंकर कठेरिया को 522,119 वोट मिले तो सपा के कमलेश कुमार के खाते में 457,682 वोट आए.

पहली बार 1998 में बीजेपी ने यहां पर अपना खाता खोला था और सुखदा मिश्रा सांसद बनी थी . 2014 में मोदी लहर के बीच बीजेपी ने यह सीट भी झटक ली थी. 2014 में बीजेपी के अशोक दोहरे ने पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया को 1,72,946 मतों के अंतर से हराया था. 2019 में रामशंकर कठेरिया भी बीजेपी के टिकट पर जीते. बीजेपी की नजर अब हैट्रिक पर लगी है. भाजपा ने एक बार फिर से रामशंकर कठेरिया पर दांव लगाया है. सपा ने पूर्व बसपा जिला अध्यक्ष जितेंद्र दोहरे को अपना प्रत्याशी बनाया है जबकि बसपा ने सारिका बघेल को चुनावी मैदान में उतारा है.

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इटावा लोकसभा सीट में कुल मतदाताओं की संख्या 18,15,636 है. इटावा संसदीय सीट के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यह दलित बाहुल्य क्षेत्र है. दलित मतदाताओं की संख्या साढ़े 4 लाख से अधिक है. इसके बाद ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या है जो करीब 3 लाख तक है. क्षत्रिय मतदाता भी अच्छी खासी स्थिति में हैं और यहां पर उनकी संख्या सवा लाख के आसपास है. ओबीसी बिरादरी में लोधी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. लोधी के बाद यादव, शाक्य और पाल मतदाताओं का नंबर आता है. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी एक लाख से अधिक है. अब देखना यह है कि 2024 के चुनाव में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा.

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