Home अन्यधर्म वट वृक्ष पूजा पर विशेष, सावित्री की कौन सी बात में फस गए यमराज?

वट वृक्ष पूजा पर विशेष, सावित्री की कौन सी बात में फस गए यमराज?

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PHOTO BY-TEJAS KHABAR

सदियों वर्ष पूर्व ज्येष्ठ की अमावस्या के दिन सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर अपने पति सत्यभान को यमराज से जीवित करवा लिया था । भविष्य पुराण में वर्णित कथा के अनुसार धर्म परायण युवती सावित्री का विवाह एक राजकुल के राजकुमार सत्यभान से हुआ था । विवाह होने के उपरांत नारद जी सत्यभान के घर पहुँचे , सावित्री ने नारद जी की बड़ी सेवा सुश्रूसा की, नववधू सावित्री से नारद जी अति प्रसन्न हुए, नारदजी ने दिव्य दृष्टि से सावित्री और उसके पति के भविष्य के बारे में देखा तो उन्होंने जाना सत्यभान की आयु अति अल्प है और आज के बारहवें दिन ही उसकी मृत्यु हो जाएगी । चलते समय नारद जी ने सावित्री से एकांत में कहा कि बेटी तेरा पति अल्प आयु का है, उसकी मृत्यु अति निकट है । नारद जी के वचन सुनकर सावित्री रोने लगी और नारद जी से अपनी पति के दीर्घायु के लिये कोई उपाय बताने को कहा । द्रवित होकर नारद जी ने कहा कि बेटी विधाता ने तेरे पति की कम आयु ही निश्चित की है । नारद जी ने कहा ऐसी परिस्थिति में केवल पतिव्रता नारी ही अपने पति की उम्र बढ़ा सकती है। कोई भी देवता और ऋषि विधाता के लिखे विधान को मिटा नहीं सकता।

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इतना कहकर नारद जी अदृश्य हो गए । सावित्री ने शोक छोड़कर पूरे मनोयोग से विश्वास पूर्वक अपने पति की सेवा,पूजा शुरू कर दी । बारहवे दिन यमराज सत्यभान को लेने सावित्री के घर पहुंच गए । सत्यभान उस समय अपने घर के बाहर वटवृक्ष के नीचे बैठे थे, जैसे ही यमराज सत्यभान को लेकर यमलोक को चले पीछे 2 सावित्री भी अपनी सतीत्व के बल पर यमराज के पीछे चल पड़ी । बहुत दूर जाने पर यमराज ने सावित्री से कहा कि तुम लौट जाओ तुम्हारा समय अभी यमलोक जाने का नही आया है । सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं अपने पति के बिना नहीं जा सकती। बेबस होकर यमराज ने कहा अच्छा तुम कोई वरदान मांग लो । सावित्री ने कहा मेरे अँधे सास , ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करें । यमराज सावित्री की सेवा भावना से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा एक दूसरा वरदान और माँग लो, हमें यमलोक शीघ्र जाना है । सावित्री ने कहा हमें सौ पुत्रों का वरदान दो ।यमराज ने बिना सोचे तथास्तु कह दिया । सावित्री के चातुर्य में यमराज धर्म संकट में फँस गए।

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सावित्री ने यमराज से कहा कि बिना पति के पुत्र कैसे प्राप्त होंगे? तब यमराज को अपनी भूल का अहसास हुआ । धर्म राज खुद सती नारी के आगे धर्मसंकट में फस गए । मजबूरन यमराज को सत्यभान को जीवित करना पड़ा । सावित्री ज्येष्ठ की अमावश्या के दिन अपने पति को यमराज के चंगुल से वापस लायी थी ,तब से इसी दिन से अटल विश्वास, दीर्घायु के प्रतीक वटवृक्ष की पूजा होने लगी । हिन्दू धर्म को माननेवाली महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिये निर्जला व्रत रहकर वटवृक्ष की पूजा करती है,वे सजधजकर ,खूब श्रृंगार कर अपने घरों के नजदीक के वट वृक्ष की चंदन, धूप आदि से पूजा करती है । वट वृक्ष के चारो ओर 108 परिक्रमा करते हुए वृक्ष में धागा लपेटती है । मेवा, मिष्ठान से भोग लगाकर , गरीबों, कन्यायों और ब्राह्मणों को यथोचित दान औऱ भोजन कराकर अपना व्रत खोलती है । माना जाता है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा का निवास, तनों में विष्णु का वास और टहनियों में भगवान शिव का वास होता है ।

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