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झाँसी की रानी ही थी असली मर्द – जनरल हैवलॉक

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झाँसी की रानी ही थी असली मर्द - जनरल हैवलॉक
झाँसी की रानी ही थी असली मर्द – जनरल हैवलॉक
  • रानी की तीन दलित सखियां कौन थी
  • रानी की अंतिम इच्छा क्या थी ?

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में 1857 की क्रान्ति को क्रूरता से दबाने वाले जनरल हैवलॉक ने लिखा था कि 1857 के संघर्ष में मर्दानगी से युद्ध करने वाला अकेला व्यक्ति था, वह थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई । वाराणसी में मराठा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था । प्यार दुलार में उन्हें मनु भी कहा जाता था। इनका परिवार पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ पूना पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद पेशवा के साथ वाराणसी आ गया था । लक्ष्मीबाई के पिता मोरोकान्त तांबे पेशवा के पुरोहित कर्म करने के साथ राजकीय कार्यों का भी निर्वाहन करते थे । कुछ महीनों बाद अंग्रेजों ने पेशवा को जागीर देकर बिठूर भेज दिया । लिहाजा लक्ष्मीबाई का परिवार भी उनके साथ बिठूर आ गया। लक्ष्मीबाई का बचपन बिठूर में ही बीता ।

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जल्द ही लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी सहित युद्ध की हर कला में माहिर हो गयी । इसी बीच लक्ष्मीबाई की शादी उनसे उम्र में काफी ज्यादा झाँसी के राजा गंगाधर राव से कर दी गयी । स्त्रैण स्वभाव के राजा गंगाधर ज्यादा रुचि राजकाज में नहीं लेते थे । लिहाजा लक्ष्मीबाई ने राजकाज में रुचि लेना शुरू कर दिया । लक्ष्मी बाई के एक पुत्र पैदा हुआ,लेकिन वह चल बसा । लक्ष्मी बाई ने दामोदर राव नामक एक बालक को गोद ले लिया । इधर राजा गंगाधर राव का भी बीमारी के चलते निधन हो गया। बड़े दुख में लक्ष्मीबाई ने झाँसी की बागडोर अपने हाथ में ले ली । डलहौजी की हड़प नीति के चलते अंग्रेजी सेना ने झाँसी को घेर लिया । लक्ष्मीबाई ने अपनी जनता के साथ नारा बुलंद किया – मैं झाँसी नहीं दूंगी , जिसमें हिम्मत हो लेकर देखे ।

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लम्बे युद्ध का संचालन खुद रानी ने किया। अंग्रेजों की बड़ी और तोपों वाली सेना ने झाँसी पर कब्जा कर लिया । रानी के प्रमुख तोपची गौस खान सहित अन्य बड़े सरदार मारे जा चुके थे । किले पर कब्जा अब तक नहीं हुआ था। रानी झाँसी से पलायन कर फिर से शशक्त मोर्चा बनाकर युद्ध करना चाहती थी । अंग्रेज सेना ने पूरे झाँसी को रौंद दिया था । पाँच हजार से ज्यादा निर्दोष लोगों को अंग्रेज सेना ने निर्दयता पूर्वक मार दिया। बचे खुचे सरदारों के साथ रानी ने किले में आपात बैठक बुलाई । रानी ने कहा कि मैं औरत जाति की हूँ , मेरे शव का भी अपमान नहीं होनी होना चाहिये । सभी सरदारों ने रानी को वचन दिया हम अपनी जान पर खेलकर भी आपका अपमान नहीं होने देंगे । रानी की तीन दलित जाति की दासियाँ थी , कहने को तो वह दासी थी परंतु रानी की वे असल में सखियाँ ही थी जो उन पर जान न्यौछावर करती थी । उनका नाम था काशी, सुंदर और मुंदर ।

ये सभी झाँसी शहर के कुरियात मुहल्ले की रहने वाली थी । वह रानी की तरह ही सुंदर और बलशाली थी । किले की सुरक्षा होने के बावजूद रानी पुरुषवेश में अपने पुत्र को पीठ में बांधकर सखियों तथा कुछ सैनिकों के साथ चकमा देकर बिजली की तरह निकल गयी । थोड़ी देर बाद अंग्रेजी सेना ने जानकारी के बाद पीछा किया । रानी कालपी की ओर दौड़ी । गोलीबारी में उनकी सखी काशी मारी गई । कालपी से वे बिठूर की सेना के साथ ग्वालियर की ओर भागी । ग्वालियर में रानी ने बड़ी अंग्रेज सेना के साथ भयंकर युद्ध किया । युद्ध में उनकी दूसरी सखी सुंदर भी मारी गयी । अंग्रेजी सेना को काटने के बाद रानी अपनी सखी मुंदर के साथ सुरक्षित स्थान के लिये दौड़ी। रास्ते में चौड़ा नाला आ जाने पर उनका घोड़ा वहीं रुक गया । इसी बीच उनकी सखी मुंदर की पीछे से आवाज आई बाई साहब मैं तो मारी गई। पलट कर रानी ने तेजी से हमलावर अंग्रेज सैनिक को मार गिराया ।

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इसी बीच अंग्रेज सेना की दूसरी टुकड़ी आ गयी । रानी दोनों हाथों से तलवार चला रहीं थी । इसी बीच पीछे से एक अंग्रेज सैनिक ने उनके सर पर तलवार मार दी जिससे कि उनका दाया सिर कट गया और दाई आंख निकल आयी । फिर भी रानी ने हमलावर को मार गिराया। रानी का पैर भी जख्मी था वह अचेत होकर गिर गयी । भगदड़ में उनके एक साथी ने उन्हें पास की साधू गंगदास की कुटिया में ले गए । साधू ने रानी को गंगाजल पिलाया । रानी ने हर हर महादेव , ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कहकर प्राण त्याग दिए। रानी के सैनिकों ने अंग्रेज सेना के आने के पहले घाँस फूंस और झोपड़ी की लकड़ी से रानी के शव को जला दिया। अंग्रेज सैनिक रानी को जिंदा अथवा मुर्दा तो प्राप्त नहीं कर सके, उन्हें रानी की राख ही नसीब हो सकी।

मुनीष त्रिपाठी की स्पेशल रिपोर्ट

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