Home अन्य गाँधी जी के किस अनशन में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था

गाँधी जी के किस अनशन में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था

by
गाँधी जी के किस अनशन में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था
गाँधी जी के किस अनशन में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था

क्या था आश्चर्यजनक जनक गाँधी जी का ब्रह्मचर्य का प्रयोग? उठे थें विवाद

‌‌प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने महात्मा गांधी के बारे में कहा था कि आगे आने वाली पीढ़ियां शायद ही मुश्किल से यह विश्वास कर संकेंगी कि गांधी जैसा हाड मांस का कोई व्यक्ति धरती पर आया होगा । गांधी के अद्भुत व्यक्तित्व जिसके बारे में वायसराय माउंटबेटन ने कहां था कि गाँधी जादूगर है, अगर गांधी कोलकाता से वापस दिल्ली लौट आया तो भारत के बंटवारे के मामले में नेहरू और पटेल भी समझौते से पलट जाएंगे। गांधी ऐसा व्यक्तित्व जिसके जीवन दर्शन से भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों ने गुलामी से मुक्ति पाई थी ।अफ्रीका महाद्वीप के कई देश जिन्होंने गांधी फिलासफी के अनुसरण से ही अपने को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया था।

दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला ने 90 के दशक में अपने देश को एक लंबे गुलामी काल से गांधीवादी आंदोलन से अपने देश को गुलामी से मुक्त कराया था। हम म्यांमार देश की बात करें तो कुछ बरसों पूर्व आँग सान सूं की ने भी अपने देश को गांधीवादी आन्दोलन से ही सैन्य शासन से मुक्त दिलाकर प्रजातांत्रिक देश में तब्दील कर पाया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले 4 जून 1944 को सिंगापुर से रेडियो द्वारा संबोधित करते हुए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था तब से उन्हें भारत में राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाने लगा । इसी प्रकार रविंद्र नाथ टैगोर ने भी गांधी को सबसे पहले महात्मा कहकर संबोधित किया था । तब से उनके नाम के आगे महात्मा संबोधन लग गया था । गांधी जी ने अपनी दुर्बलताओं के बारे में भी कभी नहीं छिपाया । गांधी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में अपनी कामुकता के बारे में खुलकर बताया ।

2 अक्टूबर 18 69 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनचंद करमचंद गांधी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई करने के बाद बिट्रेन चले गए जहां उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौट आए । मुंबई में उन्होंने वकील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की ,परंतु भ्रष्टाचार के चलते उनका वकालत में मन नहीं लगा और उन्होंने वकालत पेशे को छोड़ दिया । गांधीजी रूसी दार्शनिक टॉलस्टॉय और गीता के दर्शन से बहुत अधिक प्रभावित थे । गांधीजी बाद में एक निजी कंपनी के मालिक के कहने पर उन्होंने उनकी कंपनी में नौकरी कर ली। कंपनी के मालिक ने उन्हें दक्षिण अफ्रीका में भेज दिया जहां उन्होंने अश्वेत लोगों के साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ उनके न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। 1915 में फिर गांधी जी अपने देश भारत लौट आए और कांग्रेस में शामिल होकर भारत की स्वाधीनता के लिए कई आंदोलन खड़े किये । गांधीजी महामानव होने के बावजूद भी उनसे कुछ चूकें भी हुई थी ।

जैसे कि असहयोग आंदोलन में खिलाफत के मुद्दे को शामिल करना । गांधी जी ने तुर्की के खलीफा को हटाने के विरोध में भारत में कांग्रेस से मुसलमानों को जोड़ने के लिये ख़िलाफ़त के मुद्दे को भी जोड़ दिया । इस मसले के शामिल होने से हिंदू मुस्लिम एकता तो नहीं हुई बल्कि आंदोलन में सांप्रदायिकता का प्रवेश हो गया । आंदोलन की समाप्ति के बाद कोटा से लेकर कानपुर ,कोलकाता तक सांप्रदायिक दंगे हुए , हजारों लोगों की जाने गई । केरल के मालाबार तट पर धर्मांध मुस्लिम मोपलाओं ने हिन्दू जमीदारों और वहां के हिंदू नागरिकों पर हमला बोल दिया जिसमें तकरीबन छह हजार निर्दोष हिंदू मारे गए । अफशोस कि गांधी जी और उनकी कांग्रेस ने इस कुकृत्य की निंदा तक नहीं की। गांधी जी का सबसे विवादास्पद प्रयोग उनका ब्रह्मचर्य का प्रयोग था , जिसमें वे अपनी ब्रम्हचर्य की मजबूती जानने के लिये प्रयोग करते थे ।

उन्होंने अपनी पोती मनुबेन के साथ भी ऐसे प्रयोग किये वे ब्रह्मचर्य के प्रयोग में कई औरतों को अपने साथ निर्वस्त्र अपने बिस्तर पर लिटाते थे ।उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों में उनकी पौत्री मनूबेन, सुशीला नैयर सहित कई महिलाएं शामिल हुई थी । बाद में यही सुशीला देश की स्वास्थ्य मंत्री बनी । गांधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग का खुलासा गांधी जी की पौत्री मनूबेन की डायरी से ही हुआ था जिसमें गाँधी जी के हस्ताक्षर थे। हालांकि गांधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के दौरान कई लोग यह राज जानते भी थे । कई लोग गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग से अप्रसन्न भी थे। 25 जनवरी 1947 को सरदार पटेल ने ब्रह्मचर्य के प्रयोग पर आपत्ति जताते हुए गांधी जी को एक पत्र लिखा था कि वह ऐसा प्रयोग करना बंद कर दें।

गांधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग में कई महिलाएं शामिल हुई थी और कई महिलाएं एक बार प्रयोग के बाद अपने आप को तैयार भी नहीं कर पाती थी । कुछ महिलायें तो गांधी के इस प्रयोग में अपना एकाधिकार चाहती थी और दूसरी महिलाओं से जलती थी । सुशीला नैयर भी उनमें से एक थी। गाँधी जी ने भारत में और दक्षिण अफ्रीका में कुल सत्रह अनशन और उपवास किये थे । जिसमें से 1924, 1933 और 1943 के अनशन 21- 21 दिन के थे। 1943 के पुणे के आँगा खान महल के अनशन में गाँधी जी की हालत इतनी ज़्यादा बिगड़ गईं कि डॉक्टरों ने उन्हें
मृत घोषित कर दिया गया था ।इसकी सूचना भी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को दे दी गई लेकिन वह चमत्कारिक तरह से जी उठे थे।

रिसर्च और स्क्रिप्ट – मुनीष त्रिपाठी

You may also like

Leave a Comment