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बिहार चुनाव और उपचुनावों का क्या है भारतीय राजनीति पर असर , क्या बिखरा विपक्ष मोदी का कर सकेगा भविष्य में मुकाबला ?

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बिहार चुनाव और उपचुनावों का क्या है है भारतीय राजनीति पर असर
बिहार चुनाव और उपचुनावों का क्या है है भारतीय राजनीति पर असर

बिहार : बिहार विधानसभा के मुख्य चुनाव और कई राज्यों के उपचुनावों के परिणाम स्पष्ठ संकेत दे रहे है कि मोदी के नेतृत्व वाला एनडीए लगातार देश की 6 साल से ज्यादा सत्ता संभालने के बावजूद भी सत्ता विरोधी लहर का उस पर असर नही दिखाई दे रहा । बल्कि ये चुनाव परिणाम मोदी ,एनडीए और भाजपा के विस्तार और स्थिरता की ओर ही संकेत दे रहे है । बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम में एनडीए काँटे की टक्कर में महागठबंधन से जीत तो गयी परंतु साथ ये परिणाम तेजस्वी को कम उम्र में कुशल राजनेता के रूप में भी स्थापित कर गए ।

तेजस्वी के उभार ने संकेत दिए है कि वे आगे भी एनडीए के मजबूत रोढ़ा बनेंगे । जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है वह तमाम विरोधाभासों, मुश्किलों के बीच भी ताकतवर होकर उभरी है । जब हम यूपी के विधानसभा उपचुनावों पर पैनी दृष्टि डालेंगे तो पता लगता है कि बिखरा हुआ विपक्ष अभी योगी के नेतृत्व वाली सरकार को चुनौती देनें में सक्षम नहीं है। यूपी के कुल सात विधानसभा में छह पर विजयी बीजेपी उम्मीदवार लगभग पन्द्रह हजार से लेकर इकत्तीस हजार से ज्यादा मतों से जीते है। वहीं दूसरी ओर एकमात्र सीट पर विजयी सपा प्रत्याशी, जौनपुर की मल्हनी विधानसभा से मात्र 4,632 मतों से ही निर्दलीय उम्मीदवार धनंजय सिंह से जीत सका ।

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यहाँ बीजेपी तीसरे नम्बर पर रही । इस सीट पर बीजेपी का कमजोर रहने का कारण धनजंय का वहाँ के सवर्ण खासकर क्षत्रिय मतदाताओं पर खासा प्रभाव होना है ।इस सीट पर क्षत्रिय वोट काफी तादात में है, इसलिये बीजेपी यहाँ लड़ाई में भी नहीं रही। अन्य छह सीटों में से तीन पर सपा , दो पर बसपा तथा एक सीट पर कांग्रेस , भारी मतों के अंतर से दूसरे नम्बर पर रही । कई राज्यों के उपचुनावों में भाजपा ने पहले के मुकाबले अपनी पकड़ और मजबूत की है । केवल उड़ीसा, झारखण्ड, हरियाणा में वह जीत नहीं सकी । यहाँ तीनों प्रदेशों में मात्र पाँच सीटों पर ही चुनाव हुए थे । हरियाणा से कांग्रेस के लिये अच्छी खबर आई । यहाँ मात्र एक सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बीजेपी को हराया ।

सबसे चौकाने वाले और भाजपा के लिये सबसे अहम रखने वाले चुनाव परिणाम पूर्वोत्तर के छोटे राज्य मणिपुर से आये यहाँ पाँच विधानसभा सीटों पर हुए चुनावों में से चार सीट पर बीजेपी जीत गयी जबकि एक पर निर्दलीय जीता । यहाँ भाजपा का अन्य राज्यों के मुकाबले संगठन ज्यादा मजबूत नहीं है । भाजपा लम्बे अरसे से दक्षिण में विस्तार करने का सपना संजोए हुए है लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद भी भाजपा कर्नाटक के अलावा दक्षिण के राज्यों में कहीं भी अपनी जड़ें नहीं जमा पाई । तेलंगाना के एकमात्र दुब्बाक विधानसभा सीट पर भाजपा के माधवानेनी रघुनंदन राव विजयी रहे । उन्होंने सत्तारूढ़ टीआरएस के सोलिपेटा रामलिंगा को पराजित किया । खास बात यह है कि इस सीट को बीजेपी ने टीआरएस से छीनी है ।

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इस सीट पर टीआरएस विधायक के निधन के बाद चुनाव हुए थे । भाजपा के लिये यहाँ जीतना सभी राज्यों में हुए उपचुनाव में सबसे महत्वपूर्ण है लम्बे अरसे से सत्तारूढ़ टीआरएस के लिये खतरे का संकेत ही नही बल्कि तेलंगाना में भविष्य में बीजेपी के उभार के भी संकेत है । आगामी कुछ महीनों बाद बंगाल में विधानसभा के आम चुनाव प्रस्तावित है । पड़ोसी बिहार में अपेक्षाकृत कम सीटों पर लड़ने वाली ज्यादा सीटों पर जीतने वाली बीजेपी, बंगाल में ममता के लिये बड़ी चुनौती बनने के संकेत दे रही है । समूचे भारत की राजनीति पर उपचुनाव और बिहार के आम चुनाव के परिणामों के मद्देनजर देखें तो मोदी एकबार फिर गेम चेंजर और अजेय योद्धा साबित हुए है।

कोरोना महामारी को सही ढंग से न सम्भालने के आरोप, कमजोर अर्थव्यवस्था और बेतहाशा बेरोजगारी के बावजूद जनता ने मोदी के नेतृत्व को फिर स्वीकार किया है । इसका मतलब यह है कि विपक्षी दल अभी भी पीएम मोदी का विकल्प नहीं बन पा रहे है। विपक्षी दल , जनता के भीतर आशा जगाने और विश्वास दिलाने में नाकामयाब रहे है कि वे उनकी मुश्किलें समाप्त कर सकेंगे । लगता है कि विपक्षी दलों की राष्ट्रीय मुद्दों पर मोदी के मुकाबले स्वीकार्यता नहीं है । ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों की अस्पष्ट रवैये से उनकी विश्वसनीयता जनता के बीच लगातार घट रही है । कोरोना काल में भारत की अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हुई है , अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है। रोजगार के अवसर घटे है ।

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बेरोजगारी में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। जनता बेरोजगारी से उत्पन्न हताशा को बहुत लंबे समय तक सहन नहीं कर सकती यदि मोदी सरकार औऱ एनडीए की राज्य सरकारों ने बेरोजगारी के मुद्दों को हल करने ज्यादा लम्बा समय लगाया और विकास के पहिये को तीव्र न किया तो जनता का आक्रोश भारी पड़ सकता है फिर जनता राष्ट्रीय मुद्दों के एवज में घरेलू मोर्चे को ही तरजीह देगी इसलिये एनडीए को लगातार सत्ता में रहना है तो राष्ट्रीय मुद्दों के साथ 2 घरेलू मोर्चे पर भी सफल होना ही होगा ।

मुनीष त्रिपाठी की स्पेशल रिपोर्ट

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