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शिक्षा के साथ युवा शक्ति के पास व्यावहारिक ज्ञान जरुरी : योगी

by Tejas Khabar
शिक्षा के साथ युवा शक्ति के पास व्यावहारिक ज्ञान जरुरी : योगी

लखनऊ । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि चरित्र एवं सर्वांगीण विकास के लिये युवा शक्ति के पास शिक्षा के साथ व्यावहारिक ज्ञान जरुरी है और यह कार्य आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम,केंद्र-राज्य विश्वविद्यालय आदि कर सकते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम- 2024 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुये योगी ने कहा कि शिक्षण संस्थान युवाओं को शिक्षित तो बना दे रहे हैं, डिग्री व सर्टिफिकेट दे रहे हैं पर जब छात्र उच्च शिक्षण संस्थान से बाहर आता है तो उसके पास ज्ञान नहीं होता कि अब क्या करना है। यह कार्यक्रम उस भटकाव से दूर करने का माध्यम है। उसके चरित्र व सर्वांगीण विकास के लिए मंथन करें। केवल शिक्षित ही नहीं, बल्कि उसे ज्ञानवान भी बनाना है। वह व्यावहारिक ज्ञान से परिपूर्ण हो। जब वह शिक्षण संस्थान से निकले तो भारत के ऐसे नागरिक के रूप में खुद को जाने जो आत्मविश्वास से भरपूर हो। जीवन के जिस भी क्षेत्र में जो जिम्मेदारी दी जाए, वह आत्मविश्वास के साथ उसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर लक्ष्य तक पहुंचाने में अपना योगदान दे सके। यह कार्य उच्च शिक्षण संस्थान से जुड़े आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम, केंद्र-राज्य विश्वविद्यालय आदि कर सकते हैं।

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उन्होने कहा कि भारत के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए शिक्षण संस्थानों के पास फिर से अवसर है। यदि हमने दायित्वों को समझ लिया तो कोई ताकत 2047 तक भारत को विकसित बनने से नहीं रोक सकती। जब देश आजादी का शताब्दी महोत्सव मना रहा होगा तो हमें कैसा भारत चाहिए। उस भारत के लिए हमारे स्तर पर क्या योगदान हो रहा है। विकसित भारत की परिकल्पना साकार करने के लिए हर भारतवासी के स्तर पर क्या भूमिका होनी चाहिए। यह केवल देश के नेतृत्व का ही नहीं, बल्कि राज्यों, जनपदों, गांवों, व्यक्ति व शिक्षण संस्थानों का भी कार्य है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जो व्यक्ति जहां भी सेवा प्रदान कर रहा है। यदि अपने दायित्वों को सही ढंग से समझ सके तो 2047 में दुनिया की कोई ताकत भारत को विकसित देश के रूप में स्थापित करने में रोक नहीं सकती।

योगी ने कहा कि लखनऊ में यह आयोजन भारत की उस प्राचीन परंपरा का स्मरण कराता है, जिसे सदियों पूर्व यहां से 70 किमी. दूर नैमिषारण्य में 88 हजार ऋषियों ने मंथन के माध्यम से भारत की वैदिक परंपरा को लिपिबद्ध करने का कार्य किया था। वहीं से स्वर फूटे थे कि आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः… यानी ज्ञान प्राप्त करने के लिए सभी दिशाओं को खुला रखना चाहिए। एक बार फिर से इसकी शुरुआत देश के हृदय स्थल उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम से होने जा रही है। इसे हम विभिन्न ग्रंथों के माध्यम से देख रहे हैं। जब संसाधन नहीं थे तो 88 हजार ऋषियों ने कई वर्ष रहकर मंथन से जो अमृत निकाला, वह भारत का अमर ज्ञान है। हमारे पास वैदिक ज्ञान का जो भरपूर भंडार है, जो मानवता को आज भी नई राह दिखा सकता है। वह हमारे पास धरोहर के रूप में है। उस धरोहर को किस रूप में बढ़ा सकते हैं, इस पर हमें तैयार होना होगा।

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उन्होने कहा कि अगले तीन-चार वर्ष के अंदर भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। नेतृत्व बदलने से कैसे लोगों के मन में विश्वास पैदा किया जा सकता है। 2014 के पहले और बाद के भारत का अनुभव आप कर सकते हैं। 2014 के पहले भारत के अंदर सामान्य जन के मन में अविश्वास का वातावरण व असमंजस की स्थिति थी। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि देश कहां जा रहा है। सीमाएं असुरक्षित थीं। किसी भी क्षेत्र में कोई दिशा नहीं थी। दुनिया में भारत के पासपोर्ट की कोई कीमत नहीं थी। कोई मान्यता देने को नहीं तैयार था। आज नेतृत्व भारत के अंदर जनविश्वास का प्रतीक बना है। दुनिया के अंदर भारत का गौरव को किस रूप में पुनर्स्थापित करता है। भारत के पासपोर्ट का गौरव, बढ़ा है। उसे मान्यता देना प्रारंभ किया है। प्रवासी भारतीय भी मानते हैं कि अब उन्हें सम्मान मिलता है। यदि समाज का हर व्यक्ति अपने दायित्वों का निर्वहन करने लग जाए तो हर कुछ हो सकता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कभी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान भारत में हुआ करते थे। कौन सा ऐसा देश, मत-मजहब या संप्रदाय है, जो 5-12 हजार वर्ष पूर्व के गौरवशाली इतिहास को दुनिया के सामने रख सकता है। अभी 22 जनवरी को पीएम मोदी के करकमलों से अयोध्या में प्रभु श्रीरामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को देश-दुनिया ने देखा है। त्रेतायुग हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है। भगवान श्रीराम त्रेतायुग के अंत में हुए थे। न जाने कितने युग बीत चुके हैं, लेकिन हम परंपरा के वाहक बने हुए हैं। वैदिक परंपरा, ग्रंथों, शास्त्रों, स्मृतियों, पुराणों के माध्यम से इतिहास मौजूद है। हमने उस परंपरा को बढ़ाने का कार्य कहीं न कहीं रोक सा दिया है। हमने अपने पर गौरव की बजाय उसे हेय दृष्टि से देखा और पराये को महत्व देना प्रारंभ किया। गुलामी की मानसिकता मन में इस कदर घर कर गई कि हमने भारतीयता को महत्व देना बंद कर दिया।

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उन्होने कहा कि विद्या भारती छोटे से शिशु मंदिर से प्रारंभ होता है और देश-दुनिया के अंदर भारतीय व भारतीयता के उच्चतम शिक्षा का केंद्र बना हुआ है। आज देश में अनुकूल वातावरण है। संसद व विधानसभाओं में अब राष्ट्रगान-राष्ट्रगीत पर विवाद नहीं होता, लेकिन एक समय वह भी था, जब सरस्वती शिशु मंदिरों व विद्या भारती के शिक्षण संस्थानों में ही केवल वंदे मातरम होता था। देश की आजादी का अमृत मंत्र बने इस गीत पर भी स्वतंत्र भारत में भी विवाद होता था। सरस्वती वंदना व वंदे मातरम इस राष्ट्रगीत को सरस्वती शिशु मंदिर व विद्या भारतों के संस्थानों ने जीवित बनाकर रखा। आज उसका राष्ट्रव्यापी स्वरूप देखने को मिलता है।

विधानसभा और संसद की कार्रवाई का हिस्सा बना है। लोग आत्मसात करते हुए उससे नई प्रेरणा प्राप्त करते हैं। जहां कोई नहीं पहुंच पाया, वहां विद्या भारती और उसके प्रकल्प पहुंचे जो एकल विद्यालय के माध्यम से वनवासी, गिरवासी, दुर्गम क्षेत्रों में आगे जाकर उसे आगे बढ़ाया। शिक्षण के माध्यम से राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य किया। सरकार का कोई प्रोत्साहन नहीं, फिर भी अपने बल पर कि मैं भी देश का नागरिक हूं और देश के प्रति हमारी भी जिम्मेदारी बनती है। इसके निर्वहन के लिए विद्या भारती ने आरएसएस के नेतृत्व व मार्गदर्शन में इस कार्यक्रम को गांव-गांव, जन-जन तक पहुंचाने का अभिनव कार्यक्रम किया।

इस अवसर पर भारत सरकार के शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह, प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, कैबिनेट मंत्री संजय निषाद, स्वतंत्र देव सिंह, राज्यमंत्री रजनी तिवारी, विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश चंद्र शर्मा आदि मौजूद रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय ने अतिथियों का स्वागत किया।

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