मथुरा। ठाकुर जी को भीषण गर्मी से निजात दिलाने के लिए ब्रज के मन्दिरों में इन दिनों फूल बंगला बनाने की होड़ सी लगी हुई है। फूल बंगले की शुरूआत लगभग 500 वर्ष पहले स्वामी हरिदास ने की थी। वे जंगल से तरह तरह के फूल चुनकर लाते थे और फिर उनसे ठाकुर का अनूठा श्रंगार करते थे। धीरे धीरे यह परंपरा अन्य मन्दिरों में विशेषकर सप्त देवालयों में भी शुरू हुई तथा राधारमण मन्दिर के विगृह को प्रकट करनेवाले गोपाल भट्ट गोस्वामी ने इसमें कुछ परिवर्तन कर दिया था और बंगले को और आकर्षक बनाया था।
आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि हरिदासीय सम्प्रदाय के 15वें आचार्य गोस्वामी छबीले बल्लभ महराज फूल बंगलों के अनूठे कलाकार थे तथा उन्होंने फूल बंगलों को नये कलेवर में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। बाबा कृष्णानन्द अवधूत, सेठ हरगूलाल बेरीवाला, अर्जुनदास, रामजीलाल, राधाकृष्ण गाडोदिया आदि ने फूल बंगला परंपरा को नया कलेवर दिया। पिछले दो दशक से इसमें और परिवर्तन हुआ और आज ब्रज के मन्दिरों में इतने आकर्षक बंगले बनने लगे है कि भक्त बंगले में विराजमान ठाकुर को देखकर धन्य हो जाता है।
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उन्होंने बताया कि सामान्यतया फूल बंगला बनाने में रायबेल, मोतिया, माेगरा, मौलश्री, लिली, रजनीगंध, गुलाब एवं गेंदे के फूलों का प्रयोग किया जाता है पर कुछ बंगले अति भव्य बनाये जाने लगे हैं तथा इनके लिए बंगलौर , कलकत्ता तथा विदेश तक से फूल मंगाए जाते हैं। इन बंगलों के बनने में आनेवाला खर्च भक्तों द्वारा वहन किया जाता है तथा ठाकुर की विभिन्न प्रकार की सेवाओं कें ठाकुर को शीतलता प्रदान करने के लिए बंगला सेवा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इन बंगलों को कारीगर बनाते हैं तथा ये दो या तीन मंजिल तक के बनते है। फूलों की लड़ी शीशम या सागवान की लकड़ी पर बने फ्रेम पर लपेटकर बनाई जाती है तथा तीन मंजिल के बंगलों में ऊपर जाने की सीढ़ियां तक बनी होती हैं।बंगला बनाने में केले के पेड़ के कोमल तने का भी प्रयोग किया जाता है। फूल बंगले के माध्यम से कान्हा की लीलाओं बैनीगूंथन, गौचारण, महारास, कालिया मान मर्दन, चीर हरण , गजेन्द्र मोक्ष आदि का निरूपण किया जाता है।
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बांके बिहारी मन्दिर में पहले तो बंगले केवल जगमोहन तक ही सीमित थे किंतु धीरे धीरे सजवाट में चौक को भी शामिल कर लिया गया तथा व वर्तमान में ये बंगले मन्दिर के बाहर चबूतरे तक बनने लगे हैं। बिहारी जी मन्दिर में पहले फूल बंगले केवल शयनभोग सेवा में ही बनते थे किंतु पिछले कुछ वर्षों से ये अब राजभेाग सेवा में भी बनने लगे हैं। फूल बंगले में ठाकुर जी को जगमोहन में विराजमान किया जाता है तथा मन्दिर के जगमोहन से चौक तक गुलाब जल की वर्षा रूक रूककर होती रहती है। जगमोहन इत्र की खुशबू से आच्छादित होता रहता है ।
राधारमण मन्दिर वृन्दावन के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि मन्दिर में फूल बंगला बनाने में अधिकतर केले के तने के अन्दर के भाग का प्रयोग होता है जिससे जब इस पर प्रकाश पड़ता है तो बंगला चांदी का सा बना मालूम पड़ता है। आम का मौसम शुरू होते ही इस मन्दिर में आम का बंगला बनाने की होड़ सी लग जाती है। बाद में यही आम भक्तों में प्रसाद स्वरूप लुटाये जाते हैं।वर्तमान में मन्दिर में आम के बंगले अधिक संख्या में बन रहे हैं।यहां पर भी बंगले के वातावरण को सुगन्धित किया जाता है।राधा बल्लभ, राधा दामोदर, गोपीनाथ,मदनमोहन, राधा श्यामसुन्दर के बंगले अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
दानघाटी मन्दिर के सेवायत आचार्य पवन कौशिक ने बताया कि इस मन्दिर का गर्भ गृह छोटा होने के कारण फूल बंगले केवल एक मंजिल के ही बनते हैं तथा ठाकुर को अधिक से अधिक शीतलता प्रदान करने के लिए बंगला हरीतिमायुक्त होता है। उन्होंने बताया कि मुकुट मुखारबिन्द मन्दिर में गर्भगृह बड़ा होने के कारण वहां पर तीन मंजिल तक के बंगले बनाए जाते हैं।
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उन्होंने बताया कि फूल बंगले के समय में राजभोग में कच्ची रसोई और शयन भोग में पक्की रसोई की व्यवस्था होती है साथ ही विभिन्न प्रकार के शर्बत, आम रबड़ी , गुुलकन्द, तथा ऋतु के विभिन्न फलों का भी प्रयोग किया जाता है । भक्त की इच्छा के अनुरूप ठाकुर को गोलगप्पे, दही बड़ा, शिकंजी, भल्ले आदि का भोग भी लगाया जाता है।
गिर्राज जी की बड़ी परिक्रमा में पूंछरी पर स्थित श्रीनाथ जी मन्दिर में फूल बंगला देखते ही बनता है जहां वृन्दावन के मन्दिरों में फूल बंगले कारीगर बनाते हैं वही इस मन्दिर में बंगले का निर्माण स्वयं सेवायत आचार्य करते है तथा यहां का बंगल बनाने में चार से पांच घंटे तक लग जाते हैं ।ठाकुर का ऐसा अनूठा श्रंगार होता है कि भक्त गर्भगृह के सामने से हटने का नाम नही लेता है।
भारत विख्यात द्वारकाधीश मन्दिर में तो ठाकुर जी को शीतलता प्रदान करने के लिए बंगले के साथ प्रायः राजाधिराज नौका विहार करते हैं। कुल मिलाकर ब्रज के मन्दिरों में बननेवाले फूलबंगले भक्तों के लिए चुम्बक का काम करते हैं तथा इन बंगलों में अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए भक्त मन्दिरों की ओर खिंचे चले आते हैं।