इटावा। गंभीर बीमारियों और असहनीय पीड़ा से मुक्ति दिलाकर मरीजों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाले चिकित्सकों को प्राचीन काल से ही भगवान का दर्जा प्राप्त रहा है, लेकिन बदली परिस्थितियों में इस भरोसे की दीवार में दरार नजर आने लगी है। श्रद्धा, विश्वास और भरोसे को कायम रखने के लिए जहाँ चिकित्सकों की नि:स्वार्थ सेवा में कमी नजर आने लगी है वहीँ मरीजों और उनके परिजनों में भी पहले जैसा धैर्य नजर नहीं आता है । आई.एम.ए.-ए.एम.एस. के नेशनल वायस चेयरमैन डा. सूर्यकान्त का कहना है कि आधुनिक शोध, अत्याधुनिक उपकरणों और दवाओं ने जहाँ इलाज को और बेहतर बनाया है वहीँ पेशे को सिर्फ कमाई की नजर से देखने वालों ने मरीजों का भरोसा तोड़ने का काम किया है।
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गांवों और कस्बों में पेड़ के नीचे खाट और बदहाल अस्पतालों में इलाज का दौर से अब सेवेन स्टार होटल नुमा अस्पतालों तक आ पहुंचा है। इससे जहां एक ओर इलाज की गुणवत्ता बढ़ी है तो वही दूसरी ओर खर्चे भी बढ़े हैं। इन बेतहासा बढ़े खर्चों का अर्थशास्त्र भी डाक्टरों से मरीजों के सम्बन्धों का मनोविज्ञान और मानसिकता बदल रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि दस-दस साल गहन पढ़ाई करने वाले डाक्टरों को मरीजों से उचित तरह से सम्वाद करने के बारे में बिल्कुल भी प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। पढ़ाई के दौरान इन चिकित्सकों को प्रशासनिक प्रशिक्षण व कानूनी प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता, जिसके कारण आगे चलकर उन्हें मेडिको-लीगल व प्रशासनिक दायित्व निर्वाह करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज की तर्ज पर इंडियन मेडिकल सर्विसिज (आई.एम.एस.) की मांग कर रही है।
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चिकित्सकों से उनके रिश्ते पूरी तरह से व्यावसायिक हों फिर भी उसमें आत्मीयता, मानवीयता और परस्पर सम्मान का होना नितान्त आवश्यक है।
डॉ सूर्यकांत ने इस संबंध में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को पत्र लिखकर यह मांग की है कि डॉक्टर्स डे पर विभिन्न निजी मंच तो चिकित्सकों को सम्मानित करने को आगे आते हैं किंतु प्रदेश सरकार के स्तर पर किसी आयोजन का निर्देश नहीं दिया जाता है । इसलिए इस दिवस पर सरकारी आयोजनों और कार्यक्रमों के आयोजन के बारे में विचार करने की आवश्यकता है ।
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डाक्टर्स डे का जानें इतिहास :
महान भारतीय चिकित्सक डा. बी.सी. रॉय के जन्म एवं निर्वाण दिवस (1 जुलाई) को ”चिकित्सक दिवस“ के रूप में मनाया जाता है। वह एक प्रख्यात चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी, सफल राजनीतिज्ञ तथा समाजसेवी के रूप में याद किये जाते हैं। वह मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया (एम.सी.आई.) के अध्यक्ष भी रहे तथा राजनीतिज्ञ के रूप में कलकत्ता के मेयर, विधायक व पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री (1948 से 1962) भी रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए भी प्रतिदिन निःशुल्क रोगी भी देखते थे। उन्हें 4 फरवरी 1961 को भारत रत्न की उपाधि प्रदान की गयी।