नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मृत्युदंड के मामलों में कम करने वाले कारकों पर विचार करने के लिए अदालतों के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए एक मामले को बड़ी संविधान पीठ के समक्ष रखने का फैसला किया। मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया। शीर्ष न्यायालय ने दोषियों के पक्ष में परिस्थितियों को कम करने पर एक समान दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। न्यायालय ने निचली अदालत और उसके बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इसकी पुष्टि किये जाने के बाद एक दोषी इरफान की मौत की सजा के मामले में स्वयं संज्ञान लेते हुये यह बात कही।
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शीर्ष न्यायालय ने 17 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि मौत की सजा अपरिवर्तनीय है और अभियुक्तों को परिस्थितियों को कम करने पर विचार करने के लिए हर अवसर दिया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने इस मुद्दे पर यह कहते हुए संज्ञान लिया था कि यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि उन अपराधों के लिए कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार किया जाए जिनमें मौत की सजा की संभावना हो।
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मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय ने ‘संभावित शमन परिस्थितियों के संबंध में दिशानिर्देश’ तैयार करने के रूप में की थी, जिस पर विचार किया जाना था। मौत की सजा का फैसला करने के लिए आंकड़े जुटाना और सूचना के संग्रह में शामिल प्रक्रिया की जांच और संस्थागतकरण के लिए स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया गया है।