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स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता

स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता

शहीदों की शहादत का ही परिणाम है कि आज हम परितंत्रता की जंजीरों से मुक्त हैं
औरैया।  काकोरी ट्रेन एक्शन की 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लखनऊ में आयोजित काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह  कार्यक्रम को राजकीय मेडीकल कालेज सेहुद में मा0 जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व आमजन ने देखा व सुना । कार्यक्रम का शुभारंभ मा0 विधायिका गुड़िया कठेरिया, जिलाधिकारी डॉ० इन्द्रमणि त्रिपाठी व पुलिस अधीक्षक चारू निगम, जिला पंचायत अध्यक्ष कमल दोहरे ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इस अवसर पर मा0 विधायिका ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश को आजादी दिलाने में व काकोरी ट्रेन एक्शन में जिन क्रान्तीकारियों का योगदान रहा है, मैं उनको नमन करती हूं व उनके परिवारीजनों का अभिनन्दन करती हूं। इसके साथ ही औरैया की धरती भी ऐतिहासिक है यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी महत्वपूर्ण योगदान देश को आजादी दिलाने में रहा है, उनको भी मैं नमन करती हूं तथा यहां पर उपस्थित उनके परिवारीजनों का अभिनन्दन करती हूं।

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जिलाधिकारी डॉ० इन्द्रमणि त्रिपाठी ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन से सम्बन्धित अनेक ऐतिहासिक घटनाओं में काकोरी की घटना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 04 फरवरी, 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद में घटित चौरी-चौरा घटना के बाद गाँधीजी द्वारा 11 फरवरी, 1922 को बारदोली (गुजरात) में असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की गयी। इस निर्णय ने क्रान्तिकारी आन्दोलन को पुनः जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के दीवाने क्रान्तिकारी नवयुवक भारतमाता को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए कटिबद्ध थे। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शहीद चन्द्रशेखर आजाद, शहीद पं० रामप्रसाद बिस्मिल, शहीद ठाकुर रोशन सिंह, शहीद अश्फाक़ उल्ला खाँ, शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, आदि क्रान्तिकारी युवकों ने एक अखिल भारतीय सम्मेलन के बाद अक्टूबर, 1924 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र संयुक्त राज्य भारत की स्थापना करना था। इस संघर्ष को प्रारम्भ करने से पूर्व यह आवश्यक था कि व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये, नौजवानों को अपने दल में सम्मिलित कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाये एवं हथियारों को एकत्र किया जाये। इसके लिए धन की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इन क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के खजाने पर कब्जा करने का निश्चय किया। निरंकुश ब्रिटिश सत्ता को चेतावनी देने एवं धन एकत्र करने के निमित्त पहली बड़ी कार्यवाही काकोरी में की गयी।

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सरकारी खजाना हासिल करने की यह घटना काकोरी घटना के नाम से प्रसिद्ध है। 09 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ आ रही 8-डाउन ट्रेन को काकोरी के निकट रोक कर अंग्रेजी सरकार के रू0 4679-1-6 राशि के खजाने पर क्रांतिकारियों द्वारा कब्जा कर लिया गया। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी। प्रतिक्रियास्वरूप ब्रिटिश सरकार ने व्यापक स्तर पर गिरफ्तारियाँ की तथा प्रारम्भिक जाँच के उपरान्त क्रान्तिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। इन पर ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध युद्ध की घोषणा करने, राजनैतिक षडयन्त्र रचने, डकैती और हत्या आदि के आरोप लगाये गये। अंग्रेजी सरकार काकोरी के क्रांतिकारियों से इतना खौफ खा चुकी थी कि उसने क्रांतिकारियों को प्रदेश के अलग-अलग जेलों में यथा- शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को जिला जेल गोण्डा, शहीद रोशन सिंह को जिला जेल प्रयागराज, शहीद अश्फाक उल्ला खां को जिला जेल अयोध्या एवं शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को जिला जेल गोरखपुर में रखा गया। जेल में क्रान्तिकारियों ने खराब खाना मिलने एवं राजनैतिक बन्दी की श्रेणी प्रदान किये जाने को लेकर 16 दिन का अनशन किया। बाध्य होकर ब्रिटिश सरकार ने इनकी अनेक माँगों को स्वीकार कर लिया। इन क्रान्तिकारियों पर सेशन जज हैमिल्टन की अदालत में मुकदमा चलाया गया। इनकी पैरवी के लिए एक समिति भी बनायी गयी थी। सेशन जज हैमिल्टन ने 6 अप्रैल, 1927 को पं० राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फाँसी, शचीन्द्र नाथ सान्याल को आजीवन कालापानी, मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष, जोगेश चन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल, गोविन्द चरण, राजकुमार सिन्हा, रामकृष्ण खत्री को 10 वर्ष, विष्णु शरद दुबलिश, सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य को 7 वर्ष, भुपेन्द्र नाथ सान्याल, रामदुलारे त्रिवेदी, प्रेम कृष्ण खन्ना, बनवारी लाल, प्रणवेश कुमार चटर्जी और रामनाथ पाण्डे को 5 वर्ष कैद की सजा सुनायी।

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पूरक मुकद्दमें में अशफाक़ उल्ला खाँ को फांसी एवं शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा हुयी। शहीद चन्द्रशेखर आजाद को ब्रिटिश सरकार जीवित गिरफ्तार नहीं कर सकी। 27 फरवरी, 1931 को आजाद पार्क, प्रयागराज (अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद) में ब्रिटिश पुलिस के साथ सशस्त्र संघर्ष में चन्द्रशेखर आजाद को वीरगति प्राप्त हुयी।पूर्व में यह घटना काकोरी काण्ड के नाम से इतिहास में दर्ज थी। आजादी का अमृत महोत्सव आयोजन के अन्तर्गत मा० मुख्यमंत्री जी द्वारा इसे काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से सम्बोधित किया गया। वर्तमान में इसे काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाता है। 09 अगस्त, 2024 से काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ की शुरूआत हो रही है। अतः इसे सम्पूर्ण प्रदेश में विभिन्न गतिविधियों के साथ मनाया जा रहा है। इसी क्रम में जनपद में यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर देश के शहीदों को नमन करते हुए, देश के प्रति प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।  जिला पंचायत अध्यक्ष  ने कहा कि कानपुर की धरती ऐतिहासिक पौराणिक व क्रांतिकारी की धरती है, कानपुर में नानाराव साहब, तात्या टोपे, अजीमुल्ला खां तथा अजीजनबाई ने मुख्य भूमिका निभाई।
उन्होंने कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के स्थलों में से एक कानपुर था, कानपुर का क्रान्ति में अहम योगदान रहा है। 1857 के विद्रोह की भूमिका व योजना कानपुर के बिठूर में ही बनाई गई थी उन्होंने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक देश के लिए कानपुर के अहम योगदान को बुलाया नहीं जा सकता है। आज भी नानाराव घाट इसकी गवाही देता है 1857 विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना थी। आज हम लोग उन देश के वीर सपूतों के योगदान को नमन करने व उनको याद कर श्रद्धासुमन करने के लिए एकत्रित हुए हैं इस कार्यक्रम को एक पर्व की तरह प्रत्येक वर्ष मनाया जाएगा। कार्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारिकजनों को अंग वस्त्र व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में  लखनऊ से आई टीम द्वारा स्वागत गीत व देशभक्ति के गीतों की प्रस्तुति दी गयी। इस अवसर मुख्य विकास अधिकारी राम सुमेर गौतम, अपर जिलाधिकारी (वि0/रा0) महेंद्र पाल सिंह, मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ० सुनील कुमार वर्मा, उप जिलाधिकारी सदर राकेश कुमार सहित सम्बन्धित अधिकारीगण व स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों के पारिवारिकजन, भूतपूर्व सैनिक, एनसीसी के छात्र-छात्राए, विभिन्न विद्यालयों के विधार्थीगण व जनसामान्य आदि उपस्थित रहे।
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