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लेखक, पत्रकार मुनीष त्रिपाठी की किताब ‘भरतपुर का सूरजमल’ का संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया विमोचन

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लेखक, पत्रकार मुनीष त्रिपाठी की किताब 'भरतपुर का सूरजमल' का संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया विमोचन

लेखक, पत्रकार मुनीष त्रिपाठी की किताब ‘भरतपुर का सूरजमल’ का संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया विमोचन

  • प्रयागराज के अलोपी बाग में हुआ विमोचन
  • ज्योतिषपीठ शंकराचार्य और पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी सहित कई हस्तियों ने किया विमोचन

दिबियापुर । इतिहास के महानायकों पर किताबें लिखने वाले लेखक एवं पत्रकार मुनीष त्रिपाठी की किताब ‘भरतपुर का सूरजमल’ का प्रयागराज में अलोपी बाग स्थित ज्योतिष पीठ के मठ में भव्यता से विमोचन हुआ । संघ प्रमुख मोहन भागवत और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने किताब का विमोचन किया । मंच पर बुलाकर संघ प्रमुख ने लेखक मुनीष त्रिपाठी से किताब के बारे में जानकारी प्राप्त की और शुभकामनाएं औऱ आशीर्वाद दिया । मंच के संचालक और विहिप के केंद्रीय मंत्री अशोक तिवारी ने कहा कि मुनीष त्रिपाठी ने अन्य पुस्तकें भी लिखी है। उन्होंने कहा कि कई महानायकों को इतिहास से ओझल कर दिया गया है। लेखक मुनीष त्रिपाठी इतिहास के अनछुए पहलुओं का गम्भीर विस्तृत अध्ययन और शोध के बाद पुस्तक लिखते है। विमोचन के दौरान मंच पर पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी, स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती , कथावाचक जितेन्द्रानन्द भी मौजूद थे । उनको पूर्व में उनकी पुस्तक ‘ विभाजन की त्रासदी ‘ जो भारत के दुखद विभाजन पर आधारित है उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिष्ठित के एम मुंशी पुरस्कार दिया गया था । ख्यातिप्राप्त हस्तियों के द्वारा भरतपुर का सूरजमल पुस्तक के विमोचन पर पूर्व मंत्री लाखन सिंह राजपूत, पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री रामबाबू यादव ,पूर्व सपा पूर्व कैबिनेट मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, समाजसेवी राघव मिश्रा, भाजपा नेता सतीश पाल , पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता चुन्नू, बसपा नेता रामकुमार अवस्थी, पूर्व सपा जिलाध्यक्ष अशोक यादव, पूर्व प्राचार्य डीपी सिंह , भाजपा नेता अवधेश शुक्ला, डा सत्यदेव राजपूत , विशाल दुबे आदि कई प्रतिष्ठित लोगों ने लेखक मुनीष त्रिपाठी की भूरि 2 प्रशंसा कर शुभकामनाएं दी है भारतीय इतिहास नायकों से भरा है। देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कई नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। यद्यपि एक कटुसत्य यह भी है कि ऐसे अनगिनत योद्धाओं को हमने विस्मृत कर दिया है। इतिहास की पुस्तकों में उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वे अधिकारी थे। मुगलों की गाथा गाते इतिहास में उन योद्धाओं को हाशिए पर रखा गया, जिन्होंने मुगलों की सत्ता को चुनौती दी थी। इन योद्धाओं की वीरता की गाथा को नई पीढ़ी के समक्ष लाना समय की आवश्यकता है।इतिहास में भुला दिए गए ऐसे ही महानायक हैं महाराजा सूरजमल। पत्रकार एवं लेखक मुनीष त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक ‘भरतपुर का सूरजमल’ में इन्हीं महानायक की कहानी को सामने लाने का प्रयत्न किया है। इतिहास में जीवन के तत्व छिपे होते हैं, लेकिन समस्या यह है कि बहुधा इतिहास की किताबें पढ़ना बोझिल भी लगने

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लगता है। मुनीष त्रिपाठी गहराई से इस बात को समझते हैं। यही कारण है कि उन्होंने इस महान योद्धा के बारे में बताने के लिए विषय को इतिहास का नहीं, अपितु उपन्यास का पुट दिया है। इतिहास के विभिन्न तथ्यों को एकत्र करते हुए उस समय की पूरी कहानी को बुना गया है। कहानी एक उपन्यास की तरह बढ़ती है। हर घटनाक्रम को एक सूत्र में पिरोते हुए आगे बढ़ाया गया है। लेखन की सुंदरता यही है कि जब पुस्तक में जाट युवती के अपहरण का घटनाक्रम आता है, तो पढऩे वाला भी उसी क्रोध से भर उठता है, जो उस काल के युवाओं के मन में था। वहीं आगे बढ़ते हुए जब लेखक उस अपहरण के मुख्य दोषी मथुरा के फौजदार मुर्शिद कुली खां से बदला लेने और उसकी हत्या का दृश्य बुनता है, तो इस लड़ाई का हिस्सा रहे हर लड़ाके जैसा ही संतोष एवं आह्लाद का भाव मन में आता है।वस्तुत: दिल्ली के निकट भरतपुर, आगरा, मथुरा क्षेत्र का इतिहास जाट सरदारों की शौर्य गाथा के बिना अपूर्ण है। उस दौर में कई राजघराने और छोटी-बड़ी रियासतें थीं, लेकिन किसी में भी औरंगजेब या अहमद शाह अब्दाली जैसे आतताई शासकों के विरुद्ध खड़े होने का साहस नहीं था। हिंदुओं को केवल जान-माल का ही खतरा नहीं था, बल्कि मुगल सैनिक हिंदू महिलाओं की अस्मिता को भी निशाना बना रहे थे। उसी दौर में इस अत्याचार का सामना करने के लिए जाट सरदारों ने मोर्चा संभाला। मुगल शासकों की दो राजधानियों दिल्ली और आगरा के बीच के क्षेत्र में इन जाट सरदारों ने उन्हें खुलकर चुनौती दी। कई बार जाट सेनाओं ने मुगलों को बुरी तरह दिल्ली के ही अंदर सिमटने को मजबूर कर दिया था। दुखद बात यह है कि इन वीरगाथाओं को इतिहास की पुस्तकों में पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया। शीर्षक से भले ही यह किताब महाराजा सूरजमल पर केंद्रित लगती है, लेकिन वस्तुत: इसका आयाम बड़ा है। कथानक को बुनने के क्रम में लेखक ने गोकुल सिंह के पराक्रम से शुरुआत की है। इसके बाद महाराजा सूरजमल की वीरता और उनके शौर्य को व्यापकता में समेटते हुए कहानी आगे उनके पुत्र जवाहर सिंह तक भी जाती है। महाराजा सूरजमल को मित्रता का आवरण ओढ़कर धोखे से मारा गया था। जवाहर सिंह पिता की मौत का बदला किस तरह लेते हैं, इसका भी उल्लेख किया गया है। असल में यह किताब उस समय के इतिहास को आंखों के सामने रख देती है। जाट योद्धाओं की रणनीति में समर्थ गुरु रामदास के योगदान की झलक और शिवाजी महाराज के प्रति जाट योद्धाओं में सम्मान एवं स्वीकार्यता भी इसमें स्पष्ट रूप ये दिखाई देती है । यह किताब समग्रता में जाट योद्धाओं की वीरता, रणनीति एवं युद्ध कौशल को दिखाती है। आजादी के अमृत वर्ष में इन महान योद्धाओं की कहानी का सबके समक्ष आना समयानुकूल भी बन पड़ा है। राष्ट्रभाव से पूर्ण मानस को यह पुस्तक निस्संदेह रोमांचित करेगी और इतिहास के उस गौरवशाली पन्ने से साक्षात्कार का अनुभव देगी।

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