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सोनिया ने कहा सत्य और न्याय की जीत है कृषि कानूनों का वापस होना

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सोनिया ने कहा सत्य और न्याय की जीत है कृषि कानूनों का वापस होना
सोनिया ने कहा सत्य और न्याय की जीत है कृषि कानूनों का वापस होना

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। पीएम के इस ऐलान के बाद कई राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया सामने आई है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार के इस फैसले को सत्य और न्याय की जीत करार दिया है। सोनिया गांधी ने कहा, ‘आज 700 से अधिक किसान परिवारों, जिनके सदस्यों ने न्याय के लिए इस संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति दी, का बलिदान रंग लाया है। आज सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत हुई है।’

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आज सत्ता में बैठे लोगों की ओर से बुना किसान-मजदूर विरोधी षडयंत्र भी हारा और तानाशाह शासकों का अहंकार भी। आज रोजी-रोटी और किसानी पर हमला करने की साजिश भी हारी। आज खेती-विरोधी तीनों काले कानून हारे और अन्नदाता की जीत हुई। पिछले सात सालों से बीजेपी सरकार ने लगातार खेती पर अलग-अलग तरीके से हमला बोला है। चाहे बीजेपी सरकार बनते ही किसान को दिए जाने वाले बोनस को बंद करने की बात हो, या फिर किसान की जमीन के उचित मुआवजा कानून को अध्यादेश लाकर समाप्त करने का षडयंत्र हो।

चाहे प्रधानमंत्री के वादे के मुताबिक किसान को लागत प्लस 50 फीसदी मुनाफा देने से इनकार कर देना हो, या फिर डीजल और कृषि उत्पाद की लागतों में भारी भरकम वृद्धि हो, या फिर तीन खेती विरोधी काले कानूनों का हमला हो। आज जब भारत सरकार के एनएसओ के मुताबिक किसान की औसत आय 27 रुपए प्रतिदिन रह गई हो और देश के किसान पर औसत कर्ज 74,000 रुपए हो तो सरकार और हर व्यक्ति को दोबारा सोचने की जरूरत है कि खेती किस प्रकार से सही मायनों में मुनाफे का सौदा बने। किसान को उसकी फसल की सही कीमत यानि एमएसपी कैसे मिले।

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किसान और खेत मजदूर को यातना नहीं, याचना भी नहीं, न्याय और अधिकार चाहिए। ये हम सबका कर्तव्य भी है और संवैधानिक जिम्मेदारी भी। प्रजातंत्र में कोई भी निर्णय सबसे चर्चा कर, सभी प्रभावित लोगों की सहमति और विपक्ष के साथ राय मशवरे के बाद ही लिया जाना चाहिए। उम्मीद है कि मोदी सरकार ने कम से कम भविष्य के लिए कुछ सीख ली होगी। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री और बीजेपी सरकार अपना राजहठ और अहंकार छोड़कर किसान कल्याण की नीतियों को लागू करने की ओर ध्यान देंगे, एमएसपी सुनिश्चित करेंगे और भविष्य में ऐसा कोई कदम उठाने से पहले राज्य सरकारों, किसान संगठनों और विपक्षी दलों की सहमति बनाई जाएगी।

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