मथुरा। राधारानी की नगरी वृन्दावन के प्राचीन दो सप्त देवालयोंमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अलग अलग तरीके से दिन में मनाई जाती है। राधारमण मन्दिर में जन्माष्टमी पर मन्दिर के सेवायत लाला के दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद देते हैं तथा इस मन्दिर से चरणामृत गृहण कर ही वे वृत की शुरूवात करते हैं वही राधा दामोदर मन्दिर में अभिषेक के बाद सेवायत इस पर्व को होली की तरह मनाते है।गोपाल भट्ट गोस्वामी, रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी आदि का विचार था कि लाला को आधी रात जगाकर उनका जन्म दिन मनाना ठीक नही है तथा जन्माष्टमी तो एक प्रकार से वर्षगांठ है इसलिए इन दो मन्दिरों में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
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राधारमण मन्दिर में जन्माष्टमी की शुरूवात मुख्य श्रीविग्रह के यमुना स्नान से होती है। इस मन्दिर में मुख्य श्रीविगृह का अभिषेक 27 मन दूध दही आदि मिश्रित पंचामृत से वैदिक मंत्रों के मध्य लगभग तीन घंटे तक किया जाता है। मन्दिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि लाला का अभिषेक होने के बाद चरणामृत को वृन्दावनवासियों और तीर्थयात्रियों में प्रसादी वस्त्र के साथ बांटा जाता है। इस चरणामृत को लेने के लिए सैकड़ों लोगों की लाइन लग जाती है।उन्होंने बताया कि चूंकि अभिषेक गाय के दूध दही से होता है इसलिए जन्माष्टमी के एक पखवारे पहले से ही सेवायत गांवों में जाकर गाय के दूध दही के लिए एडवांस में धनराशि दे आते हैं।
अभिषेक हो जाने के बाद लाला का श्रंगार गर्भ गृह के अन्दर ही किया जाता है तथा उन्हे विशेष पोशाक धारण कराई जाती है।श्रंगार के बाद लाला बाहर जगमोहन में आते हैं तथा सिंहासन में विराजमान होते हैं। इसके बाद उन्हें काजल लगाया जाता है तथा नजर न लगे इसलिए ’’राई लोन’’ उतारते हैं। इसके बाद मन्दिर के सेवायत लाला के दीर्घ आयु होने का आशीर्वाद देते हैं। ’’माई तेरो चिर जीवे गोपाल’’ मन्दिर के सेवायत के अनुसार इसके बाद सभी सेवायत ठाकुर से प्रार्थना करते हैं कि ’’ हे प्रभु आपके चरणों में हमारी सदैव रति मति ( मन बुद्धि) बनी रहे।’’ ठाकुर जी राजभोग अरागते हैं तथा मन्दिर में मौजूद सभी भक्तों को ’’किनका प्रसाद ’’ दिया जाता है। इस दिन ही उस प्रसादी वस्त्र के दर्शन होते हैं जिसे चैतन्य महाप्रभु ने गोपाल भट्ट गोस्वामी को दिया था।इस मन्दिर में शाम को सामान्य दर्शन होते हैं किंतु रात 12 बजे कोई कार्यक्रम नही होता है।
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राधा दामोदर मन्दिर में जन्माष्टमी दिन में निराले तरीके से मनाई जाती है। मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्ण बलराम गोस्वामी ने बताया कि इस मन्दिर में होनेवाले अभिषेक कार्यक्रम में अप्रत्यक्ष रूप से उन भक्तेंा को भी शामिल किया जाता है जो ठाकुर के अभिषेक के लिये दूध दही या पंचामृत की अन्य सामग्री लाते हैं इस सामग्री को अभिषेक की सामग्री में उनकी उपस्थिति में शामिल कर दिया जाता है।राधा दामोदर, राधा वृन्दावन चन्द्र, राधा माधव एवं राधा छैलचिकन के अभिेषेक विगृह को गर्भगृह से बाहर निकालकर जगमोहन में विशेष पात्र में उन्हें विराजमान किया जाता है तथा इनके साथ गिर्राज महराज को गिर्राज शिला के माध्यम से विराजमान किया जाता है।
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भाव यह है कि जीव गोस्वामी अपने ठाकुर राधा दामोदर का, कृष्णदास कविराज गोस्वामी अपने आरााध्य राधा वृन्दावन चन्द का्र, जैदेव गोस्वामी अपने ठाकुर राधा माधव का , भूगर्भ गोस्वामी अपने आराध्य राधा छैलचिकन का तथा सनातन गोस्वामी अपने आराध्य गिर्राज शिला के माध्यम से गिर्राज जी का पंचामृत अभिषेक करते हैं एवं उनके इस कार्य को मन्दिर के वर्तमान सेवायतगण सम्पन्न कराते हैं। उन्हेांने बताया कि चूंकि इस मन्दिर में पांच विगृहों का अभिषेक किया जाता है इसलिए यहां भी अभिषेक कार्यक्रम वैदिक मंत्रों के मध्य कई घंटे तक चलता है।
अभिषेक के बाद जहां चरणामृत को मन्दिर में उपस्थित भक्तों में वितरित कर दिया जाता है वहीं श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में सभी सेवायत एक दूसरे पर हल्दी मिश्रित पंचामृत डालते हैं और प्रसन्नता से नाच उठते हैं। इस मन्दिर में भी शाम की सेवा दैनिक सेवा की तरह होती है किंतु मन्दिर में रात 12 बजे किसी कार्यक्रम का आयोजन नही किया जाता है।कुल मिलाकर इन दो मन्दिरों में दिन में जन्माष्टमी मनाने के कारण स्थानीय भक्तेां के साथ ही तीर्थयात्रियों काा भारी समूह इन मन्दिरो में दिन में जन्माष्टमी मनाने के लिए आ जाता है तथा वृन्दावन का कोना कोना भक्ति रस से सराबोर हो जाता है।