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वीरभूमि में रक्षाबंधन के अगले दिन भाइयों के हाथों में सजती है राखियां

वीरभूमि में रक्षाबंधन के अगले दिन भाइयों के हाथों में सजती है राखियां

वीरभूमि में रक्षाबंधन के अगले दिन भाइयों के हाथों में सजती है राखियां

महोबा । भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन का त्योहार देश दुनिया मे भले ही सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है लेकिन बुंदेलखंड में यह दूसरे दिन विजय पर्व के रूप में आयोजित होता है। इस दौरान बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती है और कजली का विसर्जन भी करती है।
वीरों की भूमि बुंदेलखंड में त्योहारों को लेकर प्रचलित मान्यताओं और परंपराओं में राखी के पर्व का खास महत्व है। रक्षा सूत्र के रूप में यहां यह एक बहन द्वारा भाई की कलाई में बांधा जाने वाला धागा न होकर राष्ट्र के मान,सम्मान व स्वाभिमान का प्रतीक है। जिसमें 1200 वर्ष पूर्व दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान द्वारा उतपन्न किये गए संकट को महोबा के शूरवीर योद्धाओं आल्हा,ऊदल,ढेबा,मलखान आदि ने अपने शौर्य और पराक्रम से कीरत सागर के महत्वपूर्ण युद्ध मे विजय-श्री हासिल करके न सिर्फ चन्देलों की आन-बान-शान को बहाल रखा था ।

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बल्कि चन्देल साम्राज्य की यश कीर्ति का परचम चारो ओर फहरा दिया था। 841 साल पुरानी इस घटना की यादगार में आज भी महोबा एवं आसपास के क्षेत्र में रक्षा बंधन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा है। जगनिक शोध संस्थान के सचिव डा0 वीरेंद्र निर्झर कहते है कि “भुजरियों की लड़ाई” शीर्षक से इतिहास में प्रमुख अध्याय के रूप में दर्ज यह घटना सन 1182 ई0 की है। जब माहिल के उकसाने पर दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण कर दिया था। उसने तब चन्देल राजा परमाल को सूचना भेज युद्ध रोकने के बदले में नोलखा हार,लोहे को छुलाते ही स्वर्ण में बदल देने वाली पारस पथरी, और राजकुमारी चंद्रावल का डोला समेत पांच प्रमुख चीजें भेंट स्वरूप भेजने की मांग रखी थी। मातृभूमि पर आए संकट की सूचना पाकर कन्नौज में निर्वासित जीवन बिता रहे आल्हा-ऊदल का खून खोल उठा था। उन्होंने तब अपने चुनिंदा सैनिकों के साथ आनन-फानन में महोबा पहुंच पृथ्वीराज की सेना से भीषण युद्ध लड़ा और उसे बुरी तरह पराजित करके खदेड़ दिया था।

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डा निर्झर बताते है कि महोबा में यह युद्ध सावन की पूर्णिमा को लड़ा गया था। राज्य पर संकट होने के कारण तब यहाँ राखी का त्योहार नही मनाया जा सका और कजली का विसर्जन भी नही हो सका था। लेकिन कीरत सागर युद्ध मे मिली विजय-श्री से पूरे राज्य में उत्सव का माहौल छा गया। बुंदेलों ने यहां अगले दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया और उमंग उल्लास के साथ कीरत सागर सरोवर में कजली विसर्जित की। पूरे क्षेत्र में आज भी यह परम्परा कायम है। महोबा में तो इस अवसर पर प्रतिवर्ष ऐतिहासिक कजली मेले का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर कजली की आकर्षक शोभायात्रा निकाली जाती है।जिसमे दूर-दूर से लाखों की भीड़ जमा होती है।

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महोबा में नगर पालिका परिषद के चेयरमेन डा सन्तोष चोरसिया कहते है कि ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के महोबा के कजली मेला की ख्याति देश-दुनिया मे है। मान्यता है कि अजर-अमर वीर योद्धा आल्हा प्रतिवर्ष मेले में शिरकत कर कजली विसर्जन की परम्परागत रश्म को यहां पूरित कराते है। महोबा में कजली मेले का दो स्तर पर आयोजन होता है। इसमें कजली की पारंपरिक शोभायात्रा के आयोजन का दायित्व नगर पालिका तो मेले में विभिन्न प्रतियोगिताएं,गोष्ठियों,सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली महोबा संरक्षण एवम विकास समिति द्वारा किया जाता है। यहां कजली मेले के आयोजन की अबकी 843वीं वर्षगांठ है। इस बार मेला का एक पखवारे तक आयोजन होने की ब्यवस्था तय की गई है। नगर पालिका बोर्ड द्वारा इस बार कजली की शोभायात्रा को भव्य और आकर्षक बनाने तथा अन्य ब्यवस्थाओ पर 45 लाख रुपये व्यय किये जाने का प्रस्ताव पारित किया गया है।

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