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1930 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पग जालौन पहुंचे थे

1930 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पग जालौन पहुंचे थे

1930 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पग जालौन पहुंचे थे

जालौन। आज संपूर्ण भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है वही इस आजादी के पीछे बलिदान और त्याग की कहानी छिपी हुई है इस कहानी की एक कड़ी जालौन से भी जुड़ी हुईं है। जहां पर खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आकर लोगों से आंदोलन में शामिल होने की अपील की थी और महात्मा गांधी के अपील का लोगों पर कुछ इस कदर असर हुआ कि लोगों का जनसैलाब उनके कदमों के पीछे चल पड़ा और यह सफल आंदोलन आजादी की ओर अग्रसर हुआ वही इस दौरान कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के मित्र और परिवार के लोगों ने बताया कि कैसे महात्मा गांधी जालौन आए और उन्होंने लोगों के अंदर देश भावना को जागृत किया और अंग्रेजो के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था।

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दौर अगस्त 1930 का था, जब बापू महात्मा गांधी के पग इस धरती पर पड़े थे। जालौन कस्बे का वह छत्रसाल इंटर कालेज गांधी जी के असहयोग आंदोलन का बड़ा गवाह रहा। जहां उमड़ी भीड़ ने यह जता दिया था कि अब अंग्रेजों के अत्याचार का बदला लेकर रहेंगे। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी प्रमुख हिस्सेदारी निभाने वाले जालौन में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी रणनीति तैयार की गई थी। उन दिनों उरई शहर का एक प्रमुख स्थल था हनुमान मंदिर। इस हनुमान मंदिर के टीले पर जब बापू पहुंचे तो उन्हें देखने और सुनने के लिए लोगों को कारवां जुटने लगा था।

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बापू ने यहां टीले पर बैठकर अंग्रेजों से बगावत की रणनीति तयकर लोगों से सहयोग मांगा था। यह सहयोग था उनके असहयोग आंदोलन के लिए। उनके भाषण का इतना व्यापक प्रभाव जनमानस में पड़ा था कि अंग्रेजों भारत छोड़ों के गगनभेदी नारे लगने लगे थे। वहीं जालौन के एक मैदान में भी बापू ने असहयोग आंदोलन के लिए जनसभा की थी। इस आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रभाव छात्रों और मजदूरों पर पड़ा था। यहां के छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर अंग्रेजों के खिलाफ चलने वाले आंदोलन में प्रतिभाग किया था। आजादी मिलने के बाद यहां पर चबूतरे का निर्माण कराया गया जो आज भी आजादी की कहानी सुनाता है।

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