अहमदाबाद। कोरोना महामारी से दुनिया-भर में उथल पुथल के बावजूद भारत में रॉकेट सरीखी तेज़ी से बढ़ रहे ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र की सालाना कमाई एक अरब डॉलर के पार हो गयी है और इसे खेलने वालों की संख्या के अगले साल तक 50 करोड़ के ऊपर पहुंचने का अनुमान है पर इसके बावजूद इसको कई तरह की पेचीदगियों और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
लंदन आधारित पेशेवर सेवा प्रदाता अर्न्स्ट एंड यंग और भारतीय व्यापार जगत की अग्रणी संस्था फ़िक्की की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र ने वर्ष 2019 के दौरान 40 प्रतिशत की दर से वृद्धि की। वर्ष 2022 तक इसके क़रीब तीन गुना बढ़ कर 18700 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद थी। इसे खेलने वालों की संख्या वर्ष 2010 के मात्र ढाई करोड़ से क़रीब 14 गुना बढ़ कर अब 36 करोड़ से अधिक हो गयी है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार सस्ते डाटा और स्मार्ट फ़ोन की उपलब्धता के चलते यह संख्या अगले साल तक 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगी। भारत आधारित अग्रणी गेमिंग प्लेटफार्म एमपीएल ने मात्र दो साल में इंडोनेशिया में जबरदस्त सफलता के बाद हाल में अमेरिका में भी अपना ऐप लांच कर दिया है।
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पर विशेषज्ञों का मानना है कि बेतहाशा बढ़त के बावजूद देश में इसके समक्ष दो प्रमुख चुनौतियां भी हैं। पहला- ऑनलाइन गेम्स सम्बंधी कानूनों को लेकर स्थिति का पूरी तरह स्पष्ट नहीं होना। और दूसरा – इसी वजह से इस पर कुछ राज्यों में कई तरह के प्रतिबंध आदि का लगना।
फ़िक्की और अर्न्स्ट एंड यंग की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार महामारी की विश्वव्यापी चुनौतियों के बावजूद ऑनलाइन गेमिंग ने भारत में 2020 में भी 18 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की। खेलने वालों की संख्या भी 20 फ़ीसदी बढ़ी। हालांकि राजस्व वृद्धि दर पिछले साल की तुलना में कुछ कम हो गयी और इसकी वृद्धि का अनुमान भी पूर्व अनुमानित 40 प्रतिशत से घट कर 27 प्रतिशत हो गया। इसका कारण तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में प्रतिबंधों को माना जा रहा है।
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बहुत कम समय में ही ‘यूनिकॉर्न क्लब’ में शामिल होने यानी एक अरब डॉलर के बाज़ार मूल्य से ऊपर तक पहुंचने वाली भारतीय गेमिंग कंपनी एमपीएल के नीति और कानून विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डी जे मैनाक ने कहा कि गेमिंग सेक्टर को प्रतिबंधों नहीं कारगर नियमन की ज़रूरत है। इसके बढ़ने से अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो रहा है। कर राजस्व और रोज़गार के कई नए अवसर पैदा हो रहे हैं। और साथ ही तेज़ी से उभर रहे ई-स्पोर्ट्स क्षेत्र में भारतीय प्रतिभाओं के आगे बढ़ने के रास्ते भी खुल रहे हैं।
एक अन्य गेमिंग कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई तरह के अव्यवहारिक प्रतिबंध लगने से इस क्षेत्र को नुक़सान हो रहा है। प्रतिबंध थोप देना आसान है पर यह हल नहीं है। भारत के। सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट में स्पॉट फ़िक्सिंग और अन्य तरह के कदाचार के मामले जब सामने आए तो खेल पर ही प्रतिबंध नहीं लगा दिया गया। अगर कुछ समस्यायें हैं भी तो उनको रेग्युलेशन यानी उचित नियमन के ज़रिए ठीक किया जा सकता है। गेमिंग से जुड़े सभी विज्ञापनों में लत लगने और वित्तीय जोख़िम संबंधी अस्वीकरण अनिवार्य करना भी पूरी तरह सही नहीं है। कई अध्ययन बताते हैं कि मोबाइल फ़ोन और सोशल मीडिया भी बुरी तरह लत लगाते और मनोवैज्ञानिक समस्यायें पैदा करते हैं। पर उन्हें तो बैन नहीं किया जाता। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोग अपने कुल ऑनलाइन समय का मात्र छह प्रतिशत ही गेमिंग पर बिताते हैं।
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कई ऐसी चीज़ें और सेवायें हैं जो ऑनलाइन गेम्स से अधिक लत लगाने वाली हैं और जिनमे वित्तीय जोख़िम भी अधिक है पर उन पर कोई प्रतिबंध नहीं है। गेमिंग की ही एक विधा ई-स्पोर्ट्स को एशियाई खेलों में पहली बार पदक श्रेणी में रखा गया है। गेमिंग के प्रति नकारात्मकता से इसमें भारत के प्रदर्शन पर भी असर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि इंगलैंड में तो क्रिकेट पर सट्टेबाजी तक को कानूनी मान्यता है। इससे वहां चीज़ें बहुत रेग्युलेटेड हैं। अगर आप किसी लोकप्रिय चीज को सीधे सीधे प्रतिबंधित करेंगे तो उसके ग़ैर क़ानूनी स्वरूप ले लेने का पूरे अंदेशा रहेगा। भारतीय क़ानून कौशल आधारित खेलों यानी गेम्स ऑफ स्किल्स को प्रतिबंधित नहीं करते। केवल गेम्स ऑफ़ चान्स को ही प्रतिबंधित करते हैं, जिनके परिणाम पूरी तरह संयोग पर निर्भर करते हैं।
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