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स्वराज’ की स्थापना के लिये कर्नाटक में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न

स्वराज' की स्थापना के लिये कर्नाटक में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न

स्वराज' की स्थापना के लिये कर्नाटक में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न

कर्नाटक/गदग । भारत के शासन प्रशासन में ‘स्वराज’ की स्थापना हेतु कर्नाटक के गदग शहर में 1 मार्च से 3 मार्च तक तीन दिवसीय आवासीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन सम्पन्न हुआ । सेमिनार का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद, भारत और कर्नाटक सरकार के ग्रामीण मंत्रालय तथा प्रज्ञा प्रवाह ने संयुक्त रूप से किया । इस सेमिनार में भारत सहित 16 देशों के विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये । जेएनयू की वीसी प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित सहित भारत के 15 वीसी ने भी भागीदारी की । तीन दिवसीय सेमिनार में भागीदारी के लिये स्वराज के कार्यान्वयन हेतु मॉडल के लिये फरवरी माह में लघुशोध मांगे गए थे।

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जिसमें से विद्वानों का चयन त्रिस्तरीय स्क्रीनिंग कमेटी की संस्तुति के आधार पर किया गया था । फिर 10,15 दिनों के भीतर व्यापक शोध मांगा गया था । सेमिनार में प्रस्तुति के लिये कमेटी ने 100 विद्वानों के शोधपत्रों का चयन किया था। जिन्हें आयोजन समिति ने अपने खर्चे पर डेलीगेट के रूप में गदग स्थित पंचायती राज्य यूनिवर्सिटी परिसर में बुलाया था। जिनमें से कार्यक्रम की समय सीमा के कारण मात्र 20 विद्वानों के शोधपत्रों को प्रस्तुति की अनुमति दी गई । इन 20 विद्वानों में औरैया के लेखक और पत्रकार मुनीष त्रिपाठी का भी चयन किया गया। मुनीष त्रिपाठी ने अपना शोध पत्र ‘द कॉन्सेप्ट ऑफ स्वराज मॉडल’ के नाम से लगभग 10 पेजों का शोधपत्र प्रस्तुत किया।

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मुनीष ने अपने विस्तृत अध्ययन से तैयार किये गए शोधपत्रों में बताया कि प्राचीन भारत में ऋग्वैदिक काल, रामायण काल और महाभारत काल से लेकर बुद्धकाल और गुप्तकाल तक तथा दक्षिण भारत में नौंवी, दसवीं शताब्दी में चोल साम्राज्य और 16 वी शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासन- प्रशासन में स्वराज की व्यापक अवधारणा मौजूद थी । जिसमें जनता की अच्छी भागीदारी थी और जनता के अभिमत का विशेष महत्व था। भारत में स्वराज की अवधारणा का विनाश विदेशी आक्रांताओं के साथ समाप्त हो गया। लेकिन मराठा राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज ने इसे अपने शासितक्षेत्र में फिर से लागू किया था । ब्रिटिश शासन के दौरान सबसे पहले फिर से बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज की आवाज बुलंद की। महात्मा गांधी ने ‘ट्रस्टीशिप सिद्धांत’ और ‘दीनदयाल उपाध्याय’ ने एकात्म मानववाद सिद्धान्त द्वारा फिर से ‘स्वराज’ की स्थापना हेतु सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

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