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गुजरात में बन रहा है विश्व का सबसे बड़ा पांडुलिपि ग्रंथालय

गुजरात में बन रहा है विश्व का सबसे बड़ा पांडुलिपि ग्रंथालय

गुजरात में बन रहा है विश्व का सबसे बड़ा पांडुलिपि ग्रंथालय

नयी दिल्ली। गुजरात में शंखेश्वर के श्रुतितीर्थ प्राच्य विद्यापीठ में मानविकी, व्याकरण, विज्ञान, धर्म, संस्कृति, अध्यात्म आदि विषयों से जुड़ी प्राचीन पांडुलिपियों के संकलन और संरक्षण का कार्य किया जा रहा है जिसमें सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत आने का अनुमान है। पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए यहां चातुर्मास से कर रहे तपागच्छीय जैन मुनिश्री हेमश्रमण विजय गणिवर्य ने यह जानकारी देते हुए बताया कि विद्यापीठ में 25000 से अधिक पांडुलिपि उपलब्ध हैं और अब तक 10 हजार से अधिक पांडुलिपियों का संरक्षण और संशोधन किया जा चुका है। पांडुलिपि ग्रन्थालय में मानविकी, विज्ञान, धर्म, आध्यात्म आदि क्षेत्रों की एक लाख से अधिक पुस्तकें उपलब्ध है।

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उन्होंने बताया कि पुस्तकालय में जिन पांडुलिपियों को संशोधित कर संरक्षित किया जा रहा है उनमें प्राचीन शैली में तैयार जयपुर के दीर्घायु सांगानेर कागज एवम ओडिशा के ताम्रपत्र पर हाथ से बनी स्याही का इस्तेमाल कर कलम से पांडुलिपियों का पुनर्लेखन कर संरक्षित करने का काम चल रहा है। उनका कहना था कि जिन ग्रंथों का पुनर्लेखन हो रहा है उनमें संस्कृत, प्राकृत, व्याकरण, काव्य कोश, न्याय, लिपिज्ञान, शिक्षा आदि का कार्य भी शामिल है। मुनिश्री का दावा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा पांडुलिपि ग्रंथालय होगा। इस काम से पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ ही देववाणी संस्कृत, भारतीय संस्कृति तथा इतिहास की रक्षा हो सकेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए इन पांडुलिपियों को अनमोल धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा जा सकेगा।

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उन्होंने कहा कि गुजरात में बन रहा यह ग्रंथालय दुनिया का सबसे बड़ा पांडुलिपि संस्थान होगा। जैनमुनिश्री प्राचीन धरोहर को एक जगह लाने और इनकी खोज के लिए यहां सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में उपलब्ध पांडुलिपियों की जानकारी हासिल कर रहे हैं। उनका कहना था कि 25 वर्षों में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए वह 25 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके है। हाल में उन्होंने शंखेश्वर से दिल्ली की 1000 किलोमीटर की यात्रा 36 दिनों में पूरी की और अब आठ नवंबर से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र के लिए पैदल विहार करेंगे।

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