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बीजेपी के गढ़ बुंदेलखंड में किसकी होगी आवाज बुलंद ? क्या बीजेपी तीसरी बार बुंदेलखंड में करेगी आवाज बुलंद ?

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बीजेपी के गढ़ बुंदेलखंड में किसकी होगी आवाज बुलंद ? क्या बीजेपी तीसरी बार बुंदेलखंड में करेगी आवाज बुलंद ?

यूपी के बुंदेलखंड में चार लोकसभा सीटें हैं. पिछले दो लोकसभा चुनाव में चारों भाजपा के खाते में गई थीं. 2024 में भी भाजपा ने इन सीटों पर अपने पुराने उम्मीदवारों पर ही भरोसा जताया है, लेकिन इस बार जीत के साथ पार्टी के लिए हैट्रिक लगाना आसान नहीं . समय के साथ बदलाव ने भाजपा के सामने कड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. चौथे चरण के लिए 11 मई को चुनाव प्रचार बंद होने से बाद से ही इटावा से चित्रकूट को जोड़ने वाले बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर आवाजाही बढ़ गई थी. पिछले कई दिनों से इटावा, कन्नौज, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, कानपुर में डेरा जमाए राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस के जरिए अपने नए ठिकानों पर पहुंचना शुरू कर दिया था.

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पांचवें चरण के तहत यूपी के बुंदेलखंड की चार लोकसभा सीटों पर 20 मई को मतदान होना है और जैसे जैसे यह तारीख नजदीक आ रही है, आल्हा-ऊदल की धरती पर सियासी तपिश बढ़ती जा रही है. बुंदेलखंड में बांदा-चित्रकूट, हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी, जालौन-भोगनीपुर गरौठा और झांसी-ललितपुर चार लोकसभा की सीटें हैं. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में ये सभी सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई हैं. इस बार भी भाजपा ने इन सभी सीटों पर अपने पुराने उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा है. झांसी-ललितपुर सीट पर ताल ठोकने वाले सियासी सूरमाओं में कोई नया नहीं है. यहां से भाजपा के उम्मीदवार अनुराग शर्मा दोबारा संसद पहुंचने की ताक में हैं, तो इनके सामने इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रदीप जैन आदित्य राह में बाधा हैं.

वर्ष 1980 में बैद्यनाथ ग्रुप के संस्थापक विश्वनाथ शर्मा झांसी-ललितपुर संसदीय सीट से सांसद चुने गए थे. फिर उन्होंने 1984 में इस सीट पर लोकदल से ताल ठोकी लेकिन हार गए. इसके बाद वे हमीरपुर से सांसद चुने गए. 39 वर्ष बाद विश्वनाथ शर्मा के बेटे अनुराग शर्मा ने भाजपा के‍ टिकट पर झांसी से चुनाव जीतकर अपने पिता की विरासत पर कब्जा जमाया था. वहीं, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रदीप जैन आदित्य ने बुंदेलखंड महाविद्यालय में छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू किया. वे कांग्रेसी ही रहे और राहुल गांधी के करीबी भी. 2003 में बहुजन समाज पार्टी सरकार में विधायक व पूर्व मंत्री पं.रमेश कुमार शर्मा ने इस्तीफा दे दिया था. इसके अगले साल हुए उपचुनाव में जीतकर प्रदीप विधानसभा पहुंचे. 2007 में एक बार फिर वे विधानसभा पहुंचे.

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वर्ष 2009 में प्रदीप ने विधायकी छोड़ सांसदी का चुनाव लड़ा और झांसी से देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी लोकसभा पहुंचे. उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया गया. इसके बाद कई सियासी जंग में हार का सामना करने वाले प्रदीप को इस बार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से अपनी नैय्या पार लगने की आस है. हालांकि बसपा ने अयोध्या के रहने वाले रवि मौर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है जिनसे दलित और अति पिछड़े मतदाताओं में कुछ सेंधमारी होने की संभावना बढ़ी है. बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल दूसरी बार मैदान में हैं. सपा-कांग्रेस गठबंधन से पहले शिव शंकर सिंह पटेल को टिकट दिया गया था. उनकी पत्नी कृष्णा देवी पटेल का भी नामांकन कराया गया था. दस्तावेजों की जांच में गड़बड़ी मिलने पर शिव शंकर का पर्चा खारिज हो गया. अब उनकी पत्नी कृष्णा देवी सपा से मैदान में हैं. वहीं, बसपा से मयंक द्विवेदी ताल ठोक रहे हैं. इस सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की खासी तादाद होने के चलते बसपा उम्मीदवार ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है. इसी तरह की चिंता हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी लोकसभा सीट पर भी है.

यहां भाजपा से पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, सपा-कांग्रेस गठबंधन से अजेंद्र सिंह लोधी व बसपा से निर्दोष कुमार दीक्षित चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. इस सीट से जहां भाजपा प्रत्याशी जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं तो सपा-कांग्रेस गठबंधन पीडीए समीकरण के जरिए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहा है. बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है. नामांकन के समय जालौन संसदीय सीट से 11 उम्मीदवारों ने अपना दावा पेश किया गया था. लेकिन इनमें से पांच ने तो बीच में ही मैदान छोड़ दिया. अब भाजपा से वर्तमान सांसद भानु प्रताप वर्मा, इंडिया गठबंधन से सपा प्रत्याशी नारायण दास अहिरवार और बसपा से सुरेश चंद्र गौतम के बीच मुकाबला है. सपा और बसपा प्रत्याशी जहां नए चेहरे हैं, इनका यह पहला लोकसभा चुनाव है. वहीं भाजपा के भानु प्रताप के पास पांच बार सांसद रहने का गहरा अनुभव है और अब वे जीत की हैट्रिक तलाश रहे हैं.

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राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि बुंदेलखंड क्षेत्र की सीटों पर प्रत्याशी और पार्टी की कुछ लहर के साथ प्रमुख रूप से जाति के आधार पर वोट पड़ते हैं. पिछले दस सालों से इन सीटों पर अभी तक ऐसा ही देखा गया है. हालांकि इस बार विश्लेषक टिकट वितरण और बदले राजनीतिक माहौल को लेकर कुछ उलटफेर होने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं. इसका आभास विजयी भाजपा प्रत्याशियों को भी है. इसीलिए उम्मीदवारी घोषि‍त होते ही सभी अपने इलाके में सुबह शाम चुनाव प्रचार करने के लिए जुट गए थे. भाजपा ने जिन मौजूदा सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा है, उनमें से दो लगातार दस साल से सांसद हैं जबकि दो लगातार दूसरी बार प्रत्याशी बने हैं. इस बार इन प्रत्याशियों को टिकट देने पर हल्का विरोध भी हुआ था. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं, “राम जन्मभूमि आंदोलन के समय बने राजनीतिक माहौल के बीच हुए 1991 के आम चुनाव में भाजपा ने बुंदेलखंड की चारों सीटों पर कब्जा किया था.

1996 में सिर्फ बांदा सीट बसपा के खाते में गई, जबकि भाजपा ने बाकी तीन सीटें जीती थीं. 1998 के चुनाव में फिर भाजपा ने चारों सीटें जीतकर वर्चस्व कायम किया. इसके बाद भाजपा को इस अंचल में एक अरसे से नाकामी मिली. 2014 में जब मोदी लहर और हिंदुत्व का मुद्दा गरमाया, भाजपा एक बार फिर पूरे बुंदेलखंड पर छा गई. भाजपा ने हिंदुत्व के साथ सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बुंदेलों की धरती पर अपनी धाक जमाई.”  जातीय समीकरण की बात करें तो बुंदेलखंड में मुस्लिमों की आबादी कम है. इनकी करीब 15 फीसदी भागीदारी है. कम आबादी के कारण ही बुंदेलखंड में राजनीतिक दल मुस्लिम मतदाताओं और नेताओं की प्रदेश के दूसरे हिस्सों की तुलना में कम तवज्जो दे रहे हैं.

यहां सभी दलों का ध्यान दलित, पिछड़ा और ब्राह्मण मतदाताओं पर रहता है. हालांकि इस चुनाव में वैश्य मतों को भी रिझाने का जमकर प्रयास राजनीतिक दलों ने शुरू किया है.” बांदा और हमीरपुर सीट पर ब्राह्मणों का वोट अहम है. हमीरपुर में लोधी समुदाय की भी अहम भूमिका है. बांदा और झांसी में कुर्मी व कुशवाहा समुदाय के वोटों का खास महत्व है. झांसी में राजपूतों का भी रसूख है. जालौन में यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. चुनाव में जातीय समीकरणों ने बड़ी भूमिका अदा की तो यहां उलटफेर से इनकार नहीं कर सकते हैं.

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