अजेय 'अयोध्या' में कौन बनेगा 'अजेय' ?

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अजेय ‘अयोध्या’ में कौन बनेगा ‘अजेय’ ?

By Tejas Khabar

May 19, 2024

वैसे तो हिंदुओं की आराध्य स्थल अयोध्या नगर फैजाबाद लोकसभा के अंतर्गत आता है. लेकिन विश्व पटल पर अयोध्या का नाम फैजाबाद से कहीं ज्यादा है. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद हो रहे लोकसभा चुनाव से भाजपा की उम्मीदें आसमान पर लेकिन सपा ने सामान्य सीट पर एक दलित उम्मीदवार को उतारकर चुनावी जंग को रोचक बनाया, वहीं बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी देकर भगवा दल की चुनौती बढ़ा दी है. उधर भाकपा प्रत्याशी अरविंद सेन यादव ने सपा प्रत्याशी के लिए कड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. अयोध्या में 22 जनवरी को नवनि‍र्मित राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह लगने लगा था कि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव में भुनाएगी. अभी तक चार चरण का मतदान पूरा हो चुका है भगवा दल मंच से राम मंदिर का मुद्दा विपक्ष पर हमलावर होकर नये ढंग से उठा रहा है.

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मतदाता भी इस मुद्दे को लेकर शांत हैं. लेकिन प्राण प्रतिष्ठा से लेकर पहली मई तक करीब डेढ़ करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचना यह भी संकेत करता है कि बेहद शांत ढंग से ही, पर यह मुद्दा मतदाताओं के बीच अपील कर रहा है. लखनऊ से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर अयोध्या जिले में अयोध्या वासी बताते हैं कि राम मंदिर दर्शन के लिए आने वाले दर्शनार्थी पूरे देश से हैं. जो यहां आ रहा है या जो अयोध्या में राम मंदिर आने की चाह रख रहा है उसके लिए मंदिर मुद्दा है. संजय अयोध्या में मंदिर निर्माण के बाद स्थानीय लोगों के हालात में आए बदलाव पर सरकार की कई उपलब्धियां गिना देते हैं. राजनैतिक विश्लेषक कहते हैं कि पहली बार फैजाबाद लोकसभा सीट पर राम मंदिर मुद्दा नहीं है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक अयोध्या में काफी बदलाव आ चुका है. नया एयरपोर्ट, नया रेलवे स्टेशन, चौड़ी सड़कें, डिजाइनर लाइटें सभी इस बदलाव के विविध आयाम पेश कर रहे हैं. राम मंदिर आंदोलन शुरू होने से लेकर मंदिर निर्माण तक इस अयोध्या ने कइयों को फर्श से अर्श तक पहुंचाया. इसी के नाम पर कई सरकारें बनीं. लोग ऊंचे ओहदों पर पहुंचकर वीआईपी बने, लेकिन फैजाबाद लोकसभा सीट आज तक वीआईपी नहीं बन सकी.

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इस लोकसभा चुनाव में भी सभी प्रमुख दलों ने यहां स्थानीय नेताओं को मैदान में उतारा है. राम मंदिर के राजनीतिक निहितार्थ को लेकर दावों-प्रतिदावों के बीच फैजाबाद सीट की जंग इस बार कुछ अलग रंग लिए हुए है. भाजपा ने एक बार फिर लल्लू सिंह पर दांव लगाया है जो पांच बार के विधायक और दो बार के सांसद हैं. वहीं इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी के कोटे में गई इस सीट पर नौ बार के विधायक दलित जाति के अवधेश प्रसाद ताल ठोक कर खड़े हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा का बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन था. फैजाबाद सीट भाजपा के खाते में गई थी. तब इस सीट पर पार्टी के प्रत्याशी लल्लू सिंह को सपा के आनंद सेन यादव ने कड़ी टक्कर दी थी. लल्लू सिंह लगभग 65 हजार मतों से चुनाव जीत सके थे, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. निर्मल खत्री को 53 हजार मत ही मिले थे. इस बार सपा और कांग्रेस का गठबंधन सामने है. इस सीट पर 2019 के आम चुनाव में सपा और कांग्रेस को मिले मतों को जोड़ लिया जाए तो आंकड़े भाजपा को कड़ी चुनौती देते नजर आते हैं.

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फैजाबाद सीट पर पिछली बार तगड़ी चुनौती पेश करने वाले आनंद सेन यादव के भाई अरविंद सेन यादव इस बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. राजनी‍तिक विश्लेषक मानते हैं कि अरविंद सेन के चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन को नुकसान हो सकता है. रामनगरी का सेन परिवार पिछले पांच दशकों से इस सीट पर राजनीति का केंद्र बिंदु बना हुआ है. वर्ष 1984 से अब तक कोई भी लोकसभा चुनाव ऐसा नहीं हुआ, जिस चुनाव में सेन परिवार की भागीदारी न रही हो. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रहे मित्रसेन यादव ने 1984 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था. 2019 के चुनाव में उनके छोटे पुत्र आनंद सेन यादव सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे. पहले यह चर्चा थी कि मित्रसेन यादव के बड़े पुत्र और पूर्व आईपीएस अफसर अरविंद यादव फैजाबाद सीट पर सपा के उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन जब पार्टी ने दलित विधायक अवधेश प्रसाद पर दांव लगाया तो सेन परिवार ने अलग राह पकड़ ली. इस बार अरविंद सेन यादव भाकपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं.

अरविंद ने अपने दिवंगत पिता का ही अनुसरण किया है जब वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उनका टिकट काट कर हीरालाल यादव को उम्मीदवार बनाया तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ गए थे.  मित्रसेन खुद तीन बार सांसद और पांच बार विधायक रहे. उनके छोटे पुत्र आनंद सेन विधायक और मंत्री रहे. मित्रसेन के पौत्र अंकुर सेन यादव हैरिंग्टनगंज से ब्लॉक प्रमुख हैं. राजनीतिक विश्लेषक सेन परिवार की बगावत को सपा के लिए चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं. पूरे देश में जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विपक्षी इंडिया गठबंधन की घटक है वहीं फैजाबाद सीट पर यह इंडिया गठबंधन के खि‍लाफ ही चुनाव लड़ रही है. अरविंद सेन के चुनाव मैदान में आने से यादव मतों में बड़े बंटवारे की नींव पड़ गई है. हालां‍कि सपा ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव को मिल्कीपुर इलाके में सक्रिय कर सेन परिवार से होने वाले नुकसान को कम करने की रणनीति बनाई है. फैजाबाद सीट की राजनीति पिछले 40 वर्षों से चार नेताओं के इर्दगिर्द ही घूम रही है. ये हैं मित्रसेन यादव, निर्मल खत्री, विनय कटियार और लल्लू सिंह. इन नेताओं की जमात में शामिल होने के लिए सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं. इसके साथ ही बसपा ने आंबेडकर नगर के नेता रहे सच्चिदानंद पांडेय को चुनाव मैदान में उतार कर अन्य दलों की लड़ाई कठिन करने की कोशिश की है.

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सच्चिदानंद आंबेडकरनगर लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट की दावेदारी कर रहे थे. भाजपा से निराशा मिलने पर सच्चिदानंद ने बसपा का दामन थामा. सपा ने रणनीति के तहत पासी बिरादरी से आने वाले अवधेश प्रसाद को फैजाबाद सीट पर उतारकर यादव-मुस्लिम और दलित बिरादरी की गोलबंदी करने का प्रयास किया है. दलितों की पासी बिरादरी में भाजपा की अच्छी पैठ है. हालांकि विधानसभा चुनावों में पासी बिरादरी अवधेश प्रसाद के पक्ष में गोलबंद होती रही है चाहे अयोध्या की मिल्कीपुर सुरक्षित सीट हो या फि‍र सोहावल विधानसभा की सुरक्षित सीट. इंडिया गठबंधन ने अवधेश प्रसाद के लिए नारा भी गढ़ा है—”संविधान के सम्मान में, अवधेश प्रसाद मैदान में” और “मथुरा न काशी, अबकी बार अवधेश पासी.

रामलला के दर्शन करने पहुंचना दलित मतदाताओं में एक सकारात्मक संदेश पहुंचने के रूप में भी देखा जा रहा है. योगी 2017 में राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद 60 से अधिक बार रामलला के दर्शन करने अयोध्या आ चुके हैं. 11 फरवरी को योगी कैबिनेट और अन्य दलों के विधायकों के साथ रामलला को नमन करने पहुंचे थे. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल अपनी कैबिनेट के सदस्यों और अधिकारियों के साथ रामलला का दर्शन करने आ चुके हैं. फैजाबाद सीट पर सपा और भाजपा ने अपने संगठन की भी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं इस सीट पर बसपा लगभग पांच हजार से अधिक पदाधिकारी सक्रिय भूमिका में हैं.