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ताजनगरी आगरा में किसके सिर बंधेगा ताज, क्या चौथी बार खिलेगा कमल ? जाने क्या है समीकरण ?

ताजनगरी आगरा में किसके सिर बंधेगा ताज, क्या चौथी बार खिलेगा कमल ? जाने क्या है समीकरण ?

बाबा साहब आंबेडकर का आगरा से गहरा नाता रहा था. दरअसल उन्होंने आखिरी दिनों में बौद्ध धर्म अपनाने से पहले आगरा की यात्रा की थी. वह 1956 में आगरा आए थे. आगरा के रामलीला मैदान में 18 मार्च 1956 को अनुसूचित जाति फेडरेशन के 15वें अधिवेशन में शिरकत की और इसी दौरान उन्होंने ऐतिहासिक भाषण भी दिया था. आगरा में शिखर सम्मेलन भारत और पाकिस्तान के बीच दो दिवसीय शिखर बैठक थी जो 14 से 16 जुलाई 2001 तक चली थी. आगरा लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार एस. पी. सिंह बघेल को सपा उम्मीदवार सुरेश चंद्र कर्दम और बसपा उम्मीदवार पूजा अमरोही की कड़ी चुनौती मिल रही है. ताज महल के लिए विश्व प्रसिद्ध आगरा में लोकसभा चुनाव की जंग के गवाह कुछ मैदान भी बने हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज को आज के आगरा के जयपुर हाउस और बाद में कोठी मीना बाजार मैदान में एक ओर टीले पर बनी हवेली में कैद करके रखा गया था. यहीं से शिवाजी औरंगजेब के सैनिकों को चकमा देकर फरार हुए थे.

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आगरा स्थित कोठी मीना बाजार के मैदान पर राजनीतिक सरगर्मियां तब बढ़नी शुरू हुईं जब भारतीय जनता पार्टी ने अपना विस्तार करना शुरू किया था. वर्ष 1988 में भाजपा ने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन करने के लिए पहली बार कोठी मीना बाजार का चयन किया था. पहली बार इसी मैदान पर एक दिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और तीन दिन तक भाजपा राष्ट्रीय अधिवेशन चला था. यह मैदान इतना बड़ा है कि किसी भी राजनैतिक दल के लिए पूरा भरना किसी भी चुनौती से कम नही है. भाजपा में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद आगरा का कोठी मीना बाजार मैदान एक बार फिर भगवा खेमे की गतिविधि‍यों का केंद्र बना. वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में नरेंद्र मोदी ने यहां ब्रज क्षेत्र की रैली को संबोधित किया था. इस रैली में आई भीड़ को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि आगरा में इतनी बड़ी रैली कभी नहीं हुई थी.

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने आगरा के अपने इस पसंदीदा मैदान पर गतिविधियां बढ़ा दी हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां दो बार सभा कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नड्डा ने कोठी मीना बाजार के मैदान पर आयोजित भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अधिवेशन में हिस्सा लिया था. आगरा के कोठी मीना बाजार के मैदान में प्रधानमंत्री मोदी 25 अप्रैल को चौथी बार रैली करने पहुंचे थे. वर्ष 2016 में विधानसभा चुनाव से पहले और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले मोदी ने इस मैदान पर हुंकार भरी थी. बीते 25 अप्रैल को आगरा के कोठी मीना बाजार की रैली में उन्होंने विपक्षी इंडिया गठबंधन की जाति जनगणना की मांग की काट पेश की. उन्होंने रैली में गरीब, युवा, किसान और महिला को ‘चार जातियां’ बताते हुए वोट की गारंटी मांगी.

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जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने एक तीर से कई निशाने लगाए. उन्होंने श्रीराम मंदिर-काशी विश्वनाथ का नाम लेकर हिंदुओं को जोड़ा. धर्म के नाम पर आरक्षण, कर्नाटक में ओबीसी कोटे से मुस्लिमों को आरक्षण देना हो या फिर बाबा साहब आंबेडकर का हवाला देकर दलितों को भी साधा. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में एक बार भी बसपा सुप्रीमो मायावती का नाम नहीं लिया, जबकि आगरा उनका गढ़ रहा है. इसके उलट उन्होंने अपने भाषण में राहुल गांधी-अखिलेश यादव पर कई वार किए. आगरा (सुरक्षित) सीट से भाजपा उम्मीदवार एस. पी. सिंह बघेल को अपने बगल में खड़ा कर मोदी ने जनता से इन्हें एक बार फिर जिताने की अपील भी की.

आगरा सुरक्षि‍त सीट पर भाजपा ने तमाम समीकरणों और दावेदारों को दरकिनार कर एक बार फि‍र वर्तमान सांसद एस. पी. सिंह बघेल को ही उम्मीदवार बनाया है. लंबा राजनीतिक अनुभव और पार्टी के कार्यक्रमों में उनकी सहभागिता, सदन में सक्रियता और बेदाग छवि ने उन्हें सबसे आगे रखा. बघेल बसपा से राज्यसभा सदस्य थे. इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे. वर्ष 2015 में वे भाजपा ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष बनाए गए. 2017 में टूंडला विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने. बघेल प्रदेश सरकार में लघु सिंचाई व मत्स्य पालन मंत्री बनाए गए.
विधायक रहते ही भाजपा ने उन्हें आगरा सुरक्षित सीट से 2019 में चुनाव लड़ाया. इस सीट से दो बार के सांसद प्रो. रामशंकर कठेरिया को हटाकर बघेल को कमल खिलाने का जिम्मा दिया गया था. इस परीक्षा में वे खरे उतरे. इसके बाद बघेल को वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने करहल विधानसभा सीट पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखि‍लेश यादव के सामने भी चुनाव में उतारा था.

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पार्टी के लिए अनुशासित रहने का फल ही बघेल को दूसरी बार आगरा से भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने के रूप में सामने आया है. बघेल के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रैली कर चुके हैं.  कोठी मीना बाजार पर भाजपा और बसपा ने अपनी धमक दिखाई है तो आगरा का जीआईसी मैदान सपा की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद अगले ही साल 1993 में यहां सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ और अगले ही वर्ष यूपी में पार्टी की सरकार बनी थी. वर्ष 1991 के राम मंदिर आंदोलन में धुर विरोधी रहे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह इसी जीआईसी मैदान पर जनवरी 2009 में एक दूसरे के गले लगे थे. इस मैदान पर हुई जनसभा में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को लाल टोपी पहनाई थी.

29 अप्रैल को सपा सुप्रीमो अखि‍लेश यादव ने जीआईसी मैदान पर ही सपा प्रत्याशी सुरेश चंद्र कर्दम के समर्थन में जनसभा की. अखिलेश यादव ने जीआईसी मैदान में आगरा की दुखती रग पर हाथ रखा. गठबंधन के लिए समर्थन मांगा. कहा, केंद्र में सरकार बनने पर आगरा में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट व स्टेडियम बनाएंगे. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, यमुना की दुर्दशा और पेठा की मिठास का जिक्र करके सपा उम्मीदवार के लिए समर्थन मांगा. सपा आगरा  लोकसभा सीट पर अब तक दो बार खाता खोल पाई है. वर्ष 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी सिने स्टार राज बब्बर के ग्लैमर के चलते आगरा लोकसभा सीट जीत चुकी है. वर्ष 2009 में आगरा लोकसभा सीट सुरक्षित हो गई, जिसके बाद पार्टी प्रत्याशी तीसरे नंबर से आगे नहीं बढ़ सके हैं.
आगरा लोकसभा सीट पर 20.50 लाख मतदाता हैं. एक अनुमान के मुताबिक इनमें सबसे ज्यादा जाटव 3 लाख, वैश्य 2.5 लाख, मुस्लिम 2.15 लाख, ब्राह्मण 1.70 लाख, सिंधी-पंजाबी 1.50 लाख, क्षत्रिय 1.40 लाख, बघेल धनगर 1.40 लाख, यादव 80 हजार, प्रजापति 70 हजार, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी सभी करीब 70 हजार, वाल्मीकि 60 हजार और बाकी अन्य हैं.

दलितों की खासी आबादी के लिए ही आगरा को यूपी की ‘दलित राजधानी’ भी कहा जाता है. बसपा के कोर वोटबैंक को अपने साथ लाने की कोशिशों में जुटे अखि‍लेश यादव लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में आगरा में ही शामिल हुए थे. सपा ने आगरा (सुरक्षित) लोकसभा सीट से जूता व्यापारी सुरेश चंद्र कर्दम को मैदान में उतारा है. जाटव समुदाय से आने वाले 63 वर्षीय कर्दम ने इससे पहले 2000 में आगरा से बसपा के लिए मेयर पद का चुनाव लड़ा था और दूसरा स्थान हासिल किया था. राजनीतिक विश्लेषकों को उम्मीद है कि कर्दम बसपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. सुरक्षित सीट होने के बावजूद मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने 1984 में पार्टी की स्थापना के बाद से आगरा लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने के लिए संघर्ष किया है. इस बार बसपा ने पूजा अमरोही को अपना उम्मीदवार बनाया है. पूजा एक राजनी‍तिक घराने से ताल्लुक रखती हैं. वे यूपी से पूर्व राज्यसभा सदस्य व पूर्व कांग्रेस पदाधिकारी सत्या बहन की बेटी हैं

पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजे आगरा में बदलते परिदृश्य को दर्शाते हैं. वर्ष 2007 में, जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं, तो बसपा ने आगरा की नौ विधानसभा सीटों में से छह पर जीत हासिल की. वर्ष 2012 में, यूपी की सत्ता जाने के बाद भी बसपा ने आगरा में अपनी पकड़ बनाए रखी. तब भी बसपा ने नौ में से छह विधानसभा सीटें जीती थीं. फिर, 2017 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने सभी नौ सीटों पर कब्जा कर लिया, जबकि बसपा सात सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में फि‍र इन नतीजों को दोहराया गया. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं, “स्थानीय जाति समीकरणों के साथ हिंदुत्व को जोड़ने की भाजपा की रणनीति का लाभ मिला है. इसके विपरीत, बसपा और सपा की चुनौती बयानबाजी और जमीनी स्तर के बीच के अंतर को पाटने में है.” इस बार बड़ी चुनौती भाजपा के सामने भी है, लगातार चौथी बार कमल खिलाने की.

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