- हे छठी मइया तोहर महिमा अपार…
- आज उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूरी होगी छठ पूजा
- गुरुवार शाम महिलाओं ने डूबते सूर्य को दिया अर्घ्य
- लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर लोगों में उत्साह और रौनक देखने को मिल
- खरना के साथ बुधवार को शुरू हुई थी 36 घंटे की कठिन तपस्या
औरैया | नहाए-खाए और खरना के बाद छठी मैया की उपासना के महापर्व के तीसरे दिन गुरुवार शाम काे डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए रखे जाने वाले छठ पर्व के दूसरे दिन खरना का आयाेजन हुआ था, जबकि कार्तिक मास की षष्टी को छठ मनाने से पहले गुरुवार शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। शुक्रवार सुबह उगते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाएगा। बुधवार को छठ का व्रत रखने वाली महिलाओं ने घर में खरना पूजन करने के साथ यह पर्व मनाया। यह व्रत रखने वाली महिलाओं की औरैया शहर में ज्यादा संख्या नहीं है। हालांकि दिबियापुर में स्थापित गेल इंडिया लिमिटेड व एनटीपीसी संस्थानों में बड़ी संख्या में पूर्वांचल व बिहार के लोगों के कार्यरत होने के कारण यहां बड़ी संख्या में महिलाएं इस व्रत को करती हैं।
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गेल गांव व एनटीपीसी में छठ पूजा से जुड़े आयोजन परिसर में स्थापित तरणताल पर पूजा संपन्न करने के लिए व्रती महिलाएं और उनके परिजन जुटे। कई अन्य जगहों पर गुरुवार को छठ के मुख्य पर्व पर लोगों ने अपने घरों में बनाए कृतिम जलकुंड में पानी में खड़े रहकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर जीवन में सुख शांति की कामना की। दिबियापुर में निचली गंग नहर के किनारे स्थापित छठ मैया के मंदिर के पास पानी न होने के कारण इंदिरा गांधी कॉलेज के निकट नहर किनारे पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। इसके साथ ही बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ आदि सजाकर उपासना की गई। शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, इसी के साथ छठ पर्व का समापन होगा।
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छठ व्रतियों में उत्साह और रौनक देखते ही बन रही है। गेल गांव के तरण ताल पर छठ की छटा आज छाई हुई दिखी। घर से लेकर घाट तक, गलियों से लेकर सड़कों तक… हर तरफ विशेष कर घरों में छठ के गीत गूंज रहे हैं। “ केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय, आदित लिहो मोर अरगिया., दरस देखाव ए दीनानाथ., उगी है सुरुजदेव., हे छठी मइयातोहर महिमा अपार., कांच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाय ….. , गीत सुनने को मिल रहे हैं।”
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क्यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं।
छठ पर्व की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे, उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। हे! राजन आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।