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कोल्हू चले, फि़जा में घुलने लगी शक्कर गुड़ की महक

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कोल्हू चले, फि़जा में घुलने लगी शक्कर गुड़ की महक

सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गन्ना बैल्ट में अभी गन्ने में पूरी तरह से मिठास नहीं आ पाई है और चीनी मिलों का पेराई सत्र इस माह के अंतिम हफ्ते और नवंबर के पहले हफ्ते में शुरू होगा लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर गन्ना किसान क्षेत्र में कोल्हुओं पर सस्ते दामों पर अपना गन्ना बेचने को मजबूर है। सहारनपुर मंडल गुड-शक्कर के निर्माण में अपनी एशिया भर में ख्याति रखता है। आर्थिक रूप से लाभ होने के चलते कोल्हू मालिक चीनी मिलों का पेराई सत्र शुरू होने से महीना डेढ-महीना पहले ही कोल्हुओं का संचालन शुरू कर देते है और चीनी मिलों के चलने से पहले ही औने-पौने दामों पर गन्ना खरीदते है ओर बाजार में गुड और शक्कर उतार देते है। इस बार भी यही बात सामने आई है।

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सहारनपुर के गन्ना उत्पादक ग्रामीण क्षेत्रों में सैकडों की संख्या में कोल्हू लग गए है और बाजार नए शक्कर और गुड की सुगंध से महकने लगे है। सहारनपुर का गुड पूरे देश में जाता है और गुड का व्यवसाय मजबूती के साथ अपनी गति पकडने लगा है। देवबंद क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में कोल्हू शुरू हो गए है। बड़गांव इलाके में लगे कई कोल्हुओं पर किसानों का गन्ना आना शुरू हो गया है। छोटे किसान अपने घरेलू खर्च पूरे करने के लिए इन पर गन्ना डाल रहे हैं। क्षेत्र के देवबंद -नानौता रोड पर बड़गांव से महेशपुर तक के कुल तीन किमी के एरिया में दर्जन भर से ज्यादा गन्ना कोल्हुओं का हर वर्ष संचालन होता आ रहा है।

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इस बार भी कच्चे मीठे के व्यापारियों ने गन्ना कोल्हू लगाकर गुड़, शक्कर आदि बनाना शुरू कर दिया है।चीनी मिल न चलने से कम दाम पर गन्ना बेचने की मजबूरी है। वैसे तो देवोत्थान एकादशी पर गन्ने से देवताओं की पूजा अर्चना करने के बाद गन्ना खाने व रस पीने आदि का चलन है, लेकिन क्षेत्र में ईख की पैदावार अधिक होने और कारोबारी मजबूरी के चलते देवोत्थान से पूर्व ही गन्ना कोल्हू शुरू हो जाते हैं। हालांकि देवबंद व नानौता चीनी मिल अभी शुरू नहीं हो सकी है। बावजूद इसके कोल्हुओं पर तेजी से गन्ने की खरीद होना शुरू हो गयी है। कोल्हू संचालक भी चीनी मिल न चलने का फायदा उठाते हुए 250 से 270 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से गन्ने की खरीद कर रहे हैं,

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जबकि मिल द्वारा 350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से उपर ही खरीद की जाएगी। क्योंकि अभी प्रदेश सरकार की ओर से गन्ने का रेट घोषित नहीं किया गया। इसलिए छोटे किसान घरेलू खर्च और पशुओं के लिए चारा बरसीम आदि की बुवाई के लिए खेत खाली करने की खातिर गन्ना बेचने को मजबूर हैं।
सितम्बर माह में शुरू हुए गन्ना कोल्हू अप्रैल-मई तक चलते हैं। गांवों के लोग चीनी के उपयोग से बचते हुए गुड़, शक्कर, रवा खाना अधिक पसंद करते हैं। गुड़ की कतरी तिल, मूंगफली, घी, सौंठ आदि डलवा कर बनवाने के बाद रिश्तेदारी में भी इसे दिया जाता है। ग्रामीण गुड़ व शक्कर को ही कच्ची मिठाई मानते हैं। लोगों का यह भी मानना है कि गुड़ खाने से शरीर स्वस्थ रहता है। बीमारियों से बचाव होता है।
कोल्हू संचालक सुखबीर सिंह, नेत्रपाल, जयचंद, श्यामसिंह, छोटा, भोला, कामिल, वहाब, मांगा, काला आदि का कहना है कि छह माह का रोजगार उन्हें क्रेशर पर गुड़ शक्कर बनाने से मिल जाता है जिससे उनका पूरे साल का खर्च चल जाता है।

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