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देश की पहली सबसे बड़ी घोड़े पर सवार शिवाजी की प्रतिमा मुंबई में होगी स्थापित

देश की पहली सबसे बड़ी घोड़े पर सवार शिवाजी की प्रतिमा मुंबई में होगी स्थापित

देश की पहली सबसे बड़ी घोड़े पर सवार शिवाजी की प्रतिमा मुंबई में होगी स्थापित

जयपुर । देश में धातु से बनी पहली सबसे बड़ी तीस फीट ऊंची घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा इसी महीने में महाराष्ट्र के मुंबई में स्थापित होगी वहीं जयपुर में 108 फीट ऊंची भगवान परशुराम की मूर्ति बनाई जा रही है जो उत्तरप्रदेश में स्थापित की जायेगी। धातु की मूर्ति बनाने के लिए विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकार राजकुमार पंडित इन प्रतिमाओं को तैयार कर रहे हैं। पंडित ने बताया कि करीब दो साल में तैयार की गई धातु से निर्मित देश की पहली घोड़े पर सवार सबसे बड़ी छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा करीब दो साल से तैयार की जा रही है और इस महीने में यह पूरी तरह बनकर तैयार हो जायेगी जिसे इसी माह मुंबई में स्थापित की जायेगी। लगभग 12 टन वजनी इस मूर्ति को बनाने में 30 कारीगर रात दिन एक करके कड़ी मेहनत के बाद इसे तैयार किया है।

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श्री राजकुमार पंडित जयपुर के आकेड़ा डूंगर में 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की मूर्ति बना रहे है, जिसका वजन करीब 40 टन होगा। यह मूर्ति उतरप्रदेश में स्थापित होगी। साथ ही जयपुर में ही रामायण का लेखन करते स्वामी तुलसीदास की 12 फीट ऊंची बैठने की मुद्रा में मूर्ति बनाई जा रही है। यह प्रतिमा उत्तरप्रदेश चित्रकूट जिले में लगेगी। उन्होंने बताया कि उत्तरप्रदेश में कानपुर देहात में रानी लक्ष्मीबाई, आगरा में महाराजा सूरजमल एवं हाथरस जिले में स्वतंत्रता सेनानी मलखान सिंह की 12-12 फीट की धातु से बनीं मूर्तियां लगाई जायेगी, जिसे वह यहां जयपुर में तैयार कर रहे है। इनके निर्माण के लिए उनकी 30 सदस्यीय टीम काम कर रही है।

इसके अलावा श्री राजकुमार पंडित को 18 देशों से धातु की मूर्तियों के प्रोजेक्ट मिले हैं। जिसमें अमरीका में अरबपति निवेशक चार्ली मुंगेर और उद्योगपति वारेन बफे की 10-10 फीट ऊंची मूर्तियां बनाकर भेजने के बाद अब इन दोनों उद्योगपतियों की 10-10 फीट और मूर्तियां बनाने का आर्डर दुबारा मिला है। ये मूर्तियां इनके 10 देशों में संचालित कार्यालयों में स्थापित की जायेगी।

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श्री राजकुमार पंडित की इस कला की चमक अब विदेशों में पहुंच गई और देश के बाहर से भी धातु की मूर्तियां बनाने की मांग बढ़ने लगी हैं। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के कई प्रसिद्ध नेताओं के धातु के पोर्ट्रेट बना चुके राजकुमार पंडित ने जीवन की विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपने हुनर की चमक पूरी दुनिया में बिखेरी है। राजस्थान सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में उनकी बनाई गई धातु की मूर्तियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

राजस्थान विधानसभा का अशोक स्तंभ, जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम के बाहर अर्जुन की प्रतिमा, घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी, जयपुर का ही पीकॉक गार्डन एवं कोटा में रिवर फ्रंट एवं सिटी पार्क एवं जयपुर में राजभवन में स्थित संविधान पार्क में कई धातु की मूर्तियां राजकुमार पंडित ने बनाई हैं, जिन्हें देखकर यहां आने वाले लोग प्रशंसा किए बिना नहीं रहते। उन्होंने कोटा में लगी प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 42 फीट ऊंची मास्क प्रतिमा, 45 फीट का फाउंटेन, नेहरु-गांधी, स्वामी विवेकानंद, नेचरमैन सहित कई मूर्तियां बना चुके है। इसके अलावा नाथद्वारा में नौ फीट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा एवं नौ फीट ऊंची राणा पुंजा की प्रतिमा, रावतभाटा में संविधान निर्माता डा भीमराव अंबेडकर की 12 फीट, बप्पा रावल एवं राणा पुंजा की नौ फीट ऊंची प्रतिमाएं बना चुके है।

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कभी श्मशान परिसर में रहने को मजबूर राजकुमार पंडित के बचपन में ही सिर से मां का साया उठ गया था। आर्थिक तंगी से जूझते हुए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी लेकिन उन्होंने अपनी लगन और मेहनत को जारी रखकर आज जिस मुकाम पर पहुंचे है उसके लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर कई बड़े बड़े लोग उनकी कला की प्रशंसा कर रहे है। पिछले दिनों जयपुर प्रवास के दौरान राष्टपति द्रोपदी मुर्मू से राजभवन में राजकुमार पंडित ने मुलाकात की और इस दौरान उन्होंने श्रीमती मुर्मू को धातु से बनाया उनका पोर्टेट भेंट किया। इस दौरान राष्ट्रपति ने राजुकमार पंडित की कला की प्रशंसा की।

इसी तरह उन्होंने देश विदेश में छोटी बड़ी हजारों धातु की मूर्तियां बना चुके हैं। मूल रुप से बिहार के रहने वाले श्री राजकुमार पंडित ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1997 में जयपुर में मूर्ति बनाना शुरु किया और आज अपने देश के अलावा करीब डेढ़ दर्जन बाहर के देशों में इनकी बनाई धातु की मूर्तियां जाने लगी है। उन्होंने बताया कि वह ये मूर्तियां इटालियन पद्धति के सहारे तैयार करते है और आज उसी देश में उनकी बनाई मूर्तियों की मांग ज्यादा बढ़ने लगी है। उन्होंने बताया कि वह जाति से कुम्हार है और बिहार के नालंदा जिले के गांव सिंदुआरा में उनके दादा शिवचरण पंडित ने उन्हें मटका बनाना 12 वर्ष की उम्र में स्कूल जाते समय ही सीखा दिया था। इसके बाद मिट्टी से बर्तन एवं देवी-देवताओं की मूर्तियां बनानी शुरू कर दी थी। इसक बाद वह वर्ष 1994 में दिल्ली आ गए।

उन्होंने बताया कि दिल्ली में मार्डन आर्ट्स स्कूल में मूर्तिया बनाना सीखा। उन्होंन उनके गुरु बालकृष्ण की देखरेख में संसद भवन में पहली बार धातु की महात्मा गांधी की मूर्ति बनाई। उन्होंने बताया कि वर्ष 1995 में उन्हें जयपुर में लगाने के लिए सरस्वती की प्रतिमा बनाने का आर्डर मिला और उसके बाद 1996 में 18 फीट ऊंची एक प्रतिमा का और काम मिलने के बाद उन्होंने जयपुर से ही मूर्तियां बनाना शुरु कर दिया। उन्होंने बताया कि धातु की मूर्ति बनाना सीखने के लिए वह नि:शुल्क प्रशिक्षण भी देते हैं।

उन्होंने बताया कि वह देश के जाने-माने मूर्तिकार हिम्मत शाह को अपना आदर्श मानते हैं। उन्होंने जयपुर में सबसे पहले हिम्मत शाह के साथ ही काम करना शुरु किया था। हिम्मत शाह ने उनकी कला को पहचाना और एक लाख रुपए का आर्थिक सहयोग देकर वर्क्स फॉर आर्टिस्ट फाउंड्री कंपनी स्थापित कराई।

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