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शौर्य और त्याग की प्रतिमूर्ति वीरांगना अवंतीबाई की जयंती मनाई गई

शौर्य और त्याग की प्रतिमूर्ति वीरांगना अवंतीबाई की जयंती मनाई गई

औरैया। दिबियापुर में थाने के सामने राजपूत समाज के लोगों ने रामगढ़ स्टेट की रानी वीरांगना अवंती बाई की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित कर उनके शौर्य और पराक्रम को याद किया। शुक्रवार को कार्यक्रम का शुभारंभ लक्ष्मी नारायण राजपूत राष्ट्रीय अध्यक्ष विमुक्त घुमंतू जाति ने वीरांगना अवंतीबाई की विशालकाय संगमरमर पत्थरों से निर्मित और नक्काशी युक्त प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किए। साथ ही दिबियापुर नगर पंचायत अध्यक्ष राघव मिश्रा ने भी उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किए। समाजसेवी श्रीराम राजपूत ने बताया कि वीरांगना अवंतीबाई ने 1857 की महा क्रांति के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे।

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सिवनी जिला मध्य प्रदेश के मनकेडी गांव में उनका जन्म 16 अगस्त 1831 को हुआ था। रानी अवंतीबाई के पति विक्रमादित्य बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के राजा थे। इसलिए रामगढ़ राज्य की बागडोर पूर्ण रूप से वीरांगना अवंतीबाई ने ही संभाल रखी थी। एडवोकेट मनोहर लाल राजपूत ने बताया कि वीरांगना अवंतीबाई ने अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध करके उनको नाकों चने चबवा दिए थे। मातृभूमि की रक्षा करते हुए उन्होंने अपनी खुद की तलवार से अपने शरीर को चीर दिया था और 20 मार्च 1858 में वे सूखी तलैया बालापुर और रामगढ़ के बीच में वीरगति को प्राप्त हो गई थी।

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जयंती कार्यक्रम में प्रेम शंकर राजपूत, अजय बाबू राजपूत, रामकृष्ण राजपूत, ओमप्रकाश राजपूत, सत्येंद्र राजपूत श्रीकृष्ण राजपूत, सुरेंद्र कुमार राजपूत, बादशाह राजपूत, उमाशंकर राजपूत, शैलेंद्र राजपूत एडवोकेट, शिक्षक दयाराम राजपूत, गजराज सिंह राजपूत और शिक्षक अजीत राजपूत, विश्वनाथ राजपूत, सतेंद्र राजपूत,सौरभ राजपूत अलावा बड़ी संख्या में समाज के लोग मौजूद रहे।

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