- इटावा के पुरातन नीलकंठ महादेव मंदिर पर सावन भर लगती भक्तों की कतारें
इटावा। भगवान भोलेनाथ कब कहां प्रकट हो जाए यह कोई नहीं जानता। करीब डेढ़ सौ साल पूर्व इटावा के घने जंगल में स्थित कुआ में चोरी का माल तलाशे जाने पर नीलकंठ महादेव निकल आये। शिवभक्तों ने कुआ के पास ही मंदिर की स्थापना कर दी, जिसकी भव्यता में निरंतर इजाफा हो रहा है। 150 बर्ष पूर्व इटावा शहर के लालपुरा मोहल्ले के पास के क्षेत्र में घना जंगल था, लोग दिन में भी इस ओर आने में भय महसूस करते थे। मंदिर के समीप स्थित कुआ में उस समय चोरी का माल तलाशा गया, उसी दौरान नीलमा धारण किए संगमरमर के पत्थर का शिवलिंग कुआ से निकला। उस समय के शिवभक्तों ने शिवलिंग को नीलकंठ महादेव मानकर विधि-विधान से स्थापित करके मंदिर का निर्माण कराया।
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भोले बाबा की कृपा से इस मंदिर पर आने वालों की मनोकामना पूर्ण होने लगी, तभी से मंदिर की भव्यता का दौर जारी है। करीब 40 साल पूर्व नीलकंठ मंदिर के महंत नेपाली बाबा ने नीलकंठ मंदिर की भव्यता बढ़ाने का दौर शुरू किया जो अभी तक जारी है। ईटों का फर्श संगमरमर का हो गया। परिक्रमा में भगवान श्री गणेश सपरिवार, मां काली, राधा-कृष्ण, मां सरस्वती, गोरी-शंकर, श्री रामदरबार, साई बाबा, शनिदेव, हनुमान, विष्णु-लक्ष्मी तथा मां दुर्गा के मंदिरों का निर्माण हो गया। स्वामी नेपाली बाबा ने 19 मई 2005 को समाधि ली। उनके भक्तों के सहयोग से भूतल पर ऐसी जगह उनकी मूर्ति स्थापित की गई, जिसे चारों ओर से देखा जा सकता है। इससे हर तरह के भक्तों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। कानपुर, ग्वालियर, फर्रुखाबाद तथा अन्य कई जिलों के भक्त आ रहे हैं। सावन के सोमवार को नीलकंठ मन्दिर पर मेला लगता है जिसमे शिवभक्त भारी तादाद शंकर जी को पूजने आते हैं।