विश्वकर्मा को वैदिक सौर देवता भी माना गया
औरैया। शास्त्रों और वेदांतों में विश्वकर्मा को सृष्टि कर्ता , प्रजापति , संवत्सर और परमात्मा के रूप में माना गया है। विश्वकर्मा को वैदिक सौर देवता भी माना गया है। जिन्हें धातु और विधातू , पृथ्वी और प्राणी जगत का जनक और समस्त देवों का नामकरण करने वाला कहा गया है। कहते हैं कि अंगिरा वंश के भुवन पुत्र विश्वकर्मा ऐसे आदि शिल्पाचार्य हैं , जिन्होंने आदि ब्रह्मा की रचना दक्षता के रहस्य को समझ कर इस सृष्टि पर उनके अनुरूप शिल्प विज्ञान को सबसे पहले प्रस्तुत किया।
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अपनी अद्भुत और अलौकिक शक्ति से शिल्प विज्ञान का साक्षात्कार कर मानव के कल्याण और अथर्ववेद के उपवेद की रचना की। भारत में उनकी जयंती तीन अलग-अलग तिथियों में मनाई जाती है। आमतौर पर प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है , पर भविष्य पुराण , स्कंद पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों के अनुसार माघ शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी की जयंती मनाई गई है। वैदिकोत्तर साहित्य में महर्षि विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र या शिल्प प्रजापति के रूप में प्रतिष्ठित हैं , उन्होंने देवताओं के लिए विभिन्न प्रकार की अस्त्र-शस्त्र , आभूषण व विमान आदि बनावाये। बताते हैं कि द्वारिका , इंद्रप्रस्थ , हस्तिनापुर , वृद्रावन , लंका और इंद्रलोक की रचना का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही है। कई वाद्ययंत्रों की रचना भी विश्वकर्मा ने की है। ऐसा प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है। यही वजह है कि विश्वकर्मा मनुष्य जगत में आज भी पूजनीय हैं। विश्वकर्मा को वैदिक सौर देवता भी माना जाता है। इसी लिए उन्हें धातु और विधातु पृथ्वी और प्राणी जगत का जनक और समस्त देवों का नामकरण करने वाला कहा गया है।
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