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जयंती पर विशेष :गांधी के जीवन से जुड़ी 6 कहानियां, जिन्होंने उन्हें महात्मा बनाया

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जयंती पर विशेष :गांधी के जीवन से जुड़ी 6 कहानियां, जिन्होंने उन्हें महात्मा बनाया
जयंती पर विशेष :गांधी के जीवन से जुड़ी 6 कहानियां, जिन्होंने उन्हें महात्मा बनाया

पहले अच्छा जीना सीखो और तब दूसरों को सिखाओ

एक महिला अपने बच्चे के साथ गांधी के पास शिकायत लेकर आई कि मेरे बच्चे को समझाइए, यह मीठा ज्यादा खाता है । गांधी ने कहा, ठीक है ,तुम 3 दिन बाद इसे लेकर आना। महिला निर्धारित 3 दिन बाद फिर आई, तो गांधी ने उस बच्चे को मीठा कम खाने और छोड़ने की सलाह दी। इस पर महिला ने कहा ,यह तो आप पहले भी बता सकते थे, तब गांधी ने कहा, लेकिन तब मैं भी मीठा खाता था ।कुछ राजनीतिक मजबूरियों के बावजूद गांधी की यह बड़ी खासियत थी कि उनकी कथनी और करनी में न के बराबर अंतर था

सार्वजनिक संघर्ष करो, किंतु व्यक्तिगत प्रेम रखो

महात्मा गांधी ने भारत में अपने जीवन का सबसे पहला आंदोलन चंपारण में किया। उन्होंने पहले पटना और फिर मुजफ्फरपुर में रहते हुए चंपारण के आला अंग्रेज अफसरों को अनेक पत्र लिखे। उनके सामने आंदोलन की अपनी बात रखी, लेकिन साथ ही उनसे कुशल क्षेम भी पूछा, परिवार के बारे में पूछा, शुभकामनाएं दीं। असर यह हुआ कि जब गांधी चंपारण पहुंचे, तो अंग्रेज अधिकारी विचलित थे और गांधी को गिरफ्तार करने से बच रहे थे। अत्याचार करने वाले अंग्रेजों के साथ भी गांधी अच्छा व्यक्तिगत व्यवहार रखते थे।

जातिगत भेद छोड़ो मिलकर रहो साझी रसोई रखो

गांधी जब नील की जबरन खेती के खिलाफ आंदोलन के लिए चंपारण पहुंचे, तब उनके साथ 12 से ज्यादा रईस वकील साथी थे। सबके पास रसोइए थे, उनके चूल्हे जलते थे। गांधी जी ने एक दिन सारे रसोइयों को छुट्टी दे दी और वकील मित्रों से कहा, हम साथ मिलकर एक रसोई का खाना नहीं खा सकते, तो मिलकर आंदोलन कैसे करेंगे। जिसको वापस जाना है, जा सकता है, भोजन एक जगह बनेगा, सब मिलकर बनाएंगे ।जाहिर है, भोजन एक जगह बनने लगा और वहां मौजूद वकीलों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई।

अच्छी बात के लिए अड़ जाओ, तभी आएगा बदलाव

अंग्रेजों ने जब हिंदू समाज में जातिगत विभाजन को पुख्ता संस्थागत बनाने के लिए आरक्षित वर्ग को 2 वोट देने का अधिकार देने का प्रावधान किया, तब गांधी जी अड़ गए और यरवडा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। डॉक्टर अंबेडकर को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। पूना समझौता हुआ और आरक्षित वर्ग को यथोचित संयुक्त मताधिकार मिला, जो आज भी चल रहा है।गांधीजी अपने लक्ष्य के मामले में बहुत हठी थे, उन्होंने अनेक बार हठ का उपयोग समाज, देश को एकजुट रखने के लिए किया।

अपनों की चिंता करो और योग्यता अनुरूप काम लो

गांधी अपने से जुड़े लोगों की योग्यता देख उसके अनुरूप ही काम लेते थे, ताकि परिणाम सही हो ।डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के परिवार पर बड़ा संकट आया। जमीदारी संकट में पड़ गई, भारी कर्ज हो गया था। राजेंद्र प्रसाद को कांग्रेस का सभापति बनाना था ,उन्हें उनके गांव जीरादेई से निकालना जरूरी था, तब गांधी ने ही इशारा किया और उद्योगपति जमनालाल बजाज ने जीरादेई का भार उठाया, घनश्याम दास बिड़ला से मदद ली और उधर गांव से दूर राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस और देश की सेवा में जुटे रहे।

सत्य और ईश्वर पर विश्वास रखो, वह जरूर मदद करेगा

गांधीजी ने साबरमती आश्रम में एक अनुसूचित जाति के परिवार को आश्रय दे दिया था, तो समाज के दानदाता नाराज थे। मगनलाल गांधी ने चेता दिया कहां से पैसा आएगा? गांधीजी भी बहुत चिंतित थे कि क्या आश्रम बंद करना पड़ेगा। तभी आश्रम के गेट पर एक कार रुकी, जिसमें बैठे सेठ ने गांधी को बुलवाया, मैं आपको कुछ धन देना चाहता हूं, क्या आप लेंगे? जरूरतमंद गांधी जी ने हामी भरी। दूसरे दिन सेठ आकर कुल ₹13000 (आश्रम का 1 साल का खर्च )दे गया ,और नाम पूछने का भी मौका नहीं दिया।

गांधी जी का सार-आसार

एक बार एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को गालियों से भरी हुई एक चिट्ठी लिखी। गांधीजी ने उस चिट्ठी को पढ़कर उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। बस वह आलपिन निकाल कर अपने पास रख लिया, जो उस में लगा हुआ था।
बाद में एक दिन वह अंग्रेज गांधी जी से मिलने के लिए आया। आते ही उसने सबसे पहले पूछा, महात्मा जी, आपने मेरी चिट्ठी पढ़ी या नहीं?
महात्मा गांधी ने जवाब दिया- तुम्हारी चिट्ठी मैंने बड़े ध्यान से पढ़ी है। अंग्रेज ने फिर पूछा- तो क्या सार निकाला आपने? गांधी ने कहा, एक आलपिन निकाला है। बस, उस चिट्ठी में इतना ही सार था। जो सार था ,उसे ले लिया। जो आसार था, उसे फेंक दिया।

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