जयपुर। राखियों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए धरती को हरा भरा बनाने वाली राखियां भी बाजार में आ गई हैं। यहां ऐसी राखियां तैयार की गई हैं, जिनके कलाई से उतरने के बाद जमीन में पड़ते ही पेड़ पौधे होते हैं।
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एक अनुमान के मुताबिक हाथों पर बांधी जाने वाली अस्सी करोड़ राखियां प्लास्टिक के कारण पर्यावरण के लिए खतरा बनती जा रही हैं।
भाई- बहन के प्यार का प्रतीक राखी को सुंदर बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के प्रति कई पर्यावरणविदों ने चिंता भी जताई जिससे प्रेरित होकर कई राखी निर्माताओं ने बीज राखियां तैयार की हैं। ये राखियां कागज की बनी होती हैं जिस पर कई फल-सब्जियों के बीज चिपके होते हैं। रक्षा बंधन के बाद इन राखियों को कचरे में फैंकने का कोई नुकसान नहीं होता बल्कि थोडा हवा-पानी के सम्पर्क में आते ही बीज अंकुरित हो जाते हैं। कागज की बनने वाली राखियों के निर्माताओं ने इनकी सुंदरता बनाए रखने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडी है ताकि फैशन के दौर में सुंदरता में पिछड़ नहीं जाए।
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मध्यप्रदेश के एक गैर सरकारी संगठन ने तो बीज राखियों के प्रचार प्रसार का बीडा उठाया है, जिसे कई पर्यावरण प्रेमी समर्थन कर आर्थिक मदद भी कर रहे है। इन राखी निर्माताओं का कहना है कि बाजार की प्रतिस्पर्धा में कागज की बीज राखियों ने अभी बडा स्थान नहीं बनाया है लेकिन धीरे-धीरे लोगों का रूझान बढ़ रहा है।
हाथ कागज निर्माताओं के लिए भी ये राखियां व्यवसाय के नए अवसर खोल रही हैं। पर्यावरण प्रेमियों को वृक्ष बचाने के लिए छेड़ी गई मुहिम की तरह प्लास्टिक से बनी राखियों के स्थान पर कागज की बीज राखियों के प्रचलन के लिए भी मुहिम छेड़नी पड़ेगी।
बीज राखी बनाने वालों का मानना है कि आज के युवा पर्यावरण प्रेमी है तथा आने वाले समय में इन राखियों का बड़ा बाजार बने।