- मातृभाषा को जिंदा न रख पाने वाले देश नहीं रह पाए जीवित
- बच्चे ,अभिभावक, अध्यापक, सरकार थोड़े-थोड़े सभी दोषी
सिकंदराराऊ। देश के जाने माने गीतकार व यश भारती से पुरस्कृत डॉ विष्णु सक्सेना ने यूपी बोर्ड की इस साल हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षा में 8 लाख परीक्षार्थियों के हिंदी विषय में फेल होने पर चिंता जताते हुए कहा है कि अगर अपने ही देश और प्रदेश में इसी तरह हिंदी बदहाल होती रही तो भारत की संस्कृति बचाना मुश्किल हो जाएगा। डॉ विष्णु सक्सेना ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि चिंता का विषय है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन इसी हिंदी विषय में उत्तर प्रदेश बोर्ड की इस वर्ष की परीक्षा में हाई स्कूल और इंटर में 8 लाख छात्र फेल हैं।
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हमारी शिक्षा पद्धति आखिर किधर जा रही है? कितने शर्म की बात है कि इस वर्ष की उत्तर प्रदेश माध्यमिक बोर्ड के परीक्षा परिणाम में दसवीं और बारहवीं में 8 लाख विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में फेल है। इसका दोष किसको दें, बच्चों को, अभिभावकों को, अध्यापकों को, या सरकार को। मेरे ख्याल से तो थोड़े थोड़े सभी दोषी हैं जिसमें सरकार को दोष इसलिए अधिक है क्योंकि पूरा तंत्र उसके हाथ में है। एक हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी के विषय में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का फेल हो जाना तंत्र पर सवाल तो खड़े करता है माना कि कैरियर के लिए अंग्रेजी बहुत आवश्यक है लेकिन चरित्र निर्माण के लिए तथा अपनी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए हिंदी कहीं उससे अधिक आवश्यक है। अगर अपने ही देश और प्रदेश में इसी तरह हिंदी बदहाल होती रही तो भारत की संस्कृति बचाना मुश्किल हो जाएगा।
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इसके लिए कुछ ज़रूरी प्रयास सभी को करने होंगे। इसमें पाठ्यक्रम बनाने वाली कमेटियों को बदला जाना चाहिए। इसमें नए बुद्धि जीवियो को शामिल करके हिंदी के पाठ्यक्रम में उपयोगी और आसान सामग्री को शामिल किया जाना चाहिए। उन स्कूल कालेजों की मान्यता समाप्त कर देनी चाहिए जो कागजों पर चल रहे हैं। जहां-जहां हिंदी अध्यापकों के स्थान रिक्त हैं उन्हें तत्काल भरना चाहिए अभिभावकों को भी अपने बच्चों की तरफ ध्यान देना होगा कि कहीं उनका बच्चा हिंदी विषय की उपेक्षा तो नहीं कर रहा। हिंदी विषय की मार्किंग अंग्रेजी, गणित और विज्ञान विषय की तरह कठिन होनी चाहिए। बच्चों के दिमाग में एक बात अच्छी तरह बिठा देनी चाहिए कि अगर हम अपनी मातृभाषा में फेल हो गए तो धीरे-धीरे यह देश फिर से गुलाम हो जाएगा क्योंकि इतिहास गवाह है जिन्होंने अपनी मातृभाषा को जिंदा रखा है वही देश जीवित रह पाए हैं शेष खत्म हो गए। उनके दिमाग से निकाल देना चाहिए की हिंदी फिसड्डी लोग पढ़ते है।