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मेरे अल्फ़ाज़ भी मिफ्ताह है खज़ाना तेरा… नामचीन शायरों ने बांधा समां

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मेरे अल्फ़ाज़ भी मिफ्ताह है खज़ाना तेरा... नामचीन शायरों ने बांधा समां

मेरे अल्फ़ाज़ भी मिफ्ताह है खज़ाना तेरा… नामचीन शायरों ने बांधा समां

  • हज़रत मिफ्ताउल हसन की याद में मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन

फफूंद (औरैया)। बीती रात नगर के एक गेस्ट हाउस में “एक शाम मिफ्ताउल हसन मिफ्ताह के नाम” से अज़ीमुश्शान मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें महमाने खुशूशी के रूप में सुल्तानपुर की सरजमीं से पधारे इश्क़ सुल्तानपुरी के अलावा गोरखपुर, इटावा,औरैया के अलावा क्षेत्रीय कवियों व शायरों ने अपने अपने कलाम व रचनाओं के ज़रिये लोगों की वाहवाही लूटी । कार्यक्रम की सदारत अयाज़ अहमद अयाज़ ने की और निजामत अतीक अहमद कमर ने की। मंगलवार की रात हजरत मिफ्ताउल हसन की याद में हुये मुशायरा एवं कवि सम्मेलन की शुरुआत सदारत कर रहे औरैया की सरजमीं से पधारे अयाज़ अहमद अयाज़ ने पैगम्बर मुहम्मद साहब की शान में नात पढ़ते हुए “ए रहमते हरदोसरा आपसा कोई नहीं, आये नबी सबने कहा आपसा कोई नहीं” की।

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इटावा से पधारे शायर इमरान अंसारी ने “नहीं ऐसा नहीं कि ग़म नहीं है,हमारी आंख लेकिन नम नहीं है।करेंगे फिर कभी हम इश्क यारो,अभी ये प्यार का मौसम नहीं है।”इटावा से पधारे शायर वैभव यादव ने कहा कि “इश्क में यू हाल है आली जनाब का,बड़ी रफ्तार में था प्यार का पंछी सुना है अब तलक घर तक नहीं पहुंचा।”औरैया से आये कवि अबुधय त्रिपाठी ने कहा कि “इस ज़माने से उस ज़माने में, थक रहा हूं आने जाने में,उसके चहरे को देखने के बाद,होश रहता कहाँ ठिकाने में।”गोरखपुर से पधारे कवि संजीव पांडेय ने “हम उसे इश्क की अपनी सुबह शाम मिलते थे,छत पर लेट कर आसमान में उसका नाम लिखते थे।”शायर आरिफ नूरी इटावी ने “तमाम उम्र जफाओ के गम जिसने दिए,उसी के गमको गले से लगा लिया मैंने ।

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कार्यक्रम में महमाने खुशूशी के रूप में सुल्तानपुर की सरजमीं से पधारे इश्क सुल्तानपुरी ने कहा कि “सफर हो छाओं का या धूप में जलते रहिये, क़ायदा ये है कि हर हाल में चलते रहिये।शायर मु० समी असर मिफ्ताहि ने “अजीब किस्म का मंज़र दिखाई देता है, तू मुझको मेरे ही अंदर दिखाई देता है।शायर अफ़ज़ल अंसारी ने “कितना मुफ़लिस था वो मिफ्ताह ज़माना तेरा,अब तो मुमकिन ही नहीं लौट के आना तेरा। जो भी आता है मुझे तेरी इनायत है और,मेरे अल्फ़ाज़ भी मिफ्ताह है खज़ाना तेरा। शायर अयाज़ अहमद अयाज़ ने यकीं मानो वो काबे की ज़ियारत करते रहते हैं, जो माँ के चहरे को पढ़कर तिलावत करते रहते हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय शायर आज़म ख़ान,आसिफ अंसारी,इकराम खान,रईसुद्दीन बशर तथा कवि डॉ० अजीत द्विवेदी जी ने भी अपने बहतरीन कलाम के ज़रिए लोगों की वाह वाही लूटी ।

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