Lord Vishwakarma had created the Sudarshan of Vishnu, the trident of Shiva and the period of Yama.

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भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था विष्णु का सुदर्शन, शिव का त्रिशूल और यम का कालदंड

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September 17, 2020

औरैया: आदि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा निर्माण के देवता माने जाते हैं। उन्होंने देवताओं के लिए बड़े-बड़े नगर बसाए। कहा जाता है कि सोने की लंका भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाई थी। देवताओं के लिए अमोघ अस्त्र भी विश्वकर्मा ने ही सृजित किए थे। शक्ति संपन्नता ,भौतिक संसाधन, सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए आदि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की उनकी जयंती पर धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है।

भगवान विश्वकर्मा के निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में कहा जाता है कि इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था।कर्ण के ‘कुण्डल’, विष्णु भगवान के सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान के त्रिशूल और यमराज के कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

विश्वकर्मा को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सोने की लंका का निर्माण इन्होंने ही किया था। भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है। उन्हें हिन्दू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।

अंगिरसी से उत्पन्न हुए थे भगवान विश्वकर्माएक कथा के अनुसार यह मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात ‘साक्षात विष्णु भगवान’ क्षीर सागर में शेषशैय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने पिता की भांति ही विश्वकर्मा भी आगे चलकर वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।

अनेक रूपों में हैं पूजितभगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पांच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है।