सत्त्ता विरोधी लहर भी बन रही है नीतिश की राह में रोढ़ा
नीतिश को केवल मोदी का सहारा
बिहार: बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव प्रचार कार्य जोरों पर है । सभी राजनैतिक दलों के प्रत्यासी और उन दलों के वरिष्ट नेता एड़ी चोटी का पसीना बहा रहे है। अबकी बार महागठबंधन और राजग के घटक दल पिछले 2015 के चुनाव से अलग है । 2015 में वर्तमान सीएम नीतिश कुमार ,लालू की राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल थे । महागठबंधन ने भारी बहुमत से चुनाव जीता था। उसे कुल 273 विधानसभा सीट में से 178 सीट मिली थी । जबकि राजग को केवल 58 सीट मिली थी. उस समय राजग में रामविलास पासवान की लोजपा शामिल थी उसे केवल 2 ही सीटे मिली थी । जबकि भाजपा को 53 सीट ही मिल सकी थी । नीतिश की अगुवाई में महागठबंधन ने सत्ता सँभाली थी । डिप्टी सीएम राजद के कोटे से तेजस्वी यादव बने थे । लेकिन ये महागठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला ।बीच मे ही जेडीयू ने राजद से सम्बन्ध तोड़ लिया।
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भाजपा औऱ नीतीश ने मिलकर फिर से सरकार बनाई । इस चुनाव में राजनीति ने एक बार फिर करवट ली लोजपा ने नीतिश को बिहार के लिये अभिशाप बताते हुए राजग से गठबंधन तोड़ लिया औऱ अकेले ही नीतिश हटाओ अभियान के तहत चुनाव में कूद पड़ी । रामविलास के अचानक निधन से चिराग पासवान अपने पिता की सहानुभूति के साथ मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा नुकसान राजग को ही होता दिख रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा को 5 प्रतिशत वोट मिले थे । यदि रामविलास की सहानुभूति का ज्यादा प्रभाव मतदाताओं पर पड़ा तो लोजपा ,राजग प्रत्याशियों का कई जगह समीकरण बिगाड़ सकता है।
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हालांकि राजनीतिक विश्लेषक यह कह रहे है कि नीतिश को भाजपा जैसा मजबूत साथी मिल गया है इसलिये उनकी जीत में ज्यादा मुश्किल नहीं है। क्योंकि राजद के साथ पहले के मुकाबले अबकी बार कोई बड़ा पार्टनर नहीं है । वहीं दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों का कहना है कि सत्ताविरोधी लहर और लोजपा के वोट कटवा होने के कारण राजद भी मजबूत है । यही कारण है कि तेजस्वी की रैलियों में ज्यादा भीड़ उमड़ रही है। पिछले चुनावों की बात करे तो महागठबंधन को 46 प्रतिशत और राजग को 34 प्रतिशत मत मिले थे । जबकि अकेले भाजपा को सबसे ज्यादा 24.8 प्रतिशत ,राजद को 18.5 प्रतिशत तथा जेडीयू को 16.7 प्रतिशत मत मिले थे ।