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इजराइल की संसद भंग, 4 साल में पांचवी बार होंगे चुनाव

इजराइल की संसद भंग, 4 साल में पांचवी बार होंगे चुनाव

इजराइल की संसद भंग, 4 साल में पांचवी बार होंगे चुनाव

इजरायल। इजराइल की संसद बृहस्पतिवार को भंग कर दी गई और चार साल से भी कम समय में पांचवीं बार नवंबर में आम चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। देश की संसद ने इस संबंध में निर्णय लिया। इजराइल के विदेश मंत्री और निवर्तमान सरकार के गठन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले यैर लैपिड शुक्रवार को मध्यरात्रि के बाद देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनेंगे। वह 14वें व्यक्ति होंगे जो यह पदभार संभालेंगे।नेतन्याहू को सत्ता से हटाकर सरकार बनाते समय बेनेट और लैपिड के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत मौजूदा फॉरेन मिनिस्टर कार्यवाहक पीएम बने रहेंगे। इसका अर्थ है कि अगले महीने इजरायल दौरे पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के आगमन पर उनका स्वागत बेनेट के बजाय लैपिड करेंगे। इजरायल का सियासी गणित बहुत रोचक है।

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बेनेट सरकार के पास विपक्ष से सिर्फ एक सीट ज्यादा थी। इजराइल की संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सीटें चाहिए। इजराइल में भी हमारे देश की तरह मल्टी पार्टी सिस्टम है और छोटी पार्टियां भी कुछ सीटें जीत जाती हैं। इसी वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता।उल्लेखनीय है कि (निवर्तमान प्रधानमंत्री) नफ्ताली बेनेट इजराइल के इतिहास में सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहे हैं। उनकी सरकार गठन होने के एक साल बाद ही गिर गई। इजराइल के इतिहास में सबसे लंबे समय 12 साल तक प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपदस्थ कर बेनेट की सरकार बनी थी। इसके लिए अलग-अलग विचारधारा की आठ पार्टियां एकजुट हुई थीं।

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संसद को भंग करने के प्रस्ताव का 92 सदस्यों ने समर्थन किया जबकि किसी सदस्य ने इसका विरोध नहीं किया। आम चुनाव अब एक नवंबर को होंगे।सोमवार को नफ्ताली बेनेट और यायिर लैपिड संसद भंग करने के लिए सहमत हो गए। कई हफ्तों से ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि इजरायल का सत्तारूढ़ गठबंधन टूट सकता है। एक संयुक्त वक्तव्य में बेनेट और लैपिड ने अपने दलों के बीच गठबंधन को तोड़ने की जानकारी दी। इसमें कहा गया कि दोनों संसद भंग करने के लिए एक विधेयक लेकर आएंगे और अक्टूबर में चुनाव होने की उम्मीद है।

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इजराइल की संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सीटें चाहिए। देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है और छोटी पार्टियां भी कुछ सीटें जीत जाती हैं। इसी वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता। लिहाजा, अकसर प्री या पोस्ट पोल अलायंस होते हैं। इसके बावजूद सरकारें चल नहीं पातीं, क्योंकि सियासी हालात काफी मुश्किल हैं। कई मुद्दों पर पार्टियों में मतभेद बने रहते हैं।

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