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जन्म शताब्दी वर्ष में इटावा को याद आये के. आसिफ

जन्म शताब्दी वर्ष में इटावा को याद आये के. आसिफ

जन्म शताब्दी वर्ष में इटावा को याद आये के. आसिफ

इटावा। गुजरे जमाने की सुपर हिट हिन्दी फिल्म मुगले आजम के निर्माता निर्देशक के आसिफ को उनके जन्मशताब्दी वर्ष पूरे होने पर चंबल नगरी इटावा में शिद्दत से याद किया गया।इटावा शहर के मोहल्ला कटरा पुर्दल खां में जन्मे आसिफ मुफलिसी के चलते इस्लामिया इंटर कालेज में सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ाई कर पाए थे जिसके बाद वे मायानगरी बंबई चले गए और वहां दर्जी का काम करने लगे लेकिन फिल्मों के प्रति उनकी दीवानगी ने उन्हें अव्वल दर्जे का निर्देशक बना दिया। हिंदी सिनेमा की आईकॉनिक ‘मुगल-ए-आज़म’ फिल्म को बनाने के लिए के. आसिफ ने प्रसिद्ध सिने स्टूडियो ‘अमौस सिने लेब्रोटेरिज’ के मालिक शिराज अली हकीम के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, इससे पहले हाकिम ने के. आसिफ के डायरेक्शन में बनने वाली पहली फिल्म ‘फूल’ 1945 में भी साथ काम किया था।

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फिल्म फूल को हिंदी सिनेमा की सबसे पुरानी मल्टीस्टारर फिल्मों में से एक माना जाता है। के. आसिफ मशहूर फिल्म निर्माता ही नहीं बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने भारतीय सिनेमा की सबसे भव्य और ऐतिहासिक माइलस्टोन फिल्म मुग़ल-ए-आजम बनाकर अमरता हासिल कर ली। वर्ष 1949 में के. आसिफ ने शहीद-ए-आजम ‘भगत सिंह’ पर ख्वाजा अहमद अब्बास के साथ फिल्म निर्माण का काम शुरू किया था और 1951 में उनकी निर्मित ‘हलचल’ फिल्म रिलीज होते ही सिने प्रेमियों के जहन पर छा गई। मुगल-ए-आजम निर्माण का शुरूआती दौर भारी उथल-पुथल का रहा।

आजादी और विभाजन की त्रासदी में शिराज अली हाकीम ने अपना स्टूडियो बेंच दिया और एक्टर हिमाल्यवाला पाकिस्तान चले गए लेकिन इन सब परिस्थितियों को झेलते हुए के. आसिफ ने मुंबई में अपने जिन्दा ख्वाबों की ताबीर में दिन-रात शिद्दत से जुटे रहे। फेमस सिने स्टूडियो के मालिक शापूरजी ने के. आसिफ के ‘मुगले आजम’ के सपने को पर्दे पर उतारने में भरपूर मदद की। आखिरकार 14 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद 5 अगस्त, 1960 को 150 सिनेमा घरों में रिलीज किया गया था, जिसने अपने पहले ही हफ्ते में 40 लाख रुपये की रिकार्ड कमाई कर तहलका मचा दिया और पूरी दुनिया के शिलालेख में दर्ज हो गया।

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यह पूरी फिल्म ब्लैक एंड हवाइट है और सिर्फ एक गाना इसमें रंगीन है। इसी मलाल में के. आसिफ वर्ष 1963 से ‘लव एंड गाड’ कलर फिल्म बनाने के लिए जी जान से जुटे थे मगर रिलीज से पहले ही महज 48 वर्ष की उम्र में वह दुनियां से रूखसत हो गए। चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के संस्थापक लेखक और दस्तावेजी फिल्मकार शाह आलम राना और चंबल फाउंडेशन के बोर्ड मेंबर डॉ. कमल कुमार कुशवाहा ने कहा कि देश की धरोहर महान फिल्मकार के. आसिफ के जन्म शताब्दी वर्ष पूरे होने पर डाक टिकट जारी करने,जन्मस्थान पर स्मारक बनाने व उनके नाम पर फिल्म इंस्टीट्यूट खोलने से उन्हें सच्ची खिराज-ए-अकीदत होगी।

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