तेजस ख़बर

कालीन नगरी भदोही का रेड कारपेट किसके लिए बिछेगा ? भाजपा या तृणमूल के लिए ?

कालीन नगरी भदोही का रेड कारपेट किसके लिए बिछेगा ? भाजपा या तृणमूल के लिए ?

कालीन नगरी भदोही का रेड कारपेट किसके लिए बिछेगा ? भाजपा या तृणमूल के लिए ?

यूपी की सियासत में भदोही इसलिए रोचक है क्योकि इंडिया गठबंधन ने यह एक मात्र सीट पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीएमसी के लिए छोड़ दी है. भदोही लोकसभा सीट पर यूपी में इंडिया गठबंधन की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के इकलौते उम्मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी भाजपा और बसपा के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में हैं . . गंगा के मैदानी इलाकों में बसे भदोही जिले को ‘कालीनों का शहर’ भी कहा जाता है. कालीन निर्माण पर आधारित अर्थव्यवथा वाला यह जिला 30 जून 1994 को अस्त‍ित्व में आया था. नाम पड़ा था भदोही. लेकिन यह नाम राजनीतिक दांवपेंच में भी उलझा.

यह भी देखें : फर्रुखाबाद में बुद्ध पूर्णिमा में हजारों ने लगायी आस्था की डुबकी

पूर्व मायावती सरकार ने इसका नाम संत रविदास नगर रख दिया था. फिर 6 दिसम्बर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिर इस जिले का नाम भदोही कर रख दिया. ‘कारपेट सिटी’ के रूप में विश्वभर में पहचान रखने वाले भदोही जिले में कालीन उद्योग का लिखित साक्ष्‍य 16वीं सदी की रचना ‘आइन-ए-अकबरी’ से मिलने लगता है. गंगा के उत्तरी किनारे पर मौजूद इस जिले के उत्तर दिशा में जौनपुर, पूर्व में वाराणसी और मिर्जापुर, दक्षिण और पश्चिम में प्रयागराज स्थित है. इलाहाबाद लोकसभा सीट के हंडिया और प्रतापपुर विधानसभा के साथ मिलकर भदोही संसदीय क्षेत्र बनाने वाले इस जिले में ज्ञानपुर औराई और भदोही विधानसभा क्षेत्र भी हैं. परिसीमन से पहले, भदोही सीट को मिर्जापुर-भदोही संसदीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. यह सीट तब सुर्खियों में आयी जब वर्ष 1996 में सपा ने ‘बैंडिट क्वीन’ से नेता बनी फूलन देवी को मैदान में उतारा और वे चुनाव जीतीं.

परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई भदोही से पहली बार बसपा से गोरखनाथ पांडेय और उसके बाद दो चुनावों में क्रमश: वीरेंद्र सिंह मस्त और रमेश बिंद जीते. भदोही में पिछले चुनावों में बाहरी लोगों ने जीत हासिल की है. 2014 में, विजेता वीरेंद्र सिंह मस्त थे जो बलिया के रहने वाले हैं और 2019 में यह रमेश बिंद थे जो मिर्जापुर के हैं.  मौजूदा बीजेपी प्रत्याशी विनोद कुमार बिंद चंदौली से हैं. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भदोही लोकसभा सीट पर दो ‘बाहरी’ उम्मीदवार भाजपा के विनोद कुमार बिंद और तृणमूल कांग्रेस के ललितेश पति त्रिपाठी (इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार) आमने-सामने हैं. भदोही से इस बार भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बदलकर निषाद पार्टी के मझवां से विधायक विनोद बिंद को अपना उम्मीदवार बनाया है.  भदोही से मौजूदा सांसद रमेश बिंद भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं और वे मिर्जापुर से गठबंधन के उम्मीदवार हैं. इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे में सपा ने 63 सीटें अपने पास रखीं है और 17 सीटें कांग्रेस को दी हैं.

यह भी देखें : वरुण ने मां मेनका के लिये वोट की अपील,उमड़ा जनसैलाब

सपा के कोटे की 63 सीटों में एक भदोही पर ललितेश चुनाव लड़ने के लिए प्रयासरत थे. पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परिवार से आने वाले ललितेश 2012 में मिर्जापुर के मड़िहान से विधायक चुने गए थे. 2019 में वे कांग्रेस की टिकट पर मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन 91 हजार वोट ही हासिल कर पाए. बाद में कांग्रेस का हाथ छोड़कर टीएमसी का साथ पकड़ लिया. टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी और सपा मुखिया अखिलेश यादव के बीच अच्छे रिश्ते ने उम्मीद का रास्ता खोल दिया. 2022 में ममता ने अखिलेश के लिए प्रचार भी किया था. इसलिए, ललितेश की उम्मीदवारी के लिए ममता की सिफारिश काम आ गई. सपा ने अपने कोटे की एक सीट टीएमसी को सौंप दी जिस पर ललितेश उम्मीवार हैं. भदोही निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में से तीन पर सपा का कब्जा है, जिसमें एक मुस्लिम और दो पिछड़े विधायक, एक यादव और एक बिंद हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 3 लाख सदस्यों के साथ बिंद समुदाय का वर्चस्व है, जिनमें लगभग इतने ही ब्राह्मण हैं.

इसके अलावा ढाई लाख दलित, ढाई लाख मुस्ल‍िम, डेढ़ लाख यादव, एक लाख राजपूत, एक लाख मौर्य, 80 हजार पाल, 75 हजार कुर्मी, व अन्य जाति के मतदाता हैं. भाजपा ने दूसरी बार बिंद को मैदान में उतारा है, जिससे भाजपा के वोटर रहे ब्राह्मण सामाज में कुछ नाराजगी है.  उधर यूपी में टीएमसी के इकलौते उम्मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी के साथ समाजवादी पार्टी का कोर वोटबैंक यादव और मुसलमान खड़ा है. यूपी के पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के पोते व पूर्व कांग्रेसी, पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी को सपा का पूरा समर्थन मिल रहा है. पार्टी कैडर उनके लिए प्रचार कर रहा है, क्योंकि यूपी में टीएमसी का चुनाव चिह्न लोगों के बीच बहुत परिचित नहीं है.  यूपी का कालीन केंद्र होने के अलावा, भदोही गैंगस्टर से नेता बने विजय मिश्र जैसे माफिया के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी चर्चा में था. विजय मिश्र पर प्रदेश सरकार की कड़ी कार्रवाई को इनके समर्थक ब्राह्मण बनाम ठाकुर की जंग के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. इंडिया गठबंधन के नेता भी अंदरखाने इस मुद्दे को उठाकर विजय मिश्र के समर्थक ब्राह्मण मतदाताओं पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे हैं.

यह भी देखें : केदारनाथ में तीर्थयात्रियों के हेलिकॉप्टर की आपात लेंडिंग

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार – भदोही के राजनीतिक समीकरण निश्चित रूप से जातियों और समुदायों के मकड़जाल में फंसे हुए हैं, लेकिन 16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद, मतदाताओं का मूड, जो कई मुद्दों पर भाजपा से नाराज थे, बदलना शुरू हो गया है.
बसपा में शामिल हुए प्रमुख ब्राह्मण चेहरे रंगनाथ मिश्रा की भाजपा में वापसी से भाजपा को राहत मिली है और पार्टी बसपा के पारंपरिक मतदाताओं पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है. भदोही लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी भी चुनावी त्रिकोण बनाने की कोशिश कर रही है. बसपा ने यहां पहले अतहर अंसारी को टिकट दिया. बाद में मंडल कोआर्डिनेटर रहे इरफान अहमद बबलू को उम्मीदवार बना दिया. इसके बाद हरिशंकर सिंह उर्फ दादा चौहान को मैदान में उतार दिया. वर्ष 2009 में भदोही लोकसभा सीट जीतने वाली बसपा इस बार काफी सुस्त है जिससे इसके परंपरागत वोटबैंक पर सेंधमारी का प्रयास भाजपा और इंडिया गठबंधन के द्वारा किया जा रहा है.

कालीन उद्योग ने भदोही को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई लेकिन आज यह कठिन दौर से गुजर रहा है. अखिल भारतीय कालीन विनिर्माण संघ (एआईसीएमए) के अनुसार भदोही में सालाना लगभग 9,000 करोड़ रुपये का कालीन बनता है. इनमें से हर साल 5,000 करोड़ रुपये से अधिक के कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों सहित विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते हैं. कालीन उद्योग पांच लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है. कालीन बुनकरों को इस बात का दुख है कि सरकार ने साड़ी बुनकर की तुलना में उनकी उपेक्षा की है. चुनाव में दबी जुबान बुनकरों की खराब माली हालत भी मुद्दों की सूची में शुमार हो रही है. राजनीतिक दांवपेच, जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दों की कसौटी, आखिर में इसी से तय होना है कि किस उम्मीदवार के लिए कालीन नगरी रेड कारपेट बिछाएगी.

Exit mobile version