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फिल्में हमारे समाज की कलात्मक भावना को दर्शाती हैं :द्रौपदी मुर्मु

फिल्में हमारे समाज की कलात्मक भावना को दर्शाती हैं :द्रौपदी मुर्मु

फिल्में हमारे समाज की कलात्मक भावना को दर्शाती हैं :द्रौपदी मुर्मु

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि फिल्में हमारे समाज की कलात्मक भावना को दर्शाती हैं। सत्तरवें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में विभिन्न भाषाओं में निर्मित सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्मों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सम्मानित किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी फिल्में हमारे समाज की कलात्मक भावना को दर्शाती हैं। जीवन बदल रहा है। कला के मानक बदल रहे हैं। नयी आकांक्षाएं पैदा हो रही हैं। नयी समस्याएं सामने आ रही हैं। नयी जागरूकता बढ़ रही है। इन सभी परिवर्तनों के बीच, प्रेम, करुणा और सेवा के अपरिवर्तनीय मूल्य अभी भी हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को सार्थक बना रहे हैं। हम इन सभी मूल्यों को आज पुरस्कृत फिल्मों में देख सकते हैं।

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श्रीमती मुर्मु ने कहा कि भारतीय सिनेमा दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है, जिसमें कई भाषाओं और देश के सभी क्षेत्रों में फिल्में बनाई जाती हैं। यह सबसे विविध कला भी है। उन्होंने सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी और फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों की सराहना की। राष्ट्रपति ने मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्राप्त करने के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि लगभग पांच दशकों की अपनी कलात्मक यात्रा में मिथुन जी ने न केवल गंभीर किरदारों को पर्दे पर उतारा है, बल्कि अपनी अनूठी ऊर्जा के साथ कई साधारण कहानियों को भी सफलतापूर्वक चित्रित किया है।

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श्रीमती मुर्मु ने कहा कि पुरस्कृत फिल्मों की भाषाएं और पृष्ठभूमि भले ही अलग-अलग हों, लेकिन वे सभी भारत का प्रतिबिंब हैं। ये फिल्में भारतीय समाज के अनुभवों का खजाना हैं। भारतीय परंपराएं और उनकी विविधता इन फिल्मों में जीवंत हो उठती हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि समाज में बदलाव लाने के लिये फिल्में और सोशल मीडिया सबसे सशक्त माध्यम हैं। इन माध्यमों का लोगों में जागरूकता पैदा करने में किसी भी अन्य माध्यम से अधिक प्रभाव है। उन्होंने कहा कि आज वितरित किए गए 85 से अधिक पुरस्कारों में से केवल 15 पुरस्कार महिलाओं को मिले हैं। उन्होंने कहा कि फिल्म उद्योग महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की दिशा में और अधिक प्रयास कर सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि सार्थक फिल्मों को अक्सर दर्शक नहीं मिलते। उन्होंने जागरूक नागरिकों, सामाजिक संगठनों और सरकारों से दर्शकों तक सार्थक सिनेमा की पहुंच बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

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