लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कृषि ऋण के एक आवेदन को चार साल तक अनावश्यक लंबित रखने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार के प्रमुख सचिव, कृषि को इस मामले की जांच कर 30 दिन में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह ने किसान रामचंद्र यादव के फसल ऋण आवेदन पर विभागीय अधिकारियों द्वारा पिछले चार सालों से कोई कार्रवाई न करने पर विभाग को फटकार लगाते हुए पूछा कि समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति के प्रति अफसर इस हद तक लापरवाह क्यों हो गये हैं।
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अदालत ने इसे गलत रवैया करार देते हुए प्रमुख सचिव, कृषि को मामले की जांच करने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने किसान के आवेदन पर तीन सप्ताह में निर्णायक कार्रवाई करने को भी कहा है। मामले के तथ्यों के अनुसार किसान ने कृषि यंत्र व खाद बीज खरीदने के लिए सरकार की फसल ऋण योजना 2017 के तहत बैंक से ऋण लेने का आवेदन किया था। उसके आवेदन को तीन साल तक जिला स्तर पर ही अधिकारियों ने लंबित रख कर उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद किसान को मजबूरन अदालत की शरण में जाना पड़ा।
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अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का आवेदन 2018 से लंबित है और इसकी मंजूरी प्रमुख सचिव, कृषि को देनी है। ऐसे में प्रमुख सचिव कृषि, इस पर गौर कर कोई निर्णय लें। अदालत ने समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों के प्रति अफसरों की लापरवाही को ही एक गरीब किसान का मामला चार साल से ज्यादा लंबित रखे जाने की मूल वजह बताया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि याचिकाकर्ता के लाभ के लिये बनी योजना में उसकी पात्रता वर्ष 2017 से तय नहीं हो सकी। अधिकारियों के ऐसे कृत्यों को रोके जाने की जरूरत पर बल देते हुए अदालत ने प्रमुख सचिव, कृषि को इस विलंब और लापरवाही की जांच करने का आदेश दिया। अदालत ने जांच रिपोर्ट 30 दिन में रजिस्ट्रार के जरिए पेश करने का निर्देश देकर इस आदेश के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया।