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पर्यावरण मित्र ‘तांगा’ अस्तित्व बचाने के लिए कर रहा संघर्ष, देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं तांगे

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पर्यावरण मित्र ‘तांगा’ अस्तित्व बचाने के लिए कर रहा संघर्ष, देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं तांगे
पर्यावरण मित्र ‘तांगा’ अस्तित्व बचाने के लिए कर रहा संघर्ष, देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं तांगे

प्रयागराज। ड़ीजल-पेट्रोल चलित वाहनों से निकलने वाले विषाक्त धुंए की तुलना में सस्ता, सुलभ और एक जमाने में शान की सवारी समझा जाने वाला पर्यावरण मित्र तांगा और तांगेवाले अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तांगे की सवारी संगम नगरी इलाहाबाद में उन दिनों की याद दिलाती है जब हर गली, चौराहो पर तांगो के घोड़ों के टाप सुनाई देते थे।

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सडकों पर फर्राटा भरती आरामदायक गाडियों के शोर में घोडों के टाप की आवाज कहीं गुम होकर रह गयी। सड़कों पर सरपट भागते इनको देखना आम बात होती थी। यात्री कहीं आने.जाने के लिए तांगे का तुत्फ उठाया करते थे। स्टेशन से संगम में आस्था की डुबकी लगाने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तांगा बेहतरीन विकल्प साबित होता था लेकिन अब लोग तांगे की सवारी करना शान के खिलाफ समझते हैं।

ब्रिटिश शासनकाल से ही तांगे देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। दो-तीन दशक पहले तक शाही शान समझे जाने वाले यहां सैकड़ों तांगे चलते थे लेकिन तेज रफ्तार वाहनों के कारण इनकी तादाद दिनो दिन घटती चली गयी। इन्हे शहर में तांगा अब अंगुलियों पर गिना जा सकता है। यातायात के तेज वाहनो के कारण पहले के मुकाबले तांगे वालों की आमदनी भी सीमित रह गयी जिससे न/न तो घोड़े की खुराक निकल पाती और परिवार की जीविका चलाना भी मुश्किल हो गया है जिस कारण आज तांगा और तांगेवाले दोनों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है।

राजकीय अस्पताल काल्विन के न्यूरोलोजिस्ट डा राकेश पासवान ने बताया कि डीजल एवं पेट्रोल चलित यातायात साधनों की क्रांति ने लोगों को सहुलियतें तो दी है साथ ही नगरों एवं शहरों में कुल प्रदूषण का लगभग 70 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुएं से लोगों अनेक प्रकार की बीमारियों को तोहफे में दिया है। वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषणकारी तत्वों से वायुमंडल तथा उसमें उपस्थित सभी जीव पदार्थों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव हो पड़ रहा है।

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डा पासवान ने बताया कि वाहनों से उत्सर्जित धुएं से निकलने वाली कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी घातक गैस एवं एरोसोल जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कण शहर की हवा को विषाक्त बनाते रहते हैं। वाहनों से निकलने वाली घातक गैसों से मनुष्य के शरीर, चर्म, दिमाग, फेफड़े, हृदय, गुर्दे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

उन्होने बताया कि धुएं के कारण लोग में छाती की बीमारी,फेफड़े के कैंसर और दमा जैसी बीमारियों का मूल कारण, वायु प्रदूषण ही है। वाहन के धुएं में मौजूद सीसा या लेड, एक ऐसा जहर है जो नाड़ियों में इकट्ठा होकर अनुवांशिक विकार पैदा करता है। सीसा या लेड बड़ों की अपेक्षा बच्चों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।

नगर निगम के लाइसेंस विभाग के पंढ़री लाल पाल से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2017-18 में केवल नौ तांगों के लाइसेंस बने थे और उसके बाद 2018-19 में मात्र दो तांगों का लाइसेंस विभाग ने बनाया था। उन्होने बताया कि वर्ष 2019-20 और 2020-21 में किसी तांगे का लाइसेंस नहीं बना है। उन्होने बताया कि लाइसेंस एक साल का बनता है। उसके बाद उसका नवीनीकरण करना पड़ता है।

श्री पाल ने बताया कि लाइसेंस बनना बंद नहीं हुआ है। अब शहर में यदा-कदा दिखने वाले गिने चुने तांगे रह गये हैं। अगर कोई तांगे का लाइसेंस बनवाने आता है तो निश्चित ही उसका लाइसेंस नगर निगम बनाएगा। आटो मोबाइल वाहनों के कारण तांगो की सवारी करना कोई पसंद नहीं करता। हर व्यक्ति सस्ते भाडे में गंतव्य को जल्द पहुंचना चाहता है। तांगे की सवारी महंगी और धीमे गति वाली है जिसके लिए यातायात साधन में इसका उपयोग करीब करीब खत्म सा हो गया है।

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उन्होने बताया कि तांगे में कोई ब्रेक नहीं होता, उसमें जुते घोड़े को नियंत्रित करने के लिए केवल लगाम का सहारा ही कोचवान के पास होता है। भीड़-भाड वाले क्षेत्र में इसे संभालना मुश्किल होता है जिस कारण ट्राफिक पुलिस किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए इन्हें शहर के अन्दर चलने पर रोक-टोक करते हैं। इस कारण तांगा चालकों को सवारी नहीं मिलती और किचकिच के कारण कम ही तांगे है जो यदाकदा देखने को मिलते हैं।

नगर के नामचीन बुजुर्ग सख्शियत अभय अवस्थी ने बताया कि तांगे की सवारी इलाहाबाद के उन दिनों की याद दिलाती है जब हर गली, चौराहो पर तांगो के घोड़ों के टाप सुनाई देते थे। सड़कों पर सरपट भागते इनको देखना आम बात होती थी। यात्री कहीं आने.जाने के लिए तांगे का तुत्फ उठाया करते थे। स्टेश…

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