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3 दशक तक आतंक का पर्याय रहे मोहर सिंह की थमी सांसे

Mohar Singh's breath has been synonymous with terror for 3 decades

PHOTO BY,TEJAS KHABAR

चंबल बैली। करीब तीन दशक तक चंबल घाटी में आतंक का सबसे बड़ा नाम रहे मोहर सिंह गुर्जर का करीब 90 साल की उम्र में मंगलवार को भिंड के मेहगांव स्थित घर पर ही निधन हो गया। समर्पण के बाद मोहर सिंह ने नगर परिषद मेहगांव का चुनाव लड़ा। वर्ष 1994 में वे नगर परिषद अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुने गए थे।

1950 के आसपास चंबल वैली में बागियों की बाढ़ सी आ गई थी। मान सिंह, रुपा, लाखन, सुलताना जैसे डाकूओं से घाटी थर-थर कांप रही थी।लेकिन 60 का दशक शुरु होते ही यहां के ज्यादातर डाकू एक एक कर पुलिस की गोलियों का शिकार होते गए। बीहड़ में एक तरह का सन्नाटा सा छाने लगा और तभी बागी मोहर सिंह के रूप में डाकूओं का एक सबसे बड़ा गिरोह सामने आया था।

चंबल में मोहर सिंह की गोलियों की आवाज से 3 राज्यों की पुलिस कांपती थी। पुलिस की कई टीमें मोहर सिंह को पकड़ने के लिए चंबल में अभियान चलाने को उतरीं पर वह कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा। मोहर सिंह के आंतक से दिल्ली बेचैन रहती थी। 60 और 70 के दशक में चंबल के सबसे बड़े गिरोह के मुखिया की पहचान बना चुके मोहर सिंह ने समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की मध्यस्थता के बाद 14 अप्रैल 1972 को मुरैना के जौंरा में गांधी जी की तस्वीर के समक्ष अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था। आत्मसमर्पण के समय मोहर सिंह की उम्र महज 37 वर्ष थी। उन्होंने अपनी एसएलआर बंदूक व भारी मात्रा में कारतूस के साथ सरेंडर किया था, उनके साथ गैंग के 44 दूसरे अन्य सदस्यों ने भी हथियार डाले थे।

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पीएम मोदी से की थी मंदिरों के जीर्णाद्धार की मांग

कभी चंबल में डकैतों के सरदार रहे मोहर सिंह गुर्जर ने सरेंडर के बाद सामान्य जिंदगी जीना शुरू कर दिया था। सितंबर 2019 को मोहर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर आग्रह किया कि मुरैना में गुर्जर प्रतिहार राजवंश के निर्मित 9वीं सदी के बटेश्वर स्थित शिव मंदिरों की शृंखला में शामिल जर्जर मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जाए। अपने इस खत से एक बार फिर मोहर सिंह सुर्खियों में आ गए थे।

गिरोह ने की 80 से ज्यादा लोगों की हत्या

कभी मोहर सिंह का गिरोह सबसे खतरनाक हुआ करता था। पुलिस ने सबसे बड़ा ईनाम भी इसी गिरोह पर रखा था। गिरोह पर करीब 80 लोगों की हत्या के आरोप थे। गोहद के जटपुरा गांव में जमीन हथियाने के लिए सताने वाले वाले को गोलियों से छलनी कर 1958 में मोहर सिंह गुर्जर चंबल घाटी में डकैत के रूप में कूदे और बहुत ही बड़ा गिरोह तैयार किया। लेकिन कुछ ही समय में उन्होंने डकैत होते हुए भी ऐसे नेक काम किए जिससे लोगों में उन्होंने दद्दा की छवि बनाई थी।

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मोहर सिंह पर 2 लाख का इनाम था
मोहर सिंह का इस कदर खौफ था कि उस जमाने में उन पर 2 लाख रुपए का इनाम था। उनके नाम से ही लोग कांपते थे, हालांकि अपराध की दुनिया छोड़ने के बाद वो गरीबों की मदद और गरीब लड़कियों की शादी कराने की वजह से भी लोकप्रिय हो गए थे।

मान सिंह की जगह ली थी
बताते हैं कि मोहर सिंह से पहले चंबल घाटी में मानसिंह का आतंक था जिसकी जगह बाद में मोहर सिंह ने ले ली थी, कहते हैं कि मोहर सिंह के गैंग खासा बड़ा था और उसमें करीब 150 से ज्यादा डाकू थे। मोहर सिंह ने सालों पुलिस को छकाया इसके पीछे उनके नेटवर्क का बेहद सशक्त होना था,बताते हैं कि पुलिस के चंबल में पांव रखते ही उसको खबर हो जाती थी और मोहर सिंह और उनका गैंग सचेत हो जाता था।

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