प्रयागराज । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किशोरों की उम्र निर्धारण मामले में किशोर न्याय बोर्ड को नसीहत दी है। अदालत ने कहा कि है कि किशोरों के उम्र निर्धारण में उसे पक्षकारों पर निर्भर रहने की बजाय खुद पहल करते हुए सबूत एकत्र करने चाहिए क्योंकि, अंतिम जिम्मेदारी उसी की है। अदालत ने सबूतों की कमी पर संज्ञान नहीं लिया और केवल चिकित्सकीय साक्ष्य को ही उम्र का निर्णायक प्रमाण माना, जिससे किशोर को वयस्क मानने की गलती हुई। न्यायालय ने सत्र न्यायालय के एक अक्तूबर 2022 के आदेश को रद्द कर दिया और नियमानुसार फिर से विचार के लिए किशोर न्याय बोर्ड को वापस भेज दिया है।
यह भी देखें : कांग्रेस रूपी लंका को मोदी जलाएंगे: स्मृति
यह आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने मेरठ के किशोर की पुनरीक्षण अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है। अदालत ने कहा कि अदालत के पास उम्र को कम करने या कुछ मार्जिन के साथ बढ़ाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा कोई पूर्ण कानून नहीं है कि सभी मामलों में अन्य साक्ष्यों की अनदेखी करते हुए चिकित्सा प्रमाणपत्र को आयु से दो वर्ष या एक वर्ष अनिवार्य रूप से कम किया जाए। फिर चाहे वह चिकित्सा आयु का खंडन करने वाली हो या पुष्टि करने वाली हो।
यह भी देखें : मोदी सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर लगा अंकुश : पाठक
मेरठ सत्र अदालत ने मेरठ में हुए बलवा व हत्या मामले में याची/ किशोर को वयस्क मानते हुए ट्रायल चलाने का आदेश दिया था। किशोर न्याय बोर्ड ने भी उसे अपने 27 अगस्त 2022 के आदेश में वयस्क माना था। कहा गया कि वह स्कूल के रिकॉर्ड में अवस्यक है। उसकी आयु 16 वर्ष छह महीने दर्ज है। अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर 18 वर्ष से अधिक आयु का माना और ट्रायल कोर्ट को स्थानांतरित कर दिया।तथा , उम्र निर्धारण करने के लिए मामले को फिर से किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया है।