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जनमेजय नगरी में किया था पिता का बदला लेने के लिये परीक्षित के बेटे ने सर्प मेधयज्ञ

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जनमेजय नगरी में किया था पिता का बदला लेने के लिये परीक्षित के बेटे ने सर्प मेधयज्ञ
जनमेजय नगरी में किया था पिता का बदला लेने के लिये परीक्षित के बेटे ने सर्प मेधयज्ञ

सर्पदंश ने नही होती है इस इलाके में मौत

औरैया : आज नागपंचमी है आज सर्पों की पूजा प्रत्येक घरों में होती है । जनपद के सेहुद गाँव में धौरानांग का मंदिर है इसके अलावा कस्बा जाना में भी महाभारत कालीन हवनकुण्ड है जहाँ सर्पों को मार डालने के लिये यज्ञ हुआ था । कोरोना के चलते आज ये स्थान सूने पड़े है ।जिले में जाना कस्बे जिसे जनमेजय नगरी भी कहा जाता है यहाँ पंच पोखर आश्रम भी स्थिति है ,इस स्थान पर ही सर्प जाति को समाप्त करने के लिए सर्प मेध यज्ञ किया गया था। । ये स्थान राजा परीक्षित की सर्प दंश से हुई मौत के बाद में चर्चा में आया। परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प मेघ यज्ञ कराया था। महाभारत काल में पांडवों के अंतिम राजा जनमेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद हुए यज्ञ से यहां की पूरी कहानी का तानाबाना है। लोगों का कहना कि इस क्षेत्र में आज भी सांप काटने से किसी की मौत नहीं होती है।

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महाभारत की कथा के अनुसार

एक बार की बात है कि जंगल में राजा परीक्षित शिकार करने हेतु वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने लगे। वे प्यास से व्याकुल हो गए तथा जलाशय की खोज में वे शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए। ऋषि उस वक्त ध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर दिया। राजा परीक्षित को लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं। नाराज होकर उन्होंने पास में ही पड़े एक मरे हुए सर्प को उनके गले में डाल दिया।

शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने जब अपने पिता को इस तरह देखा तो वे अपने पिता के अपमान में क्रोधित होकर राजा परीक्षित को सर्प से काटने का श्राप दिया। उन्होंने ने कहा कि आज के सातवें दिन सर्प के काटने से उसकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु को टालने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किये लेकिन, सातवें दिन सर्प के काटने से उनकी मृत्यु हो गई।

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पिता की मौत का बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने सर्पो के समूल नाश के लिए सर्प मेध यज्ञ कराने का निर्णय लिया। इस दौरान उन्होंने यज्ञ कराया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। आखिरकार उन्होंने यज्ञ के लिये सबसे उपयुक्त स्थान औरैया के दलेल नगर से सटे कस्बे के जाना गाँव को चुना, जो सूर्य उदय अस्त मंजलोक पृथ्वी का बिंदु है।

यज्ञ के दौरान हवन कुंड में हजारों सर्प गिरकर भस्म होने लगे

पंच पोखर आश्रम की देखरेख कर रहे श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज, मनोहर दास जी महाराज लोहा लगड़ी फक्कड़ ने बताया कि यहां पर सर्प मेघ यज्ञ का आयोजन किया गया था। जहां पर बड़े-बड़े प्रकांड विद्वानों ने यज्ञ कराया था। इस यज्ञ के प्रभाव से सभी सर्प हवन कुंड में आकर गिर रहे थे, लेकिन सांपो का राजा तक्षक जिसके काटने से राजा परीक्षित की मौत हुई थी। खुद को बचाने के लिए तक्षक सूर्य देव के रथ से लिपट गया था। उसका हवन कुंड में गिरने का अर्थ था प्रकृति की गतिविधियों में रुकावट आ जायेगी। उन्होंने बताया कि सूर्यदेव और ब्रह्मांड की रक्षा के लिए सभी देवता राजा जनमेजय से यज्ञ को रोकने का आग्रह करने लगे। लेकिन राजा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे। अंत में यज्ञ रोकने के लिए अस्तिका मुनि के हस्तक्षेप करने पर जनमेजय यज्ञ रोकने को तैयार हुए

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श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज ने बताया कि इस स्थान पर आज भी कालसर्प योग से प्रभावित लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां की जमीन इतनी पवित्र है कि आसपास के क्षेत्र में सर्प के काटने से भी किसी की भी मौत नहीं होती है।

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