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औरैया हिन्दी प्रोत्साहन निधि का भव्य समारोह संपन्न

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औरैया हिन्दी प्रोत्साहन निधि का भव्य समारोह संपन्न
  • सरकारी कामकाज और न्यायालय की भाषा हिंदी को बनाने का धर्म युद्ध लड़ें-प्रदीप गुप्त
  • छोटी संस्थाओं का सम्मान ज्यादा महत्वपूर्ण: डॉ०-जीवन शुक्ल
  • कार्यक्रम की दौरान ग्यारह रचनाकार, दो कवित्रिया सम्मानित हुई

औरैया। औरैया के साहित्याकाश को विशिष्ट आभा प्रदान करने के लिए संस्थापित “औरैया हिंदी प्रोत्साहन निधि”का 23 वां सारस्वत सम्मान समारोह आज चौधरी विशंभर सिंह भारतीय इंटर कॉलेज औरैया में ऐतिहासिक भव्यता के साथ संपन्न हुआ।इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विद्वत्वरेण्य डॉ बलवंत राय शांतिलाल जानी कुलपति डॉ हरी सिंह गौर केंद्रीय, विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश कुलपति जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय उदयपुर राजस्थान की अस्वस्थता के कारण न आ पाने पर इटावा हिंदी सेवा निधि के महासचिव मनीषीप्रवर प्रदीप गुप्त वरिष्ठ अधिवक्ता उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने मुख्य अतिथि का दायित्व निर्वहन किया, मनीषीप्रवर डॉ जीवन शुक्ल वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रखर वक्ता पूर्व प्राचार्य पीएसएम कॉलेज कन्नौज ने अध्यक्षता की। एवं विशिष्ट संचालन डॉ० गोविंद द्विवेदी ने किया। समारोह में दौलत सिंह कुशवाहा की पुस्तक “युगांतर”, डॉ अनिल कुमार विश्वकर्मा (संपादक) की शोध अर्ध वार्षिकी”वागप्रभाव” तथा डॉ० कृष्ण अवतार बाजपेई द्वारा संपादित बाबू राम दुबे प्रेम की प्रसिद्ध कृति ” प्रेम की प्रेमानजलि” नामक पुस्तकों का भावपूर्ण लोकार्पण किया गया।

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समारोह का शुभारंभ माता सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, दीप प्रज्वलन, विद्यालय के छात्रों द्वारा स्वस्ति वाचन, मंगलाचरण, प्रधानाचार्यया गीता चतुर्वेदी द्वारा सरस्वती जी की सस्वर श्रेष्ठ वंदना से हुआ। मुख्य अतिथि प्रदीप गुप्त ने संविधान निर्माण काल से लेकर अब तक हिंदी के साथ की गई साजिशों का विस्तार पूर्वक खाका खींचते हुए कहा कि हिंदी के लिए बातें तो बहुत होती हैं मगर कुछ करने का साहस कोई नही दिखाता और उपस्थित विद्वज्जन बंधुओं से आग्रह किया की वे आगामी चुनाव में नेताओं से पूछें कि वे इसके लिए क्या कर रहे हैं।और उनसे कहें कि वे वोट उसी को देंगे जो हिंदी को सरकारी कामकाज और न्यायालय आदि में हिन्दी को स्थापित कराएंगे।उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि जहां हिन्दी को मजबूती देने की जरूरत थी वहां मुख्य मंत्री योगी अंग्रेजी के मॉडल स्कूल खुलवा रहे है, जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लोग कहते कुछ और करते कुछ हैं। श्री गुप्त ने कहा की हम खुद आत्म विश्वास उत्पन्न कर निश्चय करें, अपने बैंक आदि के सारे काम काज हिंदी में ही करें और हिंदी के प्रचार प्रसार में लगे विद्वानों को सहयोग प्रदान करें तभी हमारा संकल्प पूर्ण होगा और निधि का प्रयास सफल होगा। उनका कहना था कि १९६३ के राज भाषा अधिनियम को बदला जाना जरूरी है जिसमे अंग्रेजी को १५ वर्ष के स्थान पर अनिश्चित काल तक जारी रखने का षड्यंत्र किया गया है। उन्होंने निधि के प्रयासों की सराहना करते हुए सम्मानित हुए रचनाकारों की रचनाधर्मिता को प्रणम्य बताते हुए उन्हे बधाई दी और हिंदी की स्थापना सत्याग्रह में जुटने का आवाहन किया।

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समारोह अध्यक्ष डॉ० जीवन शुक्ल ने ९४ वर्ष की आयु में भी अपने जोशीले गंभीर उद्बोधन से आश्चर्य चकित किया।और कहा की जिलों की लघु संस्थाएं रचनाकारों का सम्मान करके बहुत बड़ा कार्य कर रहीं हैं,जिससे लोगो को प्रेरणा, ऊर्जा तो मिलती ही है, जिम्मेदारी से समाज हित में बड़े दायित्व निभाने का हौसला भी मिलता है। जबकि बड़े शहरों में बड़े लोग सम्मान दे कर अपना मान बढ़ा कर तुरंत आपको याद भी नहीं रखते।मंजुल चतुर्वेदी ने जो संकल्प किया उसे उनके पुत्र पूरा कर पाएं, उसमे इतने विद्वानों का सहयोग देख कर प्रसन्नता होती है। बताया की किस तरह निराला जी ने उन्हे १९५६ में अपने जन्म दिन पर सम्मानित किया और १९६६ में भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी राज गोपाला चारी ने सम्मानित कर मुझ जीवन को जीवन भर के लिए हिंदी सेवियों का गुलाम बना दिया। गीत ऋषि स्वरूप विख्यात बलराम श्रीवास्तव ने हिंदी की कविता और अपने गीतों से भावों में सराबोर कर दिया। इस अवसर पर आज सम्मानित हुए रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरी।साहित्यकार कैलाश त्रिपाठी ने हिंदी भवन के निर्माण, अष्ट विनायक मंदिर हाई वे बार बनने की जानकारी देते हुए पधारने का निमंत्रण सभी को दिया।

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कवि रोहित चौधरी ने रामायण का संविधान घर घर लागू करने नई पीढ़ी को बचाने की अपील की। कवि अनिरुद्ध त्रिपाठी ने पुराने समय के सभी विद्वानों की अनवरत उपस्थिति और सक्रिय सहयोग को निधि का प्राण बताते हुए सभी का आभार प्रकट किया।डॉ० कुश चतुर्वेदी ने सम्मानों की प्रक्रिया को जीवित श्राद्ध से जोड़ते हुए कहा कि बड़े शहरों में सारे अलंकरण और सम्मान एन सी आर तक ही सिमट जाते हैं। जिलों की रचना धर्मिता का उनके लिए कोई मूल्य नहीं। हम सब का उद्देश्य जिलों के रचनाकारों का मूल्यांकन करना, उन्हे प्रोत्साहित कर हिंदी संसार को गौरवान्वित करना है, ताकि ये देश भर में नाम यश अर्जित कर सकें। निधि की अध्यक्षा प्रभा चतुर्वेदी (पुत्र वधू संस्थापक ओम नारायण चतुर्वेदी”मंजुल”) ने निधि की प्रगति आख्या प्रस्तुत कर बताया कि किस तरह निधि अब तक 250 से अधिक हिंदी सेवियों का सम्मान और 65 से अधिक पुस्तक प्रकाशित कर चुकी है। जिसके लिए पूज्य पिता जी के सभी सहयोगी ही बधाई के पात्र हैं निधि सभी के प्रति कृतज्ञ है।कार्यक्रम संयोजक डॉक्टर धर्मेंद्र प्रताप सिंह, व्यवस्थापक राम मोहन त्रिपाठी, अंजनी कुमार चतुर्वेदी महासचिव ,कार्यकारी अध्यक्ष अनुराग मिश्र असफल व्यवस्थापक डॉ कुश चतुर्वेदी, स्वाताध्यक्ष सौरभ भूषण शर्मा आदि का सहयोग प्रशंसनीय रहा। इस मौके पर न्यासी अमरनाथ बरुआ व प्रद्युम्न चतुर्वेदी मौजूद रहें।औरैया हिंदी प्रोत्साहन निधि न्यास सम्मान-समारोह में डॉ अवधेश कुमार वर्धा (महाराष्ट्र)को सर्वोच्च सम्मान, पंडित राम सिंह चतुर्वेदी साहित्य-शिखर-पुरुष सम्मान-श्री राम अवतार शर्मा इंदू फर्रुखाबाद को,”पंडित धर्म नारायण त्रिपाठी संस्कृत गौरव सम्मान” श्री डॉक्टर रामकृपाल वर्धा (महाराष्ट्र) को,”पंडित शिवदत्त चतुर्वेदी

साहित्य भूषण सम्मान”- श्री डॉ भगवती प्रसाद मिश्रा अतीत आगरा को, “न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त विशिष्ट हिंदी सेवा सम्मानश्री डॉ नरेंद्र कुमार गोड्डा (झारखंड) को,”डॉ उषा किरण सिंह साहित्य सागर सम्मान”-डॉ विजय कुमार भदौरिया रायबरेली को,”पंडित रामकृष्ण तिवारी विशिष्ट हिंदी-सेवी सम्मान”- श्री डॉ रमाकांत राय इटावा को, “आनंद प्रिय अवस्थी स्मृति सम्मान”-डॉ संजय कुमार यादव आजमगढ़ को,”श्रीमती गंगा देवी विश्वकर्मा स्मृति सम्मान”- डॉ वंदना श्रीवास्तव लखनऊ को,”लाला चंदीदीन नानक चंद पटेल स्मृति सम्मान”- श्री रविंद्र रंजन शिकोहाबाद को , “पंडित सीताराम तिवारी साहित्य श्री सम्मान”- श्री शिव अवतार पाल इटावा को, “आचार्य रूप नारायण शुक्ला रुपेश स्मृति सम्मान” श्री डॉ भवतोष पांडे वरिष्ठ प्रबंधक गेल दिबियापुर को, “रामकुमार भारतीय काव्य भूषण सम्मान”- सुश्री इति शि़वहरे औरैया को सम्मानित किया गया। ग्वालियर से पधारे राम मोहन चौधरी द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया। इस अवसर पर इटावा औरैया की विशिष्ट साहित्यिक विभूतियां बड़ी संख्या में उपस्थित रहीं। सर्व श्री राज कुमार गुप्त एडवोकेट, सुषमा दुबे, सुरेश चंद्र दुबे, पत्रकार गणेश ज्ञानार्थी, सुभाष त्रिपाठी, आनंद कुशवाह आदि सैकड़ों लोग पूरे कार्यक्रम उपस्थित रह कर समारोह को जीवंत स्वरूप प्रदान करने में सहयोगी रहे।

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