- चार अगस्त तुलसीदास जयंती पर विशेष
चित्रकूट। राम चरित मानस की रचना के माध्यम से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन चरित्र को विश्व व्यापी बनाने वाले संत गोस्वामी तुलसी दास से राम लक्ष्मण का साक्षात्कार रामभक्त हनुमान ने कराया था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार पत्नी रत्नावली से तिरस्कार और उसके द्वारा राम प्रेम की आस जगाने के बाद तुलसी अपने आराध्य को पाने के लिए तीर्थो में भटकने लगे लेकिन उन्हें राम कहीं नहीं मिले । निराश होकर तुलसी राजापुर लौट आये।कहा जाता है कि राजापुर में तुलसी जब शौच को जाते तो लौटते समय लोटे में बचा पानी रास्ते में पड़ने वाले एक बबूल के पेड़ में दाल देते। इस पेड में एक जिन्न रहता था। तुलसी द्वारा रोज जल डालने से वह प्रसन्न हो गया और एक दिन तुलसी के सामने प्रकट हो कर उनसे उनकी मनोकामना पूछीं। तुलसी ने राम के दर्शन की लालसा बताई तो जिन्न ने कहा की राम से मिलने के लिए हनुमान के दर्शन जरूरी हैं और उन्हें हनुमान राम कथा में मिलेंगे। जब तुलसी दास ने पूंछा की हनुमान को कैसे पहचाना जा सकता है तब जिन्न ने बताया कि जो व्यक्ति राम कथा में सबसे पहले आये और सबसे बाद में जाये बस उनके पैर पकड़ लेना वो हनुमान ही होते हैं। राजापुर में हुई एक राम कथा में तुलसी ने ऐसा ही किया और जब हनुमान से उनकी भेंट हुई तो हनुमान ने तुलसी को चित्रकूट जाकर वहीं निवास करने को कहा। राम से मिलने की आस में तुलसी एक बार फिर चित्रकूट आ गए और अपने ईष्ट के दर्शनों की प्रतीक्षा करने लगे। तुलसी चित्रकूट में अपनी कुटिया में रहते मन्दाकिनी तट में बैठ प्रवचन करते और राम के इंतजार में समय बिताने लगे। एक दिन जब तुलसीदास चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे बने चबूतरे में बैठे प्रवचन कर रहे थे तब भगवान राम और लक्ष्मण वहां से गुजरे लेकिन तुलसी उन्हें पहचान नहीं पाए। उसी रात तुलसी को सपने में हनुमान ने दर्शन दिया और उनसे इच्छा पूरी होने के बारे में पूछां तो तुलसी ने कहा कि उन्हें तो किसी के दर्शन नहीं हुए, तब हनुमान ने तुलसी से कुछ दिन और इंतजार करने को कहा।
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थोड़े दिनों बाद जब तुलसी एक दिन उसी चबूतरे में बैठे चंदन घिस श्रृद्धालुओं को लगा रहे थे तभी भगवान राम लक्ष्मण और सीता सहित वहां आये और तुलसी दास से चंदन लगवाने लगे। तुलसी कहीं फिर न चूक जाएं इसलिए हनुमान तोते के रूप में बोले — चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़, तुलसी दास चन्दन घिसें तिलक देत रघुबीर। इस तरह हनुमान जी की कृपा ने तुलसी दास को चित्रकूट में राम लक्ष्मण के दर्शन कराये। अपनी इच्छा पूरी होने के बाद तुलसी फिर तीर्थयात्रा पर चल पड़े। संवत 1631 में 70 वर्ष की उम्र में तुलसी दास ने हनुमान की प्रेरणा से राम के चरित्रों को दुनिया के सामने रखने के लिए एक ग्रन्थ लिखने का निश्चय किया और दो वर्ष सात माह और 26 दिनों की मेहनत राम चरित मानस के रूप में अगहन शुक्ल सप्तमी संवत 1633 में दुनिया के सामने आई। तुलसीदास का जन्म चित्रकूट जिले के राजापुर कस्बे में आत्मा राम नामक गरीब ब्राह्मण परिवार में संवत 1554 में हुआ था | जन्म के समय से ही तुलसी विलक्षण थे। किवदंती के अनुसार तुलसीदास के रोने की बजाय इनके मुंह से राम राम निकला था और जन्म के समय से ही इनके मुंह में पूरे 32 दांत मौजूद थे। तुलसी के बचपन का नाम राम बोला रखा गया। जन्म के कुछ ही दिनों बाद माँ हुलसी देवी का देहांत हो जाने के कारण तुलसी को मनहूस समझ कर इनके पिता ने इनको घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद इनके पडोस में रहने वाली चुनिया नाम की महिला तुलसी का पालन पोषण करने लगी। तुलसी अभी पांच वर्ष के ही थे कि उनकी भेंट राजापुर आये चित्रकूट के संत नरहरिदास से हो गयी। नरहरिदास तुलसी को अपने आश्रम चित्रकूट ले आये और दीक्षा दे अपना शिष्य बना लिया। चित्रकूट में रहकर तुलसी ने अपने गुरु नरहरिदास से विद्या अध्ययन किया और फिर शास्त्रों के गहन अध्ययन के लिए वे काशी चले गए। गुरु की कृपा से तुलसी प्रकांड विद्वान बने और घूम घूम कर राम की कथाओं पर प्रवचन करने लगे। तुलसी की विद्वता से प्रभावित हो दीनबंधु पाठक ने अपनी पुत्री रत्नावली की शादी का प्रस्ताव तुलसी के सामने रखा और तुलसी की शादी उनकी जन्मस्थली राजापुर के पास ही महेवा ग्राम में दीनबंधु पाठक की सुपुत्री रत्नावली से हो गई। यमुना के इस पार तुलसी रहते और उस पार रत्नावली। कहते हैं कि एक बार जब रत्नावली अपने मायके में थी तब तुलसी उनके वियोग में इस कदर पागल हुए कि रात के समय भयंकर बाढ़ में बह रही यमुना में बहे जा रहे एक शव को पेढ़ का तना समझकर उसी के सहारे अपनी ससुराल पंहुच गए ।
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आधी रात में ससुराल पंहुचे तुलसी के बार बार पुकारने पर भी जब किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वे खिड़की से लटक रहे सांप को रस्सी समझ कर ऊपर चढ़ कर कमरे में सोई हुई रत्नावली के पास पंहुच गए। अपने ऊपर तुलसी की ऐसी आसक्ति देखकर रत्ना इतनी व्यथित हुईं कि उन्होंने तुलसी को झिड़कते हुए डांट लगाई। और कहा “अस्थि चर्म मय देह मम तामे ऐसी प्रीत ऐसी जो श्री राम मह होत न तव भव भीति”। रत्ना के इन शब्दों ने जैसे मोहनिद्रा में सोए हुए तुलसी को जगा दिया। उस दिन से तुलसी का सिर्फ एक ही मकसद रह गया इस दुनिया के रिश्ते नातों को छोड़ भगवान राम के साथ एकाकार होना। अब तुलसी नारी शरीर का मोह त्याग परमात्मा से अपने दिल की लगन जोड़ने लगे और महाग्रंथ रामचरित मानस की रचना कर डाली। तुलसी के इस ग्रन्थ ने राम को घर घर पंहुंचा दिया। काशी में राम चरित मानस की रचना पूरी करने के बाद तुलसी अपनी जन्म भूमि राजापुर लौट आये और यहीं रहकर राम का गुणगान करने लगे। राम चरित मानस की चर्चा सुन कर कुछ चोरों ने इसे चुरा लिया मगर चोर यमुना पार कर पाते इससे पहले ही चोरी का पता चल गया और नाव से भाग रहे चोरों का पीछा किया गया। इससे पहले कि लोग चोरों तक पंहुच पाते उन चोरों ने राम चरित मानस की पोटली यमुना में फेक दी। यमुना की गहराई में इस पोटली को ढूढ़ निकालना बेहद मुश्किल था। इसे खोजने के लिए काफी बड़े जाल का इस्तेमाल किया जा रहा था, फिर भी पोटली को ढूढने में काफी वक्त लग गया। अथक प्रयास के बाद राम चरित मानस की पोटली यमुना से निकाली जा सकी। घंटो पानी में पड़े रहने के कारण इस महा ग्रन्थ के ऊपर और नीचे के प्रष्ठ गल गए |तुलसी की जन्मस्थली राजापुर में आज भी उनके हाथों लिखे गए इस ग्रन्थ का एक भाग (अयोद्ध्या कांड) सुरक्षित रखा है जिसके दर्शन करने पूरे संसार से लोग यहां आते हैं। आज तुलसी राजापुर ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के गौरव हैं। आज तुलसी दास के शिष्यों की ग्यारहवी पीढ़ी के रामाश्रय दास इस अनुपम कृति को अपने पास एक धरोहर के रूप में संजो कर रखे हैं । कभी अपने परिवार में ही उपेक्षित कर दिए गया अबोध बालक राम बोला आज तुलसी दास के नाम से पूरे देश में किसी भगवान की तरह ही पूजे जाते हैं।