Home » लक्ष्मी की सवारी ‘उल्लू’ पर मंडराते संकट पर चंबल मे अलर्ट

लक्ष्मी की सवारी ‘उल्लू’ पर मंडराते संकट पर चंबल मे अलर्ट

by
लक्ष्मी की सवारी ‘उल्लू’ पर मंडराते संकट पर चंबल मे अलर्ट
लक्ष्मी की सवारी ‘उल्लू’ पर मंडराते संकट पर चंबल मे अलर्ट

इटावा । लक्ष्मी के वाहन उल्लू पक्षी को लेकर उत्तर प्रदेश की इटावा स्थिति चंबल घाटी मे विशेष सर्तकता बरती जा रही है । यह सर्तकता दीवाली पर्व पर उल्लुओ को बलि से बचाने के लिए बरती जा रही है ।

यह भी देखें : फल मंडी में आग लगने से व्यापारियों को लाखों का नुकसान, फायर बिग्रेड ने पाया आग पर काबू

इटावा स्थिति समाजिक वानिकी के उप प्रभागीय निदेशक संजय सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि दुलर्भ प्रजाति के उल्लुओ का शिकार करना महंगा पड़ सकता है। विलुप्त हो रहे पक्षी के संरक्षण को लेकर शासन ने कड़ा कदम उठाया है। मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव ने अफसरों को उल्लू का शिकार वाले शिकारियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

उन्होने बताया कि सामाजिक कुरीतियों, भ्रांतियां और तंत्र-मंत्र सिद्ध करने के लिए दिवाली के आसपास बड़े पैमाने में उल्लू का शिकार किया जाता है। इससे उल्लू प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। इस पक्षी के रात में निकलने के कारण स्पष्ट गणना नहीं है। यह बेहद कम दिखाई पड़ते हैं। उन्होने बताया कि पक्षी का शिकार या व्यापार करते समय आरोपित को वन्य जीव अधिनियम की धारा-51 के तहत छह माह की जेल और कम से कम 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा या दोनो हो सकती हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक पवन कुमार वर्मा ने डीएम, एसपी, डीएफओ को जारी पत्र में कहा है कि एनजीओ, पुलिस व कर्मचारियों के माध्यम से पक्षी को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियों को दूर किया जाना जरूरी है।

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उल्लू देवी लक्ष्मी के वाहन के रूप में समृद्धि एवं सौभाग्य का सूचक है। बड़ी संख्या में लोग इस पक्षी को पूजते हैं। वहीं तांत्रिक क्रियाओं में उपयोग में लाए जाने की परंपरा के कारण इसका शिकार, व्यापार किया जाता है।

चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल तथा ब्राउन फिश आउल संरक्षित घोषित हैं । इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियाँ है जिन्हें पकड़ने पर प्रतिबंध है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र में इनकी खासी संख्या है क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू चंबल किनारे स्थित करारों में घोंसला बनाकर रहते हैं। इस प्रकार की करारों की सेंचुरी क्षेत्र में कमी नहीं है। अभी तक इस बात का कोई अध्ययन भी नहीं किया गया कि आखिर चंबल में उल्लुओं की वास्तविक तादत क्या है ।

यह भी देखें : मिशन इकदिल ब्लाक का सत्याग्रह आन्दोलन 27 वें दिन ग्राम पंचायत भूलपुर-मुबारकपुर में हुआ

अधिक संपन्न होने के चक्कर मे लोग दुर्लभ प्रजाति के उल्लुओं की बलि चढ़ाने मे जुट गए हैं यह बलि सिर्फ दीपावली की रात को ही पूजा अर्चना के दौरान दी जाती है। माना ऐसा जाता है कि उल्लू की बलि देने वाले को बेहिसाब धन मिलता है इसी कारण उल्लुओं का कत्लेआम जारी है। दीपावली सिर पर है । तंत्र साधनाओं का जोर बढ़ रहा है। दीपावली के मौके पर होने वाली तंत्र साधनाओं में उल्लूओं की बलि दी जाती है। उल्लुओं की इस बलि प्रथा के कारण चंबल के उल्लूओं पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। दीपावली के बहुत पहले से तस्कर उल्लुओं की तलाश में चंबल का चक्कर लगाने लगते है।

आमतौर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू आसानी से सुलभ न होने के कारण इसकी कीमत लाखों रुपए होती है, जानकारों की मानें तो दिल्ली एवं मुंबई जैसे महानगरों में बैठे बड़े-बड़े कारोबारी इन तस्करों के जरिए संरक्षित जीव की तस्करी में जुट गए हैं इतना ही नहीं तंत्रविद्या से जुडे लोगों की माने तो इस पक्षी के जरिए तमाम बड़े-बड़े काम कराने का माद्दा तांत्रिक प्रकिया से जुड़े लोग करने में सक्षम रहें हैं, अगर बंगाल का ही हम जिक्र करें तो वहां पर बिना उल्लू के किसी भी तंत्र क्रिया नहीं की जाती है, इसके अलावा काला जादू में भी उल्लुओं का व्यापक प्रयोग किया जाता है।

उल्लुओं के बारे में जानकारी रखने वाले बताते हैं कि आसानी से सुलभ न होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमत पचास हजार रुपए से लेकर कई-कई लाख रुपए तक पहुंच जाती है।

इटावा वाइल्ड लाइफ विभाग के वनक्षेत्राधिकारी हरी शंकर शुक्ला का कहना है कि उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनूसूची-1 के तहत संरक्षित है, ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है, इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है ।

यह भी देखें : चम्बल पुल के पिलर की बीयरिंग हुई क्षतिग्रस्त

तांत्रिक बताते हैं कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है। प्रायः उल्लुओं में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि तोता की भांति इंसानी भाषा में बात कर सकता है। दिन में सुनी हुई बातों को रात में वह बोलता है । तांत्रिकों के मुताबिक उल्लू की पूजा के लिहाज से इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में माना जाता है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है तथा इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करने के काम में आता है तथा चोंच इंसान की मारण क्रिया में काम आती है। इसके बारे में यह भी भ्रांति है कि यदि इसे हम किसी प्रकार का कंकड़ मारें और यह अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाए और किसी नदी अथवा तालाब में डाल दे तो जिस प्रकार से वह कंकड़ घुलेगा उसी प्रकार कंकड़ मारने वाले का शरीर भी घुलने लगता है।

उल्लुओं के बारे में यहां तक चर्चा है कि रात में कम से कम किसी के नाम का प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि यदि यह उस नाम को रटने लगे तो नाम वाले व्यक्ति के जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उल्लू द्वारा किसी का नाम लिया जाना अशुभ माना जाता है। आमतौर पर उल्लू को मूर्ख अथवा बेवकूफ जीव माना जाता है परंतु विशेषज्ञ इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता है बल्कि वह उसे काफी चतुर मानते हैं। उल्लू में पाई जाने वाली आभासी ताकत किसी अन्य जीव की अपेक्षाकृत सर्वाधिक पाई जाती है और इसीलिए रात में इसका शिकार करने का कोई सानी नहीं होता है।

You may also like

Leave a Comment

tejas-khabar-logo

अप्रैल 2020 में स्थापित तेजस ख़बर भारत का अग्रणी हिंदी समाचार वेब पोर्टल है, जिसका उद्देश्य भारत के करोड़ों भारतीयों तक खबरें पहुंचाना है और दुनिया भर में महत्वपूर्ण भारतीय प्रवासी हैं जो भारत में आधारित विभिन्न समाचारों और कहानियों के साथ भारत से संपर्क में रहने के लिए उत्सुक हैं।

Latest News

Sport News