भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता हथियाने के बाद पहली बार 10 सितंबर को खुलकर चिंता जताई । भारत के संयुक्त राष्ट्रसंघ में राजदूत एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरूमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कहा कि अफगानिस्तान के ताजा हालात भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है । भारत ने विश्व समुदाय को आगाह किया कि अफगानिस्तान के ताजा हालात भारत के लिये गंभीर खतरा है। उन्होंने विश्व समुदाय से अपील की कि दुनिया के सभी देशों को लोभ छोड़कर अफगानिस्तान के नागरिकों के हितों के लिये कदम उठानें चाहिए ।
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एक दिन बाद ही भारत के विदेश मंत्री जय शंकर ने भी अपनी चिंता से भारत पहुंचे आस्ट्रेलिया के उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मण्डल को अवगत कराया । अफगानिस्तान संकट और तालिबान के अधिग्रहण के बाद भारत की ओर से पहले बयान में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत अफगानिस्तान में सैन्य समूह द्वारा बनाई जाने वाली नई समावेशी सरकार को लेकर चिंतित है। जयशंकर की यह टिप्पणी शनिवार को भारत और ऑस्ट्रेलिया की चार सदस्यीय मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान आई। जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मारिस पायने और रक्षा मंत्री पीटर डटन के साथ बातचीत की। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि अफगानिस्तान की स्थिति एक केंद्रीय चिंता का विषय है। मंत्रियों ने पूर्वी और दक्षिण चीन सागर पर विचारों के साथ-साथ एक स्वतंत्र, खुले और सुरक्षित हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर भी चर्चा की। नई तालिबान सरकार में समावेशिता पर जयशंकर के बयान को लेकर पायने ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया भी अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति के बारे में चिंतित है। इसके अलावा देश आतंकवादी समूहों के पनपने का स्थल भी बन रहा है।
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जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘ऑस्ट्रेलिया की मेरी मित्र ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मारिसे पायने का स्वागत करके प्रसन्नता हो रही है। अब हम अपनी चर्चाएं शुरू कर रहे हैं। पायने और ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री पीटर ड्यूटन शनिवार को निर्धारित चार सदस्यीय मंत्रिस्तरीय वार्ता में हिस्सा लेने के लिए तीन दिवसीय यात्रा पर शुक्रवार को यहां पहुंचे थे । इसके पहले भारत और रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में हालात की विस्तार से समीक्षा की है । दोनों देशों में सहमति बनी है कि संयुक्त राष्ट्र में अपने-अपने रुख़ को लेकर दोनों देश आपसी समन्वय बनाए रखेंगे। रूसी सिक्यॉरिटी काउंसिल के सचिव जनरल निकोलाई पत्रुशेव ने नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाक़ात की थी।
पिछले कुछ दिनों में अमेरिकन खुफिया एजेंसी CIA, ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI6 के प्रमुखों और रूस के एनएसए ने भारत का दौरा किया था। भारत ने तीनों देशों से अफगानिस्तान में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के एक्टिव रोल, आतंकी संगठनों के तालिबान के साथ सरकार में अहम रोल पर चिंता व्यक्त की है । भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने बीते दिनों में रुस-अमेरिका-ब्रिटेन के उच्च अधिकारियों से भी चर्चा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही जो बाइडेन, व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात कर चुके हैं । अफगानिस्तान की ताजा स्थिति को लेकर भारत की सबसे बड़ी चिंता आतंकी संगठनों को लेकर है। तमाम बड़े देशों को इस बात की चिंता है कि अफगानिस्तान आने वाले दिनों में तालिबान के राज में अफीम का हब बन सकता है। साथ ही आतंकी संगठनों के लिए कमाई के जरिये अपना बेस बनाने की जगह बन सकता है।
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भारत की ओर से इस मसले को उठाया गया है कि पाकिस्तान को इस बात का भरोसा दिलाना होगा कि अफ़गानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंक को बढ़ावा देने के लिए नहीं होगा । साथ ही अफगानिस्तान में मौजूद अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दी जाएगी । इधर बदलते घटनाक्रम के बीच पाकिस्तान के सेना प्रमुख बाजवा ने 11 सितंबर को विश्व समुदाय से तालिबान को समर्थन देने की अपील की । बाजवा का यह कदम भारत की चिंता और पाकिस्तान के कुत्सित मंसूबे को प्रगट करता है । अफगानिस्तान में बदलते परिदृश्य के बीच भारत की चिंता वाजिब है और इस चिंता के स्पष्ट कारण है। पाकिस्तान परस्त सिराजुद्दीन हक्कानी का तालिबान सरकार में गृह मंत्री बनना। हक्कानी अमेरिका के करोड़ो का इनामी मोस्ट वांटेड आतंकवादी है । इसके अलावा तालिबान की पाकिस्तान के लश्करे तैयबा, जैश ए मुहम्मद सहित भारत विरोधी संगठनो से निकटता है। चीन , तुर्की, पाकिस्तान और तालिबान सरकार का गठजोड़ भारत के लिये सबसे गहरी चिंता का कारण है ।
खुफिया सुत्रों के मुताबिक कंधार विमान हाईजैक कांड का सरगना मसूद अजहर तालिबान के बड़े आकाओं से मिल चुका है । जगजाहिर है कि अजहर पहले भी कंधार कांड के दौरान तालिबानों से मदत ले चुका है । इन सबके बीच सबसे खतरनाक बात यह है कि तालिबान, पाकिस्तान और दुनिया के सभी मुस्लिम चरमपंथी संगठनों का एक मात्र उद्देश्य है पूरे विश्व का इस्लामीकरण करना । किसी को भी गफलत नही करनी चाहिये कि भारत के इस्लामिक चरमपंथी संगठन पीपुल फ्रंट ऑफ इंडिया, ग्लोबल इस्लामिक संगठन आईएसआईएस और अलकायदा, नाइजीरिया के बोकोहराम, लेबनान के हिजबुल्ला , फिलिस्तीन के हमास , चीन के ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, पाकिस्तान के लश्करे तैयबा और जैश ए मुहम्मद के उद्देश्यों में कोई अंतर है |
ये और इन जैसे विश्व के सभी इस्लामिक संगठनो की कार्यप्रणाली में तो अंतर हो सकता है परन्तु उद्देश्य एक ही है वह है कैसे भी गैर मुसलमानों को मुसलमान बनाना और गैर मुस्लिम क्षेत्र को इस्लामिक बनाना। अपनी कट्टर विचारधारा के कारण ये संगठन बढ़ते ही जा रहे है भले ही इनके प्रमुख मार दिए गए हो या मार दिए जाते हो। इसका कारण है कि इन्होंने अपनी विचारधारा से अपने जैसे ही अनेकों रक्तबीज तैयार कर दिए है। इसलिये चिंतित औऱ पीड़ित विश्व समुदाय को इनके वैचारिक अधिष्ठान पर तर्कसंगत चोट करनी चाहिए और समांतर बल का प्रयोग भी तभी इससे दुनिया को पूरी तरह निजात मिल सकती है ।