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चंबल सेंचुरी में जन्म लेंगे 5000 कछुये

by Tejas Khabar
चंबल सेंचुरी में जन्म लेंगे 5000 कछुये

इटावा। उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में सैकड़ों जलचरों की पालन हार चंबल नदी में इस बार करीब साढ़े पांच हजार के आसपास दुर्लभ प्रजातियों के कछुओं के जन्म लेने की उम्मीद जताई जा रही है। चंबल सेंचुरी के रेंज अफसर के.के.त्यागी बताते हैं कि इस बार चंबल सेंचुरी में 304 नेस्ट संरक्षित किए गए हैं। इन नेस्टो से करीब 5593 कछुआ के बच्चों के जन्म लेने की उम्मीद जताई जा रही है। चंबल में कछुओ की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है । बीते वर्ष इटावा रेंज में ढाई हजार कछुआ के बच्चों को छोड़ा गया था । इस बार रेंज में लगभग साढ़े 5 हजार नन्हे मेहमान चंबल में छोड़े जाएंगे। जैसे-जैसे यह बच्चे नेस्ट से बाहर आते जा रहे हैं उन्हें चंबल में छोड़े जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है । चंबल में इस बार संकटग्रस्त कछुओ की प्रजाति साल की संख्या में भी जाता हुआ है।

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चंबल सेंचुरी मे फरवरी और मार्च में मादा कछुओं ने नदी के किनारे बालू में अंडे दिए थे। तब से चंबल सेंचुरी विभाग के अफसर इनकी निगरानी करने मे जुटे हुए थे। मई के दूसरे पखवाड़े में अंडों की हैचिंग (अंडों को सेकने की प्रक्रिया) शुरू हुई। गढ़ायता, हरलालपुरा, पिनाहट, मऊ, मुकुटपुरा हैचरी क्षेत्र में नन्हें मेहमान जन्म लेने के साथ बालू पर सरकते हुए नदी में पहुंचना शुरू हो गए है। पहले दौर में साल प्रजाति और उसके बाद अन्य प्रजातियों की हैचिंग की गई। अच्छी बात ये है कि इस बार 5593 कछुए के बच्चो के जन्मने की उम्मीद लगाई जा रही है। मादा कछुआ 30 अंडे तक देती है। सामान्यत वह रात में अंडे देती है। अंडे देने के बाद उसको मिट्टी तथा बालू से ढक देती है। विभिन्न प्रजातियों के अंडों से निकलने का समय भिन्न-भिन्न होता है। अंडे से निकलने में बच्चों को 60 से 120 दिन का समय लगता है।

विश्व में चंबल एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां शेड्यूल-1 की श्रेणी में सुमार साल और ढोंड प्रजाति के कछुए यह पाये जाते है। इस बार चंबल सेंचुरी में साढ़े पांच हजार के आसपास कछुओं के जन्म लेने की उम्मीद जताई जा रही है। इनमें शेड्यूल-1 की श्रेणी में सुमार साल और ढोंड प्रजाति के कछुए भी शामिल हैं। इस प्रजाति के कछुए सारी दुनिया में विलुप्तप्राय माने जाते है। कभी गंगा-यमुना समेत सभी प्रमुख नदियों में पाया जाना वाला कछुआ साल अब केवल चंबल सेंचुरी में ही बचा है। शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विलुप्त: प्राय कछुए को बचाने के लिए टर्टल सर्वाइवल एलाइंस से मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) किया है।

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सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ स्टडीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि साल (बटागुर कछुआ) क्रिटीकल एंडेंजर्ड प्रजातियों में शामिल है। विश्व में चंबल एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां यह पाया जाता है। हम हर वर्ष दो से तीन हैचरी में उनके घोंसलों को बचाते हैं। हम उनके थोड़ा बड़ा होने तक उनकी देखरेख करते हैं, बाद में उन्हें नदी में छोड़ दिया जाता है, जहां उनका सर्वाइवल रेट अधिक होता है।
दूसरी ओर कोऑर्डिनेटर भाष्कर दीक्षित बताते हैं कि बढ़ता प्रदूषण, नदी में अवैध खनन, नदी के किनारे होने वाली खेती इनके लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। चंबल सेंचुरी में जैकॉल से भी इन्हें खतरा रहता है।

टर्टल्स सर्वाइवल एलाइंस द्वारा चंबल सेंचुरी क्षेत्र में बनाए गए दो केंद्रों पर साल के कछुओं की हैचिंग कराई जाती है। इसके लिए वह नदी किनारे मादा कछुओं द्वारा अंडों को तलाशते हैं। इटावा के गढ़ायता कछुआ संरक्षण केंद्र और देवरी ईको केंद्र पर बाद में हैचिंग कराई जाती है।
पूरे देश में कछुओं की 28 प्रजातियां पाई जाती हैं, इनमें से 14 केवल उत्तर प्रदेश में हैं, जिनमें से आठ चंबल में हैं। इनमें साल, ढोर, स्योतर, कटहेवा, सुंदरी, कोरी पचेड़ा, पचेड़ा प्रमुख हैं। इस समय कछुआ की हैकिंग का समय चल रहा है इनमें साल कछुआ ऐसा है जो कहीं और नहीं मिलता है। चंबल नदी राजस्थान,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में होकर बहती है ।

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यहां इटावा में चंबल सेंचुरी में लुप्त प्राय कछुओ की आठ प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है। इनमें साल कछुआ प्रमुख माना जाता है जो संकट की श्रेणी में सुमार है । यह केवल चंबल नदी में ही सिमट कर रह गया है। इस समय साल और ढोर कछुओ की नेस्टिंग चल रही है। एक नेस्ट में कछुआ 10 से 30 तक अंडे देते हैं। नदी किनारे की बालू और मिट्टी में कछुआ के घोसलों में रखे अंडों की सुरक्षा के लिए कुछ इलाकों में जाली लगाई गई है। मई माह से अंडों से कछुआ के बच्चे बाहर निकलना शुरू हो गए हैं। ऐसे में चंबल सेंचुरी ने उन्हें चंबल में छोड़ने का काम शुरू कर दिया है,पिछले साल लगभग ढाई हजार से ज्यादा नन्हे मेहमान चंबल नदी में छोड़े गए थे ।

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