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अंडों से निकलकर चंबल की गोद में पहुंचे 500 नन्हें घड़ियाल

औरैया: चंबल नदी में घड़ियालों की हैचिंग शुरू हो गई है। बाह के कछियारा, इटावा के कसौआ और खेड़ा अजब सिंह घाट से पचनदा तक च॓बल सेंचुरी में जन्मे करीब 500 घड़ियाल शिशु नदी में पहुंच गए। एशिया की सबसे बड़ी घड़ियाल सेंचुरी चंबल है। पहले घड़ियालों के अंडे हैचिंग के लिए कुकरैल प्रजनन केंद्र लखनऊ भेजे जाते थे। अब करीब 10 बरसों से चंबल नदी में प्राकृतिक हैचिंग हो रही है।
पिछले दो तीन दिनों में लगभग 500 नन्हे मेहमानों के जन्म लेने के बाद वन विभाग ने राजस्थान से सटे रेहा से लेकर इटावा से लगे उदयपुर खुर्द तक निगरानी बढ़ा दी है। बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ और इटावा के रेंजर हरी किशोर शुक्ला ने बताया कि हैचिंग के साथ ही घोंसलों और घड़ियाल शिशुओं की निगरानी की जा रही है। घड़ियाल की हैचिंग अभी सप्ताह भर तक जारी रहेगी। इसके बाद मगरमच्छ की हैचिंग होगी। समय से पहले हैचिंग बढ़े हुए तापमान के कारण मानी जा रही है।

तीन माह तक नहीं होती भोजन की जरूरत

नेस्टिंग स्थल से आई सरसराहट की आवाज सुनते ही मादा घड़ियाल अंडों तक पहुंचकर बच्चे को उसमें से बाहर निकलने में मदद करती है। नदी तक पहुंचने में नर घड़ियाल उनकी मदद करते हैं। रेंजर ने बताया कि स्वस्थ अंडे का वजन करीब 112 ग्राम होता है। जन्म के तीन माह तक बच्चों को भोजन की जरूरत नहीं पड़ती है।

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पांच प्रतिशत घड़ियाल शिशु ही बच पाते हैं

घड़ियाल शिशुओं को बड़ी मछली, बगुले जैसे पक्षी तो खा ही लेते हैं, बाढ़ से सर्वाधिक नुकसान होता है। रेंजर अमित सिसौदिया के मुताबिक कि करीब पांच प्रतिशत बच्चे ही सर्वाइव कर पाते हैं।

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2008 में पड़ गए थे खतरे में, अब आबाद

वर्ष 2008 में चंबल नदी में एक साथ 100 से ज्यादा घड़ियालों की मौत से प्रोजेक्ट खतरे में पड़ गया था। तब विदेशी विशेषज्ञ बुलाने पडे़ थे। घड़ियालों की मौत की वजह लिवर सिरोसिस बीमारी मानी गई थी। उसके बाद से घड़ियालों का कुनबा साल दर साल बढ़ रहा है। अंडों से बाहर निकलकर चंबल की गोद में पहुंचे 500 नन्हे घड़ियाल, देखें अद्भुत तस्वीरें हमारे संवाददाता ने अपने कैमरे में कैद किया है।

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